नई दिल्ली। देश में कोरोना संक्रमण से मरने वालों का आंकड़ा जितनी तेजी से बढ़ रहा है, उससे शवदाह गृहों में अंतिम संस्कार के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। हालात इतने खराब है कि शव जलाने के लिए अस्थायी प्लेटफार्म बनाए गए हैं फिर भी रात के दो-तीन बजे तक अंतिम संस्कार होने की खबरें आ रही हैं। दिल्ली से लेकर वाराणसी तक यही हाल है। सोशल मीडिया पर रांची समेत कई शहरों के श्मशान घाटों के ऐसे कई वीडियो वायरल हो रहे हैं जिसमें रात में धुंआ उठता दिखाई दे रहा है। दूसरी ओर, गुजरात के सूरत में हाल इतने खराब हो गए कि चौबीसों घंटे लगातार शव जलाए जाने से कई श्मशानों में शव जलाने के लिए बनी गैस भट्ठी के अंदर रखे लोहे के तख्ते पिघल गए। यहां हर दिन सौ से ज्यादा शव जलाए जा रहे हैं। आइए जानते हैं श्मशानों का हाल इस ग्राउंड रिपोर्ट में।
बुधवार को दिल्ली के सबसे बड़े कब्रिस्तान में दफनाये गए 11 शव
दिल्ली के सबसे बड़े कब्रिस्तान जदीद अहले कब्रिस्तान इस्लाम आईटीओ में कोविड 19 से मरने वालों के शव आने का सिलसिला जारी है। बुधवार को यहां 11 शव कोरोना से हुई मौत के थे। इसे एहतियात के साथ दफनाया जाता है। इस कब्रिस्तान के केयरटेकर मोहम्मद शमीम का कहना है कि कब्रिस्तान में इस साल के सबसे अधिक 17 शव मंगलवार को आए थे।
पूर्वी और दक्षिण निगम के श्मशान घाटों पर 79 शवों का अंतिम संस्कार
पूर्वी दिल्ली नगर निगम में बुधवार को कोविड और कोविड के संदिग्धों की मौत के बाद 29 शवों का और दक्षिण दिल्ली निगम में मंगलवार को कोविड के 50 शवों का विभिन्न श्मशान घाटों पर दाह संस्कार किया गया। इस तरह दोनों निगमों में 79 शवों का संस्कार किया गया।
पूर्वी दिल्ली निगम के मुताबिक बुधवार को शाम तक सीमापुरी श्मशान घाट पर 17 कोविड से हुई मौत और दो कोविड के संदिग्ध लोगों के शवों का अंतिम संस्कार किया गया। यहां कोविड के 16 प्लेटफार्म बनाए हुए हैं। गाजीपुर में आठ ओर कड़कड़डूमा श्मशान घाट पर दो कोविड शवों का संस्कार किया गया। इसके अलावा दक्षिण निगम में मंगलवार को 50 कोविड शवों का पंजाबी बाग, हस्तशाल, द्वारका सेक्टर 24 तथा लोधी कालोनी रोड श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार किया गया। पंजाबी बाग श्मशान घाट पर सबसे अधिक 27 शवों का संस्कार किया गया था।
लखनऊ : इतनी मौतें की लकड़ियां कम पड़ रहीं, रात दो बजे तक शवदाह
लखनऊ में पिछले तीन दिन से औसतन 80 संक्रमित मरीजों का शवदाह तीन शवदाह गृहों में किया जा रहा है। इतने अधिक शव हैं कि रात दो बजे तक शव जलाए जा रहे हैं जबकि हाल में बैकुंठधाम, भैसाकुण्ड और गुलाला घाट श्मशान घाटों पर शव जलाने के लिए 65 नए प्लेटफार्म बनाए गए हैं। इससे पहले शव जलाने के लिए इंतजार करना पड़ रहा था लेकिन विद्युत शवदाह गृह के लोड घटने के बाद अब अंतिम संस्कार के लिए वेटिंग खत्म हो गई है। दूसरी ओर, बहुत ज्यादा मौतें होने से 11 व 12 अप्रैल को जलाने के लिए लकड़ियां कम पड़ गई थीं लेकिन नगर निगम ने अगले दस दिन के लिए लकड़ी का स्टॉक कर लिया गया है। कब्रिस्तान में भी शवों को दफनाने के लिए जगह कम पड़ने लगी है।
