कभी आपने सुना है कि जिंदा लोगों का भी पोस्टमार्टम किया जाता है, लेकिन राजस्थान के दौसा जिले में ऐसा गिरोह पुलिस ने पकड़ा है। पुलिस ने गिरोह में शामिल 15 लोगों को गिरफ्तार किया है। पुलिस के अनुसार, वर्ष 2016 में यहां कोतवाली थाने में दिल्ली के रहने वाले अरूण नामक व्यक्ति की सड़क दुर्घटना में मौत होने का मामला दर्ज कराया गया। पुलिस की जांच में जांच अधिकारी रमेश चंद और पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर सतीश और एक वकील चतुर्भुज की मिलीभगत सामने आई।
पुलिस को ये मालूम चला कि अरुण नामक व्यक्ति की मौत हुई ही नहीं और वह अभी जिंदा है। इसके बावजूद एक्सीडेंट दिखाया गया और फर्जी पोस्टमार्टम भी दस्तावेजों में किया गया। ये सब धोखेबाजी बीमा कंपनी के सर्वर के जरिए 10 लाख रुपए का क्लेम लेने के लिए की गई, जो ले भी लिया गया।
मामले का पता लगने के बाद एसओजी और पुलिस ने वर्ष 2019 में डॉक्टर, पुलिस, वकील आदि को गिरफ्तार कर लिया था। पूछताछ के बाद की गई जांच में पता चला कि यह पहला मामला नहीं है बल्कि इस तरह के कई मामले मिले, जिनमें सड़क दुर्घटना नहीं होने के बावजूद भी कागजों में सड़क दुर्घटना दिखाई गई। गिरोह ने व्यक्ति को मृत बताकर फर्जी पोस्टमार्टम किया गया। इसके बाद मामलों की जांच सीआईडी सीबी और जयपुर रेंज आईजी कार्यालय के द्वारा भी की गई। लंबी जांच पड़ताल के बाद पुलिस ने कुल 3 मामलों का खुलासा किया है।
दौसा एसपी अनिल कुमार ने बताया कि 2016 में बेजवाडी निवासी रामकुमार मीणा का फर्जी एक्सीडेंट और फर्जी पोस्टमार्टम दिखाया गया, जबकि रामकुमार की मौत 3 माह पहले ही टीबी की बीमारी से हो गई थी। इसी तरह 2016 में भांवता गांव निवासी जनसीराम और नाथूलाल की मौत सड़क दुर्घटना में बताकर फर्जी पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार की गई थी, जबकि जनसीराम की हार्टअटैक से और नाथूलाल की मृत्यु कैंसर से हुई थी।
ऐसे में पुलिस ने इन मामलों में आरोपी डॉक्टर सतीश, एएसआई रमेश चंद और एडवोकेट चतुर्भुज सहित कुल 15 लोगों को गिरफ्तार किया है। इन तीनों मुख्य आरोपियों की गिरफ्तारी वर्ष 2019 में भी इसी तरह के एक प्रकरण में हो चुकी है। फर्जी क्लेम उठाने के मामले में अभी अन्य कई आरोपी फरार हैं।