सागर. Unique Cooler: दशकों पहले जब बिजली गांव-गांव तक नहीं पहुंची थी, कूलर पंखे नहीं होते थे। ऐसे समय में गर्मी से बचने बुंदेलखंड में हाथ से बने देसी पंखों का खूब इस्तेमाल होता था। इनका उपयोग कर आसानी से गर्मी से बचा जाता था। बुंदेलखंड में उपयोग होने वाले इन पंखों को बिजना कहा जाता हैं। सागर में बुंदेली म्यूजियम को तैयार करने वाले दामोदर अग्निहोत्री सत्यम कला एवं संस्कृति संग्रहालय में 46 तरह के हाथ से बने पंखे सहेजे हुए है। इनसे यहां की पारम्परिक लोककला और लोक जीवनशैली आदि को जानने समझने में मदद मिलती है।
बुंदेली लोक कला के दर्शन
पिछले 30 साल से बुंदेली चीजों को संग्रहित कर रहे दामोदर अग्निहोत्री बताते हैं कि बुन्देलखण्ड में धार्मिक, सामाजिक व पारिवारिक अवसरों पर बनाये जाते थे। हाथ से बनाएं गए पंखों पर स्वास्तिक, शुभ-लाभ, चंदा-सूरज, ढफली-रमतूला के चित्र और बेलबूटे, कपड़े के पंखों पर डोली में बैठी दुल्हन और बुन्देली वाद्य बजाते चित्रकारी करते थे, तो प्रकृति चित्रण से युक्त हाथ के पंखों को देखने से हमे अपने पूर्वजों का प्रकृति प्रेम और बुन्देली लोककला के विविध रूपों में दर्शन होते हैं।
हाथ से बने पंखों का ऐसे करते थे उपयोग
बुन्देलखण्ड में गर्मी से राहत पाने के लिए कुशा घास, खजूर पत्ती, कांस घास, तेंदू व पलास के पत्तों से हाथ के पंखे बनाये जाते रहे हैं, जो सभी सत्यम कला एवं संस्कृति संग्रहालय में संरक्षित हैं। गर्मी के दिनों में उन पंखों को पानी में गीला करके हवा करने पर कूलर जैसी ठंडी हवा प्राप्त होती है। इसे प्राकृतिक कूलर भी कह सकते हैं। ऐसे पंखों को एक बार गीला करने पर वह 30 से 35 मिनट तक ठंडी हवा प्रदान करते रहते हैं। इस प्रकार के घरेलू प्राकृतिक पंखों का उपयोग हमारे पूर्वजों द्वारा किया जाता रहा है। यह उनके अनुभव सिद्ध ज्ञान और उनकी प्राकृतिक जीवनशैली के जीवंत प्रमाण हैं।
पत्तों से लेकर मोर पंख तक के पंखे
कुसा घास का पंखा, मोर पंख का पंखा, कांस घास का पंखा, तेदू पत्ते का पंखा, सागौन पत्ते का पंखा, खजूर पत्ते का सादा पंखा, खजूर पत्ते का बुना (गोबा) पंखा, बांस से बने 12 प्रकार के कलात्मक पंखे, खादी कपड़े से बना पंखा, मेटी कपड़े से बना पंखा, क्रेप काटन का पंखा, कपड़े पर जरी बर्क वाला पंखा, आरसी जड़ित पंखा, सूती कपड़े से बना पंखा, राजदरवारों एवं ब्रिटिश कालीन सरकारी कार्यालयों में लगने वाले पंखे शामिल हैं।
विविध प्राकृतिक रंगों का उपयोग
दामोदर अग्निहोत्री बताते हैं कि हमारे पूर्वज हाथ से बने पंखों पर चित्रकारी भी करते थे और इसमें प्राकृतिक रंगों का उपयोग करने के लिए गाय के गोबर, छुई, सदा सुहागन के फूलों, सेम के पत्ते, खड़िया मिट्टी का रंग, गेवरी, हल्दी, चावल के आटे का रंगकुमकुम, महावर आदि चीजों का उपयोग किया जाता था।
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