वाराणसी: संस्कार कर देना भाई, कितना लोगे ये बताओ…
काशी के महाश्मशान पर जहां मृत्यु उत्सव की तरह दिखती थी वहां आज दहशत है। जीवन का अंतिम सत्य बखानने वाले पलभर भी रुकना नहीं चाहते। घाट की सीढ़ियों पर जगह-जगह रखे शव संस्कार के लिए घंटों-घंटों पड़े रहते हैं। बुधवार को कुछ ऐसे ही दृश्य रोंगटे खड़े कर रहे थे। कोरोना पीड़ितों के चार शव विशेष किट में रखे थे तो पास ही स्वाभाविक मृत्यु के शिकार दर्जनभर पार्थिव शरीर कफन और टिकठी में लिपटे पड़े थे। चौधरी समाज के आगे-पीछे लगे शवयात्रियों की भीड़ थी कि किसी तरह जल्दी नंबर लग जाए ताकि वे दहशतवाले माहौल से दूर चले जाएं। इस बीच कुछ लोग चौधरी से रुंधे गले बातचीत करते मिल जाते हैं, भाई संस्कार कर देना, कितना लोगे बता दो…। रकम तय हुई, नोट थमाया और निकल गए।
ऐसा माहौल पहले कभी नहीं
बुधवार, शाम के चार बजे हैं। हरिश्चंद्र घाट की पहली सीढ़ी से 50 मीटर पहले से ही शव रखे हैं, आसपास कोई नहीं है। शवों को खास तरह के मोटे कपड़े में लपेटा गया है, बगल में पीपीई किट, मास्क पड़े हैं जो वहां से गुजरने वाले लोगों को डरा रहे है और बता रहे हैं कि ये शव कोरोना संक्रमण से मृत लोगों के हैं। चंदौली से बुजुर्ग महिला का अंतिम संस्कार करने परिजन टेम्पो से शव लेकर पहुंचे। साथ में 10 लोग और आए। दोपहिया वाहनों से आए चार लोग घाट से पहले ही कोरोना मरीजों के शवों को देख दहल से गए। जिस शव के अंतिम संस्कार में आए थे, उनको दूर से मन ही मन प्रणाम कर लौट गये। अन्य चार परिजन खुद को बचाते आगे बढ़े। सीएनजी शवदाह गृह के मुख्य प्रवेश द्वार पर कोरोना मरीजों के चार शव संस्कार के इंतजार में पड़े हैं। उनके साथ आए परिजन मास्क पहने, हाथों में सेनेटाइजर लिये दूर खड़े हैं।
भयभीत हैं शवयात्री
बुजुर्ग महिला का शव लेकर लोग घाट पर पहुंचे। वहां भी लकड़ी पर कोरोना मरीजों के शवों का अंतिम संस्कार हो रहा था। करीब आधे घंटे इंतजार के बाद बुजुर्ग महिला के साथ आए परिजनों की हिम्मत टूट गई, संक्रमण का भय सताने लगा। चौधरी समाज के लोगों से बातचीत की, बोले-संस्कार कर देना भाई, कितना लोगे ये बताओ। रुपया हाथ में थमाया। हो जाएगा न कि और देना होगा। चौधरी समाज के दो युवाओं ने कहा, थोड़ा इंतजार कर लीजिए। परिजन बोले, देख के डर लग रहा है। हमारे साथ आए लोग भी घबरा रहे हैं। ठीक है पांच हजार और लगेगा। चौधरी समाज के एक बुजुर्ग ने बताया कि पिछले साल से भी ज्यादा डराने वाली स्थिति है। लोग अपने मां-बाप-भाई के शवों का बिना संस्कार किए ही चले जा रहे हैं। पैसे देकर किसी को सौंप दे रहे हैं। हाल तो यह है कि शव के साथ आने वाले काफी लोग घाट से आधा किलोमीटर दूर सोनारपुरा चौराहे पर ही ठिठक जा रहे हैं।
रोज दर्जनभर से ज्यादा संक्रमण के मृत लोगों का संस्कार
हरिश्चंद्र घाट पर कोरोना मरीजों की संख्या ज्यादा होने से वहां सामान्य रूप से शव लेकर आनेवाले लोगों में दहशत दिख रही है। घाट से पहले ही पूरे रास्ते कोरोना मरीजों के शवों को देख करीब एक सप्ताह से यहां का यही नजारा है। हरिश्चंद्र घाट पर कोरोना की दूसरी लहर की भयावहता देखी जा सकती है। केवल सीएनजी शवदाह गृह में प्रतिदिन एक दर्जन से ज्यादा कोरोना मरीजों के शवों का संस्कार हो रहा है। बनारस समेत पूर्वांचल के शव भी शामिल हैं।
