विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जब नोवेल कोरोना वायरस संक्रमण को वैश्विक महामारी घोषित किया था, उस बात को छह महीने हो जाने के बाद दुनिया किन हालात में है? WHO की इस घोषणा को कुछ लेटलतीफ माना गया था, लेकिन इसके बाद से ही Covid-19 की दवा या वैक्सीन खोजने की रेस जगज़ाहिर हो गई थी. दुनिया की करीब 7.8 अरब की आबादी एक ओर, वैक्सीन का इंतज़ार कर रही है, तो दूसरी ओर वैक्सीन विकास की यह रेस मानव इतिहास में वैज्ञानिक तरक्की के लिए भी एक चुनौती की तरह देखी जा रही है।
तकरीबन नौ महीने हो जाने के बाद महामारी के जवाब में, वैक्सीन के नाम पर हमारे पास अब तक रूस में विकसित हुई Sputnik V वैक्सीन है, जिसे रूस में मंज़ूरी मिल चुकी है। हालांकि यह विवादों में इसलिए रही क्योंकि रूस स्वास्थ्य विभाग ने इस वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल में इसके प्रभाव को जांचे बगैर ही मंज़ूरी दी। इसके अलावा इस वैक्सीन के ट्रायलों के सीमित होने को लेकर भी हो हल्ला रहा, ख़ैर।
अब इस रूसी वैक्सीन के अलावा देखें तो WHO डेटाबेस के मुताबिक दुनिया भर में कम से कम 34 और संभावित वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायलों के विभिन्न चरणों में हैं। इनमें से कितनी हैं, जो अंतिम चरणों में हैं और किस किसकी तरफ दुनिया उम्मीद से देख सकती है।
जहां से कोरोना वायरस की शुरूआत हुई, उस देश में Ad5-nCoV और CoronaVac, ये दो संभावित वैक्सीन विकसित हो चुकी हैं। इन दोनों को देश में सीमित इस्तेमाल की मंज़ूरी भी मिल चुकी है। इनमें से पहली वैक्सीन का विकास चीन की मिलिट्री मेडिकल अकादमी के साथ मिलकर कैनसिनो बायोलॉजिक्स ने किया है और दूसरी का निजी कंपनी सीनोवाक ने।
यही नहीं, Ad5-nCoV चीन की पहली वैक्सीन बन गई है, जिसे आविष्कार संबंधी पेटेंट के लिए भी चीनी अधिकारिेयों ने मंज़ूर किया। चीन की इन दोनों ही संभावित वैक्सीनों के ट्रायल आखिरी फेज़ों में अरब देशों, पाकिस्तान, ब्राज़ील और इंडोनेशिया में चल रहे हैं।
मॉडर्ना कंपनी की संभावित वैक्सीन mRNA-1273 रेस में अपना दावा बनाए हुए है। बीते 27 जुलाई को इस वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल शुरू हुए थे। इस वैक्सीन के विकास में सरकारी इंस्टिट्यूट का भी सहयोग है, जिसके ट्रायल अमेरिका में 89 जगहों पर चल रहे हैं। अगस्त के आखिर में ट्रंप प्रशासन ने मॉडर्ना के साथ डेढ़ अरब डॉलर से ज़्यादा की डील करते हुए इस वैक्सीन के 10 करोड़ डोज़ सुरक्षित किए थे। अप्रूवल मिलने के बाद करीब 12 करोड़ डोज़ मुहैया कराने के लिए मॉडर्ना कंपनी यूरोपीय संघ और जापान के साथ भी बातचीत कर रही है।
वैक्सीन की रेस में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और स्वीडन-ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राज़ेनेका की संभावित वैक्सीन भी चर्चा में है, अप्रूवल मिलने के बाद जिसके उत्पादन के लिए भारतीय कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट मुस्तैद है। यह भी गौरतलब है कि 1.5 अरब डोज़ प्रतिवर्ष उत्पादन की क्षमता रखने वाली सीरम दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता और विक्रेता कंपनी है।
अब इस संभावित वैक्सीन के पहले और दूसरे फेज़ में कामयाब होने के बाद तीसरे अहम फेज़ के ट्रायलों में इसका असर देखा जा रहा है। हालांकि पिछले दिनों ही इस वैक्सीन AZD1222 के ट्रायल को झटका लगा था, लेकिन दो ही दिन बाद फिर सब ठीक हो गया।
जर्मन, अमेरिकी और चीनी कंपनी मिलकर जिस BNT162 वैक्सीन का विकास कर रहे हैं, उसके एडवांस स्टेज के ट्रायल अमेरिका, ब्राज़ीन, अर्जेंटीना और जर्मनी में चल रहे हैं। इसके अलावा, और भी वैक्सीनें उम्मीद पैदा कर रही हैं :-
• चीन के वुहान इंस्टिट्यूट से एक वैक्सीन विकसित हो रही है, जिसके नाम का खुलासा नहीं हुआ है. इस वैक्सीन के तीसरे फेज़ के ट्रायल यूएई में जून के आखिरी हफ्ते में शुरू हुए थे.
• भारत में हैदराबाद बेस्ड भारत बायोटेक की ‘कोवैक्सीन’ रेस में बनी हुई है. इस वैक्सीन के विकास में भारत की स्वास्थ्य संबंधी शीर्ष राष्ट्रीय संस्थाएं शामिल हैं. शुरूआती फेज़ में कामयाब होने के बाद हाल में, जानवरों पर किए गए इसके परीक्षण के बारे में भी सफलता का दावा कर कहा गया कि इसके इस्तेमाल से इम्यून रिस्पॉंस बहुत अच्छा दिखा.
• यही नहीं, अहमदाबाद की फार्मा कंपनी ज़ायडस कैडिला की वैक्सीन ZyCov-D भी रेस में है। इस वैक्सीन के दूसरे फेज़ के ह्यूमन ट्रायलों की रिपोर्ट के बाद इसके 10 करोड़ डोज़ के उत्पादन की योजना है।
इन तमाम वैक्सीनों के इस अपडेट के बाद भी यह नहीं कहा जा सकता कि वैक्सीन सबके लिए पुख्ता तौर पर कब तक उपलब्ध हो सकती है। हालांकि इस साल के आखिर तक या अगले साल के शुरूआती महीनों में वैक्सीन के बाज़ार में आने की उम्मीदें और दावे किए जा रहे हैं, लेकिन WHO के मुताबिक इस बात की कोई गारंटी नहीं है।
हां, यह ज़रूर तय है कि चीन के बाहर किसी देश में अगर वैक्सीन विकसित होती है, तो भारत में ही इसका बड़ा उत्पादन हो सकता है। मार्केट रिसर्च फर्म IMARC के मुताबिक यूनिसेफ को कुल वैक्सीनों की सप्लाई का करीब 60% सिर्फ भारत ही मुहैया कराता है।