इस्लाम धर्म को मानने वालों के लिए हज किसी सी सपने के बराबर होता है..इस्लाम धर्म को मानने वाले अपने जीवनकाल मे एक बार हज जरूर जाना चाहते है..और इसके लिए मुस्लिम समुदाय के लोग अपनी आमदनी बचत कर के रखते है..इस साल दुनियाभर के मुस्लिम मक्का पहुँच रहे है..
इस्लाम धर्म को मानने पांच चीजे निर्धारित की जाती है..और इन्ही पांच चीजो के आधार पर धर्म की नींव तैयार की जाती है..
हज पर जाने से पहले चार अन्य फर्ज है..जिसमे “तौहीद व शहादा”इसका मूल अर्थ होता है..’अल्लाह’ पर विश्वास करना की अल्लाह एक है मुहम्मद साहब अल्लाह के के द्वारा भेजे गए पैगम्बर है..
नमाज दिन में पांच वक़्त पढ़ना मुसलमानों के लिए अनिवार्य है..इसके अलावा रोजा रमजान के महीने में सूर्योदय होने से सूर्यास्त तक बगैर खाये पिये रहना..
वही जकात के कुरान के अनुसार हर मुसलमान अपनी वार्षिक आय में से 2.5 फीसदी हिस्सा गरीबो को दान कर देना चाहिए..
बता दे की हज पर जाने की कोई तयशुदा उम्र नही होती है..बच्चों से लेकर बूढ़े तक हज पर जा सकते है..लेकिन भारत से बच्चे और औरतें बगैर गार्जियन के हज पर नही पाते..वही अब औरतों को बगैर मेहरम यानी गार्जियन के हज पर जाने के नियम बनाये गए है..भारत मे पहली बार 1308 औरते इस बार बगैर मेहरम के हज पर गई है..
इस हप्ते मुस्लिम समुदाय की सबसे बड़ी सालाना तीर्थ यात्रा हज की शुरुआत मक्का शहर से होनी है..दुनिया मे ऐसी किसी भी दूसरी जगह से ज्यादा लोग मक्का में इकट्ठा होते है..रविवार 19 अगस्त से शुक्रवार 24 अगस्त यह तीर्थ यात्रा चलेगी…
हज का इतिहास..
हज की कहानी अब्राहम से शुरू होती है.कहा जाता है की अब्राहम अपनी पत्नी हाजरा बेटे इस्माइल को प्राचीन मक्का रेगिस्तान छोड़ने का आदेश मिला था..और अल्लाह इसी बहाने अब्राहम की परीक्षा लेना चाहते थे..यही नही जब अब्राहम ने अल्लाह का कहा मानकर हाजरा और इस्माइल को भूखे प्यासे रेगिस्तान में स्थित प्राचीन मक्का में छोड़ दिया तो बच्चे की प्यास मिटाने हाजरा ने पानी की तलाश मक्का की सफा और मरवाह के बीच पहाड़ियों के सात चक्कर लगाए थे..लेकिन उसे केवल निराशा ही हाथ लगी थी..और इसी दौरान तड़पते इस्माइल के पैर के थाप से वहां ताजे पानी का सोता निकल आया था..तथा उसी पानी को आबे ज़मज़म के नाम से जाना जाता है.. जिसे समुदाय के लोग काफी पवित्र मानते है…
कुरान की माने तो अब्राहम ने आगे चलकर वही पास की जगह पर एक काबा का निर्माण किया..काले पत्थर की एक छोटी सी इमारत बड़ी सी मस्जिद के केंद्र में है..जिसका हजरीन घड़ी की सुई की उल्टी दिशा में सात बार चक्कर लगाते है..इस दौरान लगातार अपने मन मे अल्लाह पर विश्वास विस्वास की बात बनाये रखता है..जिसे’तवाफ़’कहा जाता है..
