अध्यात्म डेस्क. हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा के दौरान आरती करने और दीपक जलाने का बहुत महत्व माना गया हैं। पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान के दौरान दीपक जरूरी होता हैं जिसके बिना पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती हैं। लेकिन दीपक जलाने से जुड़े भी कुछ नियम होते हैं जिनका पालन किया जाना जरूरी हैं अन्यथा इसका लाभ नहीं मिल पाता हैं। आज इस कड़ी में हम आपको दीपक जलाने से जुड़े जरूर नियमों की जानकारी देने जा रहे हैं जो आपकी मनोकामना पूर्ण करने में मदद करेंगे।
ईष्टदेवता के चरणों की तीन बार आरती
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार आरती करते समय सबसे पहले अपने ईष्टदेवता के चरणों की तीन बार आरती उतारनी चाहिए, इसके बाद दो बार मुखारविंद से चरणों तक तीन बार ऊं की आकृति बनाते हुए आरती उतारनी चाहिए। इस तरह से आरती उतारने पर ही आरती पूरी मानी जाती है और इससे ईष्टदेव प्रसन्न होते हैैं और अपनी कृपा बनाए रखते हैं। जिससे आपकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
संध्या समय तुलसी के पौधे के नीचे दीपक प्रज्वलित करना
धर्म शास्त्रों में तुलसी के पौधे के नीचे संध्या के समय दीपक जलाने का बहुत महत्व माना गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से को उस स्थान विशेष पर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव नहीं पड़ता है और घर में सुख समृद्धि बनी रहती है। ज्यादातर लोग तुलसी में ऐसे ही दीपक प्रज्वलित कर देते हैं लेकिन तुलसी में दीपक प्रज्वलित करते हुए उसे चावल का आसन देना चाहिए और रोज शाम को दीपक जलाना चाहिए।
पीपल के नीचे दीपक प्रज्वलित करना
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनिवार को पीपल के नीचे दीपक हमेशा या तो सूर्यास्त के बाद या फिर सूर्योदय से पहले जलाना चाहिए। इसके साथ ही प्रत्येक अमावस्या को रात्रि में पीपल के नीचे शुद्ध घी का दीपक जलाने से पितर प्रसन्न होते हैं, जिससे घर में खुशहाली आती है। मान्यता है कि यदि नियमित रूप से लगातार 41 दिनों तक पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित किया जाए तो सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
केले के पेड़ के नीचे दीपक प्रज्वलित करना
गुरुवार के दिन केले के पेड़ में दीपक जलाना बहुत शुभ माना जाता है। इससे बृहस्पतिदेव की कृपा बनी रहती है। यदि आप भी केले के वृक्ष में तो इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शुद्ध घी का दीपक ही प्रज्वलित करना चाहिए।