अध्यात्म डेस्क. हर धर्म में हर वर्ग में अपने पूर्वजों को याद करने की परंपरा है. पुरातन काल में सभी धर्मों के लोग पूर्वजों की मृत्यु दिवस पर अन्नदान के लिए भंडारे लगाते थे. पहले सभी लोगों के लिए धार्मिक, सामाजिक, न्यायिक, व्यवसाय व्यवस्था को ध्यान में रखकर उससे संबंधित नियम निर्धारण करने का जिम्मा हमारे ऋषि-मुनियों पर था.
इस व्यवस्था को सहज व एक रूप देने के लिए इस परंपरा को श्राद्ध पक्ष करने के लिए निर्धारित किया. श्राद्ध पक्ष में सारी तिथियां सम्मिलित हो गई. इसके अतिरिक्त यह व्यवस्था भी कर दी कि यदि किसी की तिथि मालूम ना हो तो अमावस को श्राद्ध कर दे. इसके साथ-साथ इस बात का भी ध्यान रखा कि यदि किसी के पास समय का अभाव है तो वह केवल अमावस के दिन अपने सभी पूर्वजों के लिए श्राद्ध कर सकता है. श्राद्ध में गुरुकुल के संध्या नियम करने वाले विद्यार्थियों को भोजन करवाने की परंपरा थी, लेकिन गुरुकुल की व्यवस्था चौपट हो जाने पर यह परंपरा मंदिरों तक सिमट गई.
गाय के दूध को अमृत, कुत्ते को वफादार मित्र, कौआ को चतुर पक्षी माना गया है, इसलिए इन तीनों को भी श्राद्ध में सम्मिलित किया गया. इस वर्ष श्राद्ध पक्षों की अमावस 28 सितंबर 2019 दिन शनिवार को अपने सभी पूर्वजों का ध्यान कर, जल तर्पणादि कर, अन्नदान कर पूर्वजों का आशीष प्राप्त करें. जल का पूजा में महत्व जल की स्मरण शक्ति और उसकी शुद्धता है.