मणिकर्णिका घाट पर तीन गुना बढ़ा लोड
मणिकर्णिका घाट पर भी शवों के संस्कार के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। हालात ये है कि शवदाह स्थल से लेकर सीढ़ियों तक शव को रखकर लोग अंतिम संस्कार के लिए बारी का इंतजार करते रहे हैं। जितने शव जलाए जाते हैं उससे चार गुना ज्यादा रखे मिलते हैं। चौधरी परिवार से जुड़े लोगों का कहना है कि पिछले पांच दिनों से यहां पर आनेवाले शवों की संख्या में अचानक तेजी आ गई। सामान्य दिनों में पहले प्रतिदिन 80 से 100 शव जलाए जाते थे। अब यहां संख्या 300 तक पहुंच जाती है।
यहीं बिके थे राजा हरिश्चंद्र
हरिश्चंद्र घाट सत्यवादी महाराज हरिश्चंद्र के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि यहां अपनी सत्यनिष्ठा के लिए महाराज ने स्वयं को डोमराजा के हाथों बेच दिया था। यही नहीं, बताते हैं कि सिद्ध संत बाबा कीनाराम ने यहां साधना भी की थी। इस घाट पर भी मणिकर्णिकाघाट की भांति ही चौबीस घंटे शवदाह किया जाता है। हरिश्चंद्र घाट पर वाहनों की पहुंच आसान है। यहां घाट की सीढ़ियों तक चौड़ी सड़क होने के कारण वाहन आसानी से पहुंच जाते हैं। यहां सीएनजी शवदाह गृह भी है। जहां तय शुल्क लिया जाता है, जो लकड़ी से संस्कार की अपेक्षा काफी कम है। इन सभी कारणों से यहां ज्यादा लोग पहुंचते हैं। इन दिनों इस घाट का महत्व ज्यादा बढ़ गया है, कारण कोरोना संक्रमण से मृत लोगों को लेकर स्वास्थ्य विभाग की एंबुलेंस सीधे शवदाह गृह तक पहुंच जाती है।
मेरठ: पीपीई किट के बिना ही अंतिम संस्कार को मजबूर
मेरठ में अंतिम संस्कार के लिए एक ही प्रमुख स्थान है सूरजकुंड लेकिन मृतकों की बढ़ती तादाद और पीपीई किट न मिलने के कारण यहां दहशत की स्थिति है। बुधवार को भी दोपहर में एंबुलेंस से महिला पार्थिव शरीर पहुंचा, जिसे एंबुलेंस से उतारने के लिए कोई आगे नहीं आया, जैसे-तैसे परिजनों ने शव उतारा। पुरोहित हरीश का कहना है कि पीपीई किट न मिलने से संक्रमितों के शव का अंतिम संस्कार करने में डर बढ़ गया है। हालांकि, मेरठ और सहारनपुर मंडल के अन्य जिलों में अंतिम संस्कार की उचित व्यवस्था है।
प्रयागराज: संक्रमित शवों के लिए अलग दाह का इंतजाम नहीं
इस बार कोरोना संक्रमितों के अंतिम संस्कार का श्मासन घाटों पर अलग से इंतजाम नहीं किया गया है जबकि अब शवदाह की संख्या बढ़कर दोगुनी हो गई है। दारागंज और रसूलाबाद घाट के अलावा विद्युत शवदाह गृह में भी हर दिन लगभग 20-20 शव जलाए जाते थे, यह संख्या तीनों शवदाह गृहों में बढ़कर दोगुनी हो गई है। संक्रमित शवों के लिए अलग से स्थान न बनाए जाने के कारण गैर संक्रमित शवों को जलाने आने वाले परिजनों में ज्यादा गुस्सा है और संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ रहा है।
कानपुर: 35 नए प्लेटफार्म बनाने पर भी रात तक अंतिम संस्कार
