भिंड/मध्यप्रदेश. भिंड चंबल क्षेत्र बीते कुछ वर्षों में मिलावट का सबसे बड़ा गढ़ बन चुका है। नकली मावा हो या मिलावटी पनीर कई माफिया तो कैमिकल से दूध तक बनाकर लोगों को जहर पिला रहे हैं। चंबल के भिण्ड जिले में बसा छोटा सा गांव कमई का पुरा शुद्धता का मिसाल बना हुआ है। जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित क्वारी नदी के किनारे बसा कमई का पुरा यादव बाहुल्य गांव है। इस गांव की पहचान यहां की मान्यता की वजह से है। यहां हर घर में कम से कम दो दुधारू मवेशी हैं, लेकिन एक बूंद भी दूध बेचने की हिम्मत नही है।
ग्रामीणों के मुताबिक उनके पूर्वज और आराध्य बाबा ने गांव में दूध की बिक्री की मनाही कर दी थी। गांव में रहने वाले एक बुजुर्ग ने बताया कि उनके आराध्य हरसुख बाबा में सभी को गहरी आस्था है। हरसुख बाबा ने समाधि लेने से पहले उनके पूर्वजों से कहा था कि कभी दूध नहीं काटना। खुद पीयो और दूसरों को पिलाओ, उनकी बात का पालन कई पीढ़ियां गुजरने के बाद भी यहां के लोग करते आ रहे है। आज भी इस गांव में कोई दूध नहीं बेचता है। अगर किसी गरीब या जरूरत मंद को दूध चाहिए भी तो उसे मुफ्त में ही दूध दे दिया जाता है।
एक अन्य ग्रामीण ने बताया कि अगर किसी को दूध चाहिए होता है तो हम बिना पैसे लिए मुफ्त में दूध उसे दे देते हैं, लेकिन बाबा की बात नहीं काटते। जब हमने ग्रामीणों से पूछा कि हर घर में दो मवेशी है तो इतना दूध निकालने पर उसका होता क्या है। जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि, हमे दूध बेचने की इजाजत नहीं है, लेकिन हम घी बेच सकते हैं वह भी बिल्कुल शुद्ध। इसलिए मवेशियों से निकाला गया दूध घर के उपयोग के लिए निकालकर बचे हुए दूध से मक्खन निकाला जाता है, पूरे हफ्ते इसी तरह मक्खन इकट्ठा किया जाता है और मंगलवार के दिन इस मक्खन से घी तैयार किया जाता है।
इस तरह दूध भी खराब नही होता और चार पैसे भी मिल जाते हैं। ग्राम कमई का पुरा में तैयार होने वाले घी की डिमांड बहुत है। बाजार में पैकेट वाला घी महज 500 रुपए किलो तक में उपलब्ध है। वहीं इस गांव से घी लेने के लिए लोग 1 हजार रुपए प्रति किलो तक कीमत चुकाते हैं और दूर दूर से घी मंगवाते है। गांव में लगभग 40 से 50 घर किसानी के अलावा इस तरह घी बनाकर अपनी गुजर बसर करते हैं।
इस परंपरा से हटकर एक सवाल खड़ा हुआ कि इस गांव का अगर कोई परिवार दूध बेचना शुरू कर दे तो क्या होगा। इस सवाल का जवाब देते हुए ग्रामीणों ने बताया कि हरसुख़ बाबा की बात को अनदेखा करना भारी नुकसान लाता है। जब भी गांव में किसी ने पैसों के बदले दूध काटना शुरू किया तो उसकी भैंस या मवेशी बीमार हो जाती है। दूध देना बंद कर देती है या मर जाती है। दूध में मिलावट नहीं होने का असर भी स्थानीय लोगों पर साफ नजर आता है, क्योंकि लोग हमेशा तरोताजा और स्वस्थ रहते हैं। जहां भिण्ड के कई ग्रामीण अंचलों में मिलावट माफियाओं ने अपना गढ़ बना लिया है।
जहां मिलावटखोर लोगों की जान से खिलवाड़ कर रहे है। ऐसे में कमई का पुरा गांव अपने आराध्य हरसुख बाबा के प्रति अपनी आस्था और गांव की मान्यता परंपरा के लिए अलग पहचान बना रहा है।