केरल के सबरीमाला मंदिर में मकर संक्रांति के तीसरे दिन भगवान अय्यप्पा की शोभायात्रा पहुंचती है। इस दिन भगवान अय्यपा के दर्शन करने से विशेष फल प्राप्त होता है। दरअसल यहां मंदिर में एक मकर ज्योति प्रज्वलित रहती है। इसी ज्योति के दर्शन के लिए करोड़ों भक्त अय्यप्पा स्वामी के दर्शन को आते हैं। भगवान अय्यप्पा के मंदिर में मकर संक्रांति का त्योहार 41 दिनों तक चलता है। इन दिनों में पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। भगवान अय्यप्पा, श्री विष्णु के पुत्र हैं। पौराणिक मतानुसार दरअसल विष्णु जी के मोहनी रूप को ही अय्यप्पा की मां माना जाता है। सबरीमाला मंदिर का नाम के पीछे भी रोचक कहानी है। दरअसल यह नाम शबरी के नाम पर पड़ा जिन्होंने श्री हरि के अवतार श्रीराम को वन में कंद मूल खिलाए थे।
जब कि ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर भगवान अय्यप्पा पंडामल के राजा राजशेखर के पुत्र हैं, जिन्हें राजा ने गोद लिया था। अय्यप्पा को राज-काज में रुचि नहीं थी, इसलिए उन्होंने महल छोड़ा दिया हर वर्ष मकर संक्रांति पर पंडामल राजमहल से भगवान अय्यप्पा के आभूषणों को संदूक में रखकर भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है, जो 90 किमी दूरी तय कर तीन दिन में सबरीमाला मंदिर पहुंचती है।
दरअसल मकर संक्रांति के दिन सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश महत्वपूर्ण माना जाता है। इस एक राशि से दूसरी राशि में किसी ग्रह का प्रवेश संक्रांति कहा जाता है। सूर्य प्रत्येक माह में एक राशि पर भ्रमण कर एक वर्ष में बारह राशियों पर अपना भ्रमण पूरा करता है। इस तरह सूर्य प्रत्येक माह में एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश कर लेता है। सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश को ही मकर संक्रांति कहते हैं।