मंदसौर. जिले में इन दिनों अफीम की फसल अपने पूरे शबाब पर है। अफीम के डोडो पर लुआई चिराई का काम किया जा है। किसान दिनभर खेतो में काम कर के अफीम की औसत देने में जुटे हुए है। लेकिन इन दिनों किसानों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत तोते और इसके साथ नील गाय बन रही है।अफीम किसान खेत के आसपास लोहे के तार और जालियां बांधकर किसी तरह नीलगायों को तो रोक लेते है। लेकिन तोते जैसे पक्षियों के लिए किसानों के पास कोई उपाय नहीं है।अफीम फसल के आसपास मंडराते तोते नशेड़ी हो गए है। हालांकि अब जिस हिस्से में अफीम की फसल खड़ी है किसानो ने उतने हिस्से में खेत के ऊपर जालियां लगाई है।
इसके बाद भी तोते जाली काट कर अफीम में घुस आते है। इन तोतो को अफीम की लत इस कदर लग चुकी है कि खेत में खड़ी अफीम का डोडा चंद सेकंड में काट कर ले जाते है। खेत में रखवाली करने वाला नही दिखता तो ढेरो तोते पुरे डोडे को ही चट कर जाते है। किसान बताते है कि इन अफीम तोतो को इसका नशा भी चढ़ता है। इसीलिए तोतो को मिर्ची से ज्यादा अफीम अफीम अच्छी लगने लगी है। उधर नील गाय भी अफीम के डोडे खाने के बाद ज्यादा हिंसक हो जाती है।
किसान ने तोतो के लिए खेतो के ऊपर जाल बांध रखी है। वही नीलगाय से बचाव के लिये खेत के आसपास लोहे की जलिया और पुराने कपड़े बांधे है । लेकिन इसके बाद भी किसानों का पूरा परिवार दिनरात अफीम की रखवाली करता है। लेकिन तोते सिर्फ अफीम पर ही अटेक करते है।
जिले में 19 हजार किसान, केंद्र के वित्त मंत्रालय ने लांसिंग और सीपीएस पद्दति से अफीम उत्पादन के लिए लाइसेंस जारी किए है। अफीम में औसत कम हुई तो पट्टा (लाइसेंस) कट (रद्द) कर दिया जाता हैं। केंद्र सरकार द्वारा किसानों को अफीम उत्पादन के लिए दस से बीस आरी तक के ही पट्टे (लाइसेंस) दिए जाते हे । जिसकी एक निश्चित औसत (अफीम में मार्जिन) किसानों को देना होती है। औसत कम होने पर अगली बार के लिए पट्टा (लाइसेंस) निरस्त कर दिया जाता है । कई बार तो किसानों को कम औसत के चलते कानूनी कार्रवाई भी झेलना पड़ती है।