फ़टाफ़ट डेस्क। आगरा पहचानों का शहर है। इस शहर की कई छोटी-बड़ी पहचान हैं। ताजमहल तो जग जाहिर है। बाकी पहचान छोटी पड़ जाती हैं। लेकिन आपके पेट से जुड़ने वाली एक पहचान बाकी है। वो है पेठे की पहचान है। पेठा मशहूर है और स्वादिष्ट भी। आगरा आने वाले पर्यटक चाहे विदेशी हों या घरेलू, पेठे का स्वाद लिए बिना अपनी यात्रा को अधूरा मानते हैं। वे वापसी में पेठा अपने साथ ले जाना नहीं भूलते।
आगरा को ”ताज नगरी’ के अलावा ‘पेठा नगरी’ भी कहा जाता है। जो भी शख़्स आगरा जाता है, तो वहां से इस लज़ीज़ मिठाई को लिए बिना वापस नहीं लौटता। यही वजह है कि आगरा को ‘ताज नगरी’ के साथ साथ ‘पेठा नगरी’ के रूप में भी जाना जाता है। चलिए इसी बात पर आज जानते हैं कि पेठा का इतिहास कितना पुराना है और कब पहली बार इसे बनाया गया था।
ताजमहल से भी पुरानी है पेठे की मिठाई
पेठा और ताजमहल दोनों एक दूसरे जुड़े हुए हैं. कहते हैं कि पेठा ताजमहल से भी पुराना है। इतिहासकारों के अनुसार, 17वीं शताब्दी में जब शाहजहां ताजमहल का निर्माण कर रहे थे, तब उसके निर्माण में लगे कारीगर रोज़ाना एक जैसा खाना खाकर उकता गए थे।
ताजमहल निर्माण के दौरान मजदरों ने बनाया पेठा
किवदंती है कि साल 1632 में ताज महल का निर्माण शुरू हुआ था उस समय भीषण गर्मी में करीब 20 हजार मजदूर पत्थरों के बीच में काम करके बुरी तरह थक जाते थे। तब इससे निजात पाने के लिए पेठे की मदद ली गई थी। गर्मी में मजदूरों के लिए सस्ता और तुरंत एनर्जी देने की वजह से पेठा आगरा की शान बन गया।
ताज महल का निर्माण साल 1653 में खत्म हो गया। तब पेठे के कारीगरों ने इसे अपना बिजनेस बना लिया और उसके बाद से ही पेठे की मिठास पूरे देश में फैल गई और इसे पूरे देश में बनाया और बेचा जाने लगा। कुछ लोगों का मानना है कि प्राचीन काल में पेठे की मिठाई का इस्तेमाल औषधी के रूप में किया जाता था।
शाहजहां की बेग़म मुमताज को भी पसंद था पेठा
इससे जुड़ी एक और कहानी है। इसके अनुसार शाहजहां की बेग़म मुमताज को पेठा बहुत पसंद था। खुद मुमताज ने उन्हें अपने हाथों से पेठा बनाकर खिलाया था। मुगल बादशाह को पेठे की मिठाई बहुत पसंद आई और उन्होंने अपनी शाही रसोई में इसे बनाने का ऐलान कर दिया था। इसके बाद खुद शाहजहां 500 कारीगरों के माध्यम से अपनी रसोई में पेठा बनवाने लगे।