देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में पंहुचे राष्ट्रपति

Devi Ahilyabai University INDORE

इंदौर

  • विश्व के प्रथम 100 में अपना स्थान बनाएँ भारत के विश्वविद्यालय

वैश्विक परिदृश्य में भारतीय विश्वविद्यालयों की उपस्थिति जरूरी है। विश्व की प्रथम 100 शैक्षणिक संस्थाओं में भारतीय विश्वविद्यालयों का स्थान होना चाहिये। भारतीय मेधा को भारत में ही पल्लवन का अवसर मिले। शोध को निरन्तर प्रोत्साहन मिलना चाहिये। विश्वविद्यालयों में परस्पर संवाद हो और स्थानीय औद्योगिक परिस्थिति के अनुकूल विश्वविद्यालयों में शिक्षा की सुलभता होना चाहिये। राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी आज इन्दौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे।

राष्ट्रपति ने कहा कि 80 वर्ष पूर्व एक भारतीय विश्वविद्यालय ने नोबल पुरस्कार विजेता को जन्म दिया था। डॉ. सी.वी. रमन के बाद एक शून्य बना हुआ है। डॉ. अमर्त्य सेन, डॉ. एस. चन्द्रशेखर, डॉ. हरगोविन्द खुराना जैसे नोबल पुरस्कार विजेता भारतीय विश्वविद्यालयों के स्नातक थे, परन्तु उन्हें विदेश के विश्वविद्यालयों में काम करते हुए पुरस्कार मिले और उनकी वैश्विक पहचान स्थापित हुई। ऐसा वातावरण हमारे देश के विश्वविद्यालयों में भी होना चाहिये। प्रत्येक विश्वविद्यालय का विश्व की उम्दा संस्थाओं से संवाद हो और वहाँ के मजबूत पक्षों के अनुसार हमारे यहाँ भी कार्य होना चाहिये। उन्होंने कहा कि आईआईएम कोलकाता और आईआईटी मुम्बई तथा मद्रास में कुछ संकाय विश्व के प्रथम 50 स्थान में शामिल हैं, लेकिन एक भी भारतीय विश्वविद्यालय विश्व के प्रथम 200 विश्वविद्यालय में शामिल नहीं हैं। अब समग्र रूप से कोशिश कर हमें भारतीय विश्वविद्यालयों को विश्व के प्रथम 100 उत्कृष्ट विश्वविद्यालय की सूची में लाना चाहिये।

राष्ट्रपति ने कहा कि विश्वविद्यालय स्थानीय औद्योगिक परिस्थिति के अनुरूप शोध और रोजगारमूलक पाठ्यक्रमों को बढ़ावा दें। मध्यप्रदेश के ग्रामीण अंचल में एक बड़ी आबादी निवास करती है। हमें उच्च शिक्षा की पहुँच यहाँ तक सुलभ करना होगी। उन्होंने आज उपाधि और पदक प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को जीवन में निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और अपनी मातृभूमि के लिए काम करने का आग्रह किया।

Devi Ahilyabai University
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लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन ने विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा के रूप में राष्ट्रपति का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि इन्दौर में पठन-पाठन की श्रेष्ठ परम्परा रही है और आने वाले दिनों में इन्दौर शिक्षा का बढ़ा केन्द्र बनकर उभरेगा।

राज्यपाल श्री रामनरेश यादव ने कहा कि आज राष्ट्रपति की उपस्थिति और उनके संदेश से विश्वविद्यालय अनुग्रहीत हुआ है। उन्होंने विद्यार्थियों से परिश्रम और समाज के लिये कल्याणकारी काम करने का आग्रह किया।

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह ने कहा कि राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी की विद्वता और राजनीति में आदर्श से उनके प्रति सहज ही श्रद्धा से शीश झुकता है। श्री चौहान ने विश्वविद्यालय को 50 वर्ष पूर्ण करने पर बधाई दी। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता जाहिर की कि आज पदक प्राप्त करने वालों में बेटियों की संख्या अधिक है। उन्होंने कहा कि भारत परम्पराओं और नैतिक मूल्यों का सनातन देश है। विद्यार्थी और युवा इन मूल्यों का अनुसरण करें। इन्दौर की देवी अहिल्या का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि उनके कर्म और सीख हमें प्रेरणा देते हैं। उनकी नगरी में आज हम यह संकल्प लें कि देवी अहिल्या की सीख का अनुसरण कर हम उनका नाम दिग-दिगन्त में व्याप्त करेंगे। विश्वविद्यालय से उन्होंने अपेक्षा जताई कि अब अंतर्राष्ट्रीय मापदण्ड पर खरा उतरकर वैश्विक दर्जा प्राप्त करें।

दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति के आगमन के साथ शोधार्थियों और पदक प्राप्त विद्यार्थियों के प्रगमन की आकर्षक भव्यता ने सबका मन मोहा। राष्ट्र गान से कार्यक्रम आरंभ हुआ। विश्वविद्यालय के कुलपति श्री डी.पी. सिंह ने स्वागत भाषण दिया। परम्परानुसार उन्होंने विद्यार्थियों को अलंकृत भाषा में दीक्षांत उपदेश प्रदान किया और नैष्ठिक जीवन की प्रतिज्ञा करवाई। राष्ट्रपति ने विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक और राज्यपाल ने विद्यार्थियों को रजत पदक प्रदान किये।

कार्यक्रम में प्रदेश के मंत्री द्वय श्री कैलाश विजयवर्गीय एवं श्री उमाशंकर गुप्ता तथा इन्दौर के महापौर श्री कृष्णमुरारी मोघे भी मौजूद थे।