फ़टाफ़ट डेस्क। भगवान परशुराम के गुस्से, तेज और पराक्रम से जुड़े कई किस्से मशहूर हैं. इसमें सबसे ज्यादा मशहूर है उनके द्वारा अपनी मां का वध करना का किस्सा. परशुराम इतने आज्ञाकारी थे कि उन्होंने पिता के कहने पर मां का वध कर दिया था लेकिन बदले में पिता से मां को जीवित करने का वरदान भी मांग लिया था. इस तरह वो दुनिया के एकमात्र ऐसे पुत्र बने जो माता-पिता दोनों के ऋण से मुक्त हैं. इससे अलग और भी रोचक किस्से हैं, अब उनके बारे में जानते हैं.
फरसे से बना दिया था मंदिर
ऐसी मान्यता है कि राजस्थान में एक ऐसा मंदिर है जिसे परशुराम ने अपने फरसे के वार से बनाया है. यह मंदिर अरावली की पहाड़ियों में है और इस मंदिर में एक गुफा है जिसमें शिवलिंग है. इसी मंदिर में बैठकर परशुराम ने तपस्या की थी. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें धनुष और अक्षय तरकश दिया था. अक्षय तरकश ऐसा था कि उसके तीर कभी भी खत्म नहीं होते थे.
धरती पर हो रहे अत्याचार को रोकने इसे 21 बार क्षत्रिय विहीन किया, फिर ब्राम्हण को दान दे दिया. अत्याचारी राजा कार्तवीर्य अर्जुन का वध किया, इसके बाद भी धरती को एक बार नहीं 21 बार क्षत्रिय विहीन कर दिया. महाभारत के अनुसार, परशुराम का ऐसा क्रोध देखकर महर्षि ऋचिक ने साक्षात प्रकट होकर उन्हें ऐसे घोर कर्म से रोका था. तब जाकर उन्होंने क्षत्रियों का संहार करना बंद किया और इसके बाद सारी पृथ्वी ब्राह्मणों को दान कर दी और स्वयं महेंद्र पर्वत पर जाकर निवास करने लगे.
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लक्ष्मण से कर बैठ थे विवाद
भगवान परशुराम गुस्से के बहुत तेज थे और भगवान शिव के परम भक्त थे. रामायण काल में जब भगवान राम, माता सीता के स्वयंवर में गये, तो वहां उनसे प्रत्यंचा चढ़ाते हुए शिव धनुष टूट गया था. धनुष टूटने की आवाज सुनकर भगवान परशुराम भी वहां आ गए. चूंकि यह धनुष भगवान शिव था, इसलिए परशुराम जी को क्रोध आ गया और वह भगवान राम व लक्ष्मण से उलझ पड़े थे. लक्ष्मण से उनका संवाद विवाद में बदल गया था. कहते हैं परशुराम जी को अहंकार हो गया था, जिसका नाश करने के लिए भगवान ने यह सारा प्रसंग रचा था.
तोड़ दिया था श्री गणेश का एक दांत
एक बार परशुराम जी भगवान शिव से मिलने के लिए गये. चूंकि शंकर जी ध्यान में थे इसलिए श्रीगणेश ने परशुराम जी को रोक दिया. इस पर परशुराम जी इतना नाराज हो गये कि उन्होंने अपने फरसे से श्रीगणेश पर वार कर दिया. श्रीगणेश जी ने इस वार को झेलने के लिए अपना दांत आगे कर दिया. इस प्रकार उनका एक दांत टूट गया. तभी से गणेश जी को एकदंत भी कहा जाता है.
महाबलशाली थे लेकिन भीष्म से नहीं जीत सके थे
कथाओं के अनुसार एक बार भीष्म द्वारा हरण किये जाने के बाद जब काशीराज पुत्री अंबा को अपनाने से सभी ने मना कर दिया तो वह भीष्म के गुरु परशुराम के पास पहुंची और अपनी बात रखी. इस पर परशुराम ने भीष्म को अंबा से विवाह करने के लिए कहा, और जब वह नहीं माने तो उनके बीच भीषण युद्ध हुआ. अंत में उन्हें अपने पितरों की बात मानकर अस्त्र रखने पड़े. इस कारण वह भीष्म को नहीं हरा सके.
त्याग दी थी बत्तीस हाथ ऊंची सोने की वेदी
भगवान परशुराम जी ने अपने जीवन में ढ़ेरों यज्ञ किए. यज्ञ करने के लिए बत्तीस हाथ ऊंची सोने वेदी बनवायी थी. बाद में इस बेदी को महर्षि कश्यप ने ले लिया था और परशुराम से पृथ्वी छोड़कर चले जाने के लिए कहा था. तब परशुराम जी ने उनकी बात मान ली और समुद्र को पीछे हटाकर गिरिश्रेष्ठ महेंद्र पर चले गये.