सुमेरिया सभ्यता का उदय और संपूर्ण विकास ‘दजला-फरात’ नदियों की घाटी में हुआ था। प्रचीन काल में इसे मेसोपोटामिया कहा जाता है, जो आज का ‘आधुनिक ईराक’ है। हालांकि सुमेरिया के लोग धर्म को एक सुव्यवस्थित और गहन अध्यात्मिक आधार पर कायम न हो सके।
सुमेरियाई लोग मंदिरों को ऊंचे स्थानों पर बनाते थे। मंदिर धार्मिक कार्यों के अलावा सामाजिक जीवन का का केंद्र थे। इन मंदिरों में जिन देवताओं की पूजा होती थी, वे पहले लोक देवता थे। देवताओं का प्रभाव क्षेत्र स्थानीय होता था। इस तरह हर शहर के अलग-अलग देवता थे।
सुमेरिया निवासी बहुदेववाद के उपासक थे। उन्होंने अपने देवताओं पर मानवीय प्रकृति, चरित्र और गुणों का समावेश किया था। प्राचीन शहर उरुक में पूजित ‘अनु’ नाम का देवता आकाश का देवता माना जाता था। समय के साथ वह सर्वश्रेष्ट देवता बन गया। दूसरा प्रधान देवता ‘एनलिल’ था। एनलिल की पूजा निपुर नाम के शहर में होती थी। यह तूफानों का देवता था।
बाद में ‘मारडूक’ नाम के देवता को सर्वोच्च देवता माना गया। इनका तीसरा स्थान था। चौथा स्थान ‘एनकी’ नाम के देवता का था। वह पहले देवता ‘अनु’ का पुत्र था। इसे जल देवता माना जाता था।
छोटे देवताओं के रूप में पृथ्वी माता की कई रूपों में पूजा होती थी। इन सभी देवी और देवताओं में ‘इन्ने की’ नाम की देवी काफी लोकप्रिय थीं, वह उर्वरता की देवी मानी जाती थी। सुमेलिया के लोग इस देवी की पूजा ‘इश्तर’ नाम की देवी के रूप में भी करते थे।
इश्तर से संबंध रखने वाला देवता था ‘तम्मुज’। तम्मुज के बारे में अलग अलग धर्म ग्रंथों में अलग-अलग वर्णन मिलता है। कहीं उसे इश्तर का भाई तो कहीं लड़का तो कहीं प्रेमी बताया गया है।
तम्मुज फल, अनाज और वनस्पति का देवता माना जाता था। सुमेरिया के लोग ग्रहों की पूजा भी करते थे। उनमें ‘सिन’ और ‘शमश’ मुख्य थे। जो क्रमशः चंद्र और सूर्य के पर्यावाची शब्द हैं।
इन सभी देवी और देवताओं की पत्नी और बच्चों के बारे में भी उल्लेख मिलता है। सुमेरिया के लोगों ने ‘शियोल’ नाम से एक काल्पनिक लोक की कल्पना की थी जहां मृत्यु के बाद आत्माएं जाती हैं।
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यदि बहुत कम शब्दों में कहें तो सुमेरियाई धर्म में आध्यात्मिकता का पुट बहुत कम था। उनके देवी-देवता भी आध्यात्मिक न होकर जागतिक होते थे और वे इसलिए उनमें भी मानवीय दुर्बलताओं की कल्पना की गई थी।