बगहा. कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है. यह बात एक बार फिर साबित कर दिखायी है बगहा के एक छोटे से गांव के लोगों ने. गांव में जब मछलियां मरने लगीं और कोई खरीदार नहीं मिलने लगे तो इन्होंने ‘फिश पिकल’ यानी मछली का अचार बना शुरू कर दिया. छोटे से गांव की छोटी सी पहल आज मिसाल बन गई है. ‘फिश पिकल’ नया था. बिल्कुल पहली बार प्रयोग के तौर पर मझौवा की महिलाओं ने इसे बनाना शुरू किया, लेकिन आज ‘फिश पिकल’ से तकदीर बदलने लगी है.
बता दें कि कोरोना काल में मछलियों की मांग घटी तो महिलाओं ने मछली का अचार तैयार करना शुरू कर दिया. तब से लेकर अब तक उत्पादन इतना बढ़ चुका है कि चार से पांच क्विंटल प्रति वर्ष ‘फिश पिकल’ की खपत हो रही है. कोरोना काल में शुरू हुआ कारोबार अब उद्योग का रूप लेने की ओर है. गौरतलब है कि इसकी शुरुआत मझौवा के रामसिंह प्रसाद ने की थी. कारोबार में राम सिंह ने जीविका की महिलाओं को समूह बनाकर जोड़ दिया. फिर क्या था व्यापार तेजी से बढ़ने लगा.
अब तो आलम यह है कि घर में ही महिलाओं द्वारा तैयार ‘फिश पिकल’ बाजार में छाने लगा है और कई लोगों को रोजगार भी देने लगा है. 500 से 12 सौ रुपये प्रति किलो मछली का आचार बेच कर समूह की महिलाएं मालामाल हो रही हैं. प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद जीविका समूह की पुष्पा अब महिलाओं के सहयोग से गांव की तस्वीर बदलने में लगी हैं. समूह की महिला पुष्पा देवी बताती हैं कि सरकार से अगर सहयोग मिल जाए तो मछली के अचार का कारोबार गांव-गांव में खोला जा सकता है.
बगहा के एसडीएम दीपक मिश्र ने बताया कि मछली के अचार का उत्पादन निश्चित तौर पर ग्रामीण महिलाओं का सराहनीय कदम है. प्रशासन जो भी सहयोग होगा इस कारोबार को बढ़ाने के लिए जरूर करेगा. बिहार के साथ यूपी से मछली के आचार के लिए खूब ऑर्डर मिल रहे हैं. अब तो पैकिंग के लिए भी महिलाएं ऑनलाइन सामग्री मंगाकर अभियान को आगे बढ़ा रही हैं.