अध्यात्म डेस्क. हमारे हिंदू धर्म में अनेक देवी-देवता को पूजा जाता हैं। हर किसी की पूजा का विशेष महत्व होता हैं। इन्हीं में से एक है शीतला देवी। विवाह आदि से पहले शीतला माता की पूजा का विधान है। वहीं, होलिका पूजन के ठीक 6 दिन बाद शीतला माता की पूजा की जाती है। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि के दिन ये पर्व मनाया जाता है। इस दिन बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। इसलिए इसे बसौड़ा, बसोरा आदि के नाम से भी जाना जाता है।
शास्त्रों के अनुसार इस दिन देवी को भोग में ठंडे पकवान के भोग लगाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि शीतला माता की पूजा करने से शीतजन्य रोग जैसे चेचक, खसरा आदि जैसे बीमारियां नहीं होती। आइए जानें इस बार कब की जाएगी देवी शीतला की पूजा और पूजा विधि के बारे में।
हिंदू पंरपराओं के अनुसार शीतला माता की पूजा 2 दिन की जाती है। कहीं चैत्र माह की सप्तमी तिथि के दिन शीतला माता की पूजा की जाती है, तो कहीं चैत्र माह अष्टमी तिथि के दिन ये पूजा होती है। इन्हें शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी के नाम से जाना जाता है। बता दें कि इस बार शीतला सप्तमी 14 मार्च और शीतला अष्टमी 15 मार्च को मनाई जाती है।
इस विधि से करें पूजा
– व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके इस मंत्र मम गेहे शीतलारोगजनितोपद्रव प्रशमन पूर्वकायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धियेशीतला सप्तमी/अष्टमी व्रतं करिष्ये व्रत का संकल्प लें।
– इसके बाद शीतला माता की पूजा करें। उन्हें जल चढ़ाएं, अबीर अर्पित करें, गुलाल, कुमकुम आदि चीजें भी चढ़ाएं. इसके साथ ही खाद्या पदार्थ, मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी, दाल-भात आदि का भोग लगाएं और फिर मां की परिक्रमा करें।
– इस दौरान इस बात का खास ध्यान रखें कि शीतला माता की पूजा में दीपक न जलाएं और न ही अगरबत्ती जलाएं। ऐसा करने से इसलिए मना किया जाता है कि देवी शीतला ठंडी प्रवृति की होती हैं ऐसे में इनके पूजन में दीपक का प्रयोग वर्जित होता है।
– पूजा के बाद शीतला स्तोत्र का पाठ करें। शीतला माता की कथा सुनें।दिनभर शांत भाव से सात्विकता पूर्ण रहे। इस दिन व्रती को और परिवार के किसी भी सदस्य को गर्म भोजन नहीं करना चाहिए। (shitla ashtami)