काबा के चारों ओर चक्कर लगाने के अलावा हाजी हजरत अब्राहम के स्थान पर दो रक्कत नमाज़ भी अता करते हैं. वे सफा और मारवाह पहाड़ियों के बीच में हाजरा की पानी की खोज में जैसे भटकी वैसे घूमते हैं. फिर आबे जमजम पीते हैं. अराफात की पहाड़ी और मुज़दालिफा के मैदान पर रात में प्रार्थना करते हैं और शैतान का प्रतीक माने जाने वाले तीन खंभों पर पत्थर मारते हैं. ताकि वे शैतान को दिखा सकें कि वे उससे डरते नहीं हैं.
क्यों मनाई जाती है बकरीद?
धू-अल-हिजाह जो इस्लामिक कैलेंडर का आखिरी महीना होता है, उसके आठवें दिन हज शुरू होकर तेरहवें दिन खत्म होता है. ग्रेगोरियन यानी हमारे अंग्रेजी के कैलेंडर के हिसाब से यह तारीख हर साल बदलती रहती है, क्योंकि चांद पर आधारित इस्लामिक कैलेंडर, अंग्रेजी कैलेंडर से 11 दिन छोटा होता है.
ईद-उल-अजहा यानी बकरीद जो इस इस्लामिक महीने की 10 तारीख को मनाया जाता है. यह अब्राहम के अल्लाह के प्रति इस्माइल की कुर्बानी को दिखाता है. यह अल्लाह में सबसे ज्यादा विश्वास दिखाने का एक तरीका था. जिसे दैवीय शक्ति के जरिये उसे अपने बेटे की बलि देने के बजाए एक दुंबा (भेड़ जैसी ही एक प्रजाति) मिल गई थी, कुर्बान करने के लिए.
आज इसी कहानी के आधार पर जानवर की कुर्बानी दी जाती है. इसे तीन भागों में काटा जाता है. एक भाग गरीबों में दान कर दिया जाता है. दूसरा भाग दोस्तों और रिश्तेदारों को दे दिया जाता है. और बचा हुआ तीसरा भाग परिवार खाता है.
भारत से दो तरह से जा सकते हैं हज
हज पर कितने लोग जायेंगे यह सऊदी अरब ही तय करता है. हर देश के लिए सऊदी अरब लोगों का अलग-अलग कोटा तय करता है. वैसे हज पर जाने के दो रास्ते होते हैं. पहला रास्ता होता है सरकारी कोटे का. और दूसरा होता है प्राइवेट. साल 2017 में भारत से 1,70, 025 लोगों को हज पर जाने की परमिशन मिली थी. जिनमें से 1,25,025 लोग सरकारी थे. और बाकी के 45,000 लोग प्राइवेट कोटे से ट्रेवल एजेंट की मदद से हज पर गये थे. आजादी के बाद पहली बार भारत से रिकॉर्ड 1 लाख 75 हजार 25 मुसलमान हज 2018 के लिए जायेंगे. इस वर्ष हज पर जाने वालों में रिकॉर्ड 47 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं शामिल हैं.
क्या हज सुरक्षित है?
यूं तो सारी प्रक्रिया का अगर आप पालन कर रहे हैं तो हज सुरक्षित ही है. लेकिन चूंकि इतनी बड़ी संख्या में लोग वहां पहुंचते हैं को कई बार कुछ दुर्घटनाएं भी हो जाती हैं. ये दुर्घटनाएं कई बार शैतान को पत्थर मारने के दौरान होती हैं. मीना शहर में ही वे तीन दीवारें हैं जिन्हें शैतान का प्रतीक माना जाता है. और हज के दौरान मुस्लिम श्रृद्धालु उस पर कंकड़ी मारकर दिखाते हैं कि वे उससे डरने वाले नहीं हैं. सबसे ज्यादा लोग 1990 में हुए एक हादसे में मारे गए थे. इसमें कुल मरने वालों की संख्या 1426 थी.