फेसबुक ने अपना बदलकर मेटा कर लिया है। कंपनियां सिर्फ नाम ही नहीं बदलती हैं, बल्कि वह अपने नाम को छोटा और सरल भी बनाती हैं। एपल ने वर्ष 2007 में अपने नाम से ‘कंप्यूटर’ शब्द को हटाया, जबकि 2011 में स्टारबक्स ने अपने नाम से ‘काफी’ शब्द हटाया। ऐसा तब किया गया, जब दोनों ही कंपनियों ने इन्हीं शब्दों की बदौलत पूरे विश्व में अपने को स्थापित किया है। हाल ही में गूगल ने अपना नाम बदला है। अब उसे अल्फाबेट के नाम से जाना जाता है।
कभी शेक्सपियर ने कहा था कि नाम में क्या रखा है, लेकिन जब भी कोई कंपनी शुरू होती है, तो उसके लिए नाम चुनना सबसे मुश्किल होता है। नाम चुनते समय हमें यह भी ध्यान रखना होता है कि कहीं यह नाम पहले से मौजूद तो नहीं हैं। दिक्कत तब और ज्यादा होती है, जब एक अरबों यूजर वाली स्थापित कंपनी अपना नाम बदलती है। फेसबुक ने ऐसा ही किया और उसने अपना नाम बदलकर मेटा कर लिया है। अब ऐसे में सवाल उठता है कि उसे अपने को रीब्रांड करने की जरूरत क्यों पड़ी? इसके पीछे कुछ वजहें हैं, जिनकी हम पड़ताल करेंगे।
सामाजिक दबाव
सामाजिक धारणाएं तेजी से बदलती हैं और कंपनियां इन परिवर्तनों का पहले से अनुमान लगाने की कोशिश करती हैं। टोटल और फिलिप मारिस जैसी कंपनियों द्वारा नाम बदले जाने के पीछे सामाजिक दबाव ही प्रमुख वजह थी। टोटल से टोटल एनर्जीस किए जाने के पीछे यही तर्क था कि अब कंपनी सिर्फ तेल और गैस का ही नहीं, बल्कि अक्षय ऊर्जा का भी कारोबार करती है। नाम बदलकर कंपनी ने अपने कामकाज में परिवर्तन का संकेत दिया। कुछ मामलों में कंपनियों द्वारा अपना नाम बदलने की वजह और छोटी होती है। जीएमएसी (जनरल मोटर्स एक्सेप्टेंस कारपोरेशन) सब प्राइम लैंडिंग और अमेरिकी सरकार द्वारा दिए गए बेलआउट पैकेज से अपने को जोड़ना नहीं चाहती थी। इस कंपनी को अब क्लीन स्लेट के नाम से जाना जाता है। वित्तीय सेवा देने वाली इस कंपनी ने वर्ष 2010 में अपनी सब्सिडियरी कंपनियों के साथ अपने को दोबारा रीब्रांड किया।
ग्राहकों का दोबारा विश्वास जीतने की कोशिश
घोटालों, गुणवत्ता में गिरावट और दूसरे कारणों के चलते ब्रांड समय के साथ अलोकप्रिय हो जाते हैं। जब ऐसा होता है तो कंपनी नाम बदलकर एक बार फिर से ग्राहकों का विश्वास जीतने की कोशिश करती हैं। कंपनी उस समय भी नाम बदलने का फैसला लेती हैं, जब उन्हें लगता है कि वर्तमान नाम उनके कामकाज को ठीक तरह से परिभाषित नहीं करता है।
आखिर फेसबुक ने अपना नाम क्यों बदला
हाल ही में वाट्सएप, इंस्टाग्राम और फेसबुक की सेवाएं बंद होने, घोटालों और नकारात्मक खबरों के चलते कंपनी की छवि खराब हो रही थी। सबसे खास बात यह थी कि इन सभी चीजों को मार्क जुकरबर्ग से जोड़कर देखा जा रहा था। जुकरबर्ग को कभी सिलिकान वैली का सबसे अच्छा सीईओ माना जाता था, लेकिन अब उनकी रैंकिंग काफी गिर गई है। इसके अलावा कंपनी मानती है कि प्राइवेसी के मुद्दों ने उसके राजस्व को प्रभावित किया है। कंपनी का विज्ञापन माडल लगातार जांच के दायरे में आ रहा है। साथ ही कंपनी मेटावर्स के निर्माण पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहती है। उसने पहली बार 2014 में अपनी महत्वाकांक्षाओं का संकेत दिया था, जब उसने वर्चुअल रियल्टी हेडसेट निर्माता ओकुलस का अधिग्रहण किया था। कर्मचारियों का एक बड़ा हिस्सा पहले से ही मेटावर्स अवधारणा को वास्तविक बनाने पर काम कर रहा है और अगले पांच वर्षों में यूरोप में 10,000 और लोगों को नियुक्त करने की योजना है। मेटावर्स शब्द का इस्तेमाल डिजिटल दुनिया में वर्चुअल और इंटरेक्टिव स्पेस को समझाने के लिए किया जाता है। मेटावर्स दरअसल एक वर्चुअल दुनिया है, जहां एक आदमी शारीरिक तौर पर मौजूद नहीं होते हुए भी मौजूद रह सकता है।
नाम बदलने से नहीं मिलेगा फायदा
फेसबुक द्वारा नाम बदलने के बाद भी वे मुद्दे उसका पीछा नहीं छोड़ेंगे, जिनसे वह जूझ रही है। वैश्विक बाजार अनुसंधान कंपनी फारेस्टर के वाइस प्रेसिडेंट और रिसर्च डायरेक्टर ने कहा कि अगर नई कंपनी उठाए गए मुद्दों को गंभीरता से नहीं लेगी तो उसकी छवि और खराब हो सकती है।
शुरुआत में गूगल था बैकरब
आज हम जिन लोकप्रिय डिजिटल सेवाओं का उपयोग करते हैं उनमें से कई कंपनियों का शुरुआत में नाम बिल्कुल अलग था। गूगल को ‘बैकरब’ इंस्टाग्राम को बार्बन के तौर पर जाना जाता था। ट्विटर के वर्तमान में ‘ई’ अक्षर बाद में लगाया गया।
कापीराइट भी बड़ी समस्या
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के नाम को लेकर लड़ाई बहुत दिलचस्प है। 1994 में वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड और वर्ल्ड रेसलिंग फेडरेशन के बीच एक समझौता हुआ कि वर्ल्ड रेसलिंग फेडरेशन इस नाम का उपयोग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं करेगी। हालांकि, बाद में यह समझौता तब टूट गया, जब कुश्ती कंपनी ने डब्ल्यूडब्ल्यूएफडाटकाम का पंजीकरण करा लिया। हालांकि, बाद में मुकदमा हारने के बाद उसने अपना नाम बदलकर डब्ल्यूडब्ल्यूई (वर्ल्ड रेसलिंग एंटरटेनमेंट) कर लिया।
मेटा मैटीरियल्स के शेयर छह फीसद ऊपर खुले
फेसबुक द्वारा नाम बदलने का सबसे ज्यादा फायदा मेटा मैटीरियल्स नाम की कंपनी को मिला। शुक्रवार को नैस्डेक में उसका शेयर छह फीसद ऊपर खुला। एक घंटे बाद इसमें 26 फीसद की तेजी देखी गई। हालांकि, फेसबुक के शेयर में मात्र 1.6 फीसद की तेजी दिखाई दी। बता दें कि जो इंटरनेट मीडिया और रेडिट का प्रयोग करते हैं, उनके बीच मेटा मैटीरियल्स पहले से ही लोकप्रिय है।