कानपुर के बिठूर से जाजमऊ के सिद्धनाथ घाट में शवों को जलाने के लिए 35 नए अस्थाई प्लेटफॉर्म बनाए गए हैं लेकिन यहां इतनी मौतें हो रही हैं कि विद्युत शवदाह गृह में रात 12 बजे तक शव जलाए जा रहे हैं। इसके लिए कर्मचारियों की दो पालियों में ड्यूटी लगायी गई है, हालांकि लकड़ियों से होने वाले अंतिम संस्कार सूर्यास्त तक ही हो रहे हैं। दूसरी ओर, चिंता की बात यह है कि बिठूर से सिद्धनाथ घाट तक असंक्रमित शवों की संख्या भी रोजाना औसतन 150 पहुंच चुकी है। इस कारण 13 अप्रैल को लकड़ियों की कमी हो गई थी।
झारखंड: रातभर शव जलने से शवदाहगृह के बर्नर हुए खराब
रांची। रांची में गैस से चलने वाले सिर्फ एक शवदाह गृह है। आम दिनों में अंतिम संस्कार करने कम ही लोग यहां जाते हैं। इस शवदाह गृह को कोरोना से मरने वालों के लिए सुरक्षित रखा गया है, लेकिन पिछले चार दिन से इसका बर्नर खराब हो गया है। इस कारण यहां अंतिम संस्कार रोक दिया गया। एक दिन में यहां 21 शव को पूरे सात घंटे तक इंतजार करना पड़ा। जब बर्नर नहीं बना तो आनन- फानन में रांची नगर निगम की ओर से नामकुम में एक श्मशान घाट( घाघरा) को तैयार किया गया और देर रात 2.30 बजे तक एक दिन में 52 शवों का अंतिम संस्कार किया गया।
उत्तराखंड : फिलहाल काबू में हालात
उत्तराखंड में कोरोना से मरने वाले मरीजों की संख्या अभी तक बहुत कम है। इसलिए अंतिम संस्कार में कोई दिक्कत नहीं आ रही है।
मध्य प्रदेश : स्टाफ कम हुआ तो बागवान को कोरोना जांच की जिम्मेदारी दे दी
यह मामला रायसेन जिले के सांची के सरकारी अस्पताल का है। यहां कोरोना के बढ़ते मरीजों के कारण स्टाफ घटने पर एक बागवानी करने वाले व्यक्ति को कोरोना जांचें करने की जिम्मेदारी दे दी गई। इस लापरवाही की जानकारी भी सोशल मीडिया के जरिए सामने आयी। इस मामले में ब्लॉक मेडिसिन अफसर ने कहा कि स्टाफ की कमी व कुछ के संक्रमित होने के कारण हमें कुछ लोगों को प्रशिक्षित करना पड़ा है। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के तीन जिलों में इस वक्त संपूर्ण लॉकडाउन की स्थिति है।
महाराष्ट्र : चिताएं कम पड़ने पर कई शव एक साथ जलाए
देश में सबसे ज्यादा संक्रमण महाराष्ट्र में फैला है जहां शवों को जलाने के इंतजामों की सबसे ज्यादा कमी सामने आ रही है। यहां के बीड़ जिले में इसी कमी के चलते आठ संक्रमित शवों को एक साथ जला दिया गया। पहली लहर की तरह ही यहां शव बदल जाने और शवों के अंतिम संस्कार में सम्मानजनक तरीका न अपनाने के कई मामले आ चुके हैं।
छत्तीसगढ़ : जगह कम पड़ी तो एक के ऊपर एक कई शव रख दिए
रायपुर के डॉ. भीमराव आंबेडकर मेमोरियल हॉस्पिटल में यह भयाभय हाल सामने आया जिसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल होने का बाद हंगामा मच गया। तब प्रशासन ने बताया कि उनके मुर्दाघर में शवों को रखने के लिए जगह ही नहीं बची, इस कारण मुर्दाघर के अलावा बरामदे में भी शव रखने पड़े।
बिहार : श्मशान घाटों पर शवों की कतार
पटना। कोविड-19 से संक्रमित मरीजों की मौतों का सिलसिला बढ़ने से पटना के श्मशान घाटों पर भी शवों की कतारें लगनी शुरू हो गई हैं। शहर के बांस घाट और पटना सिटी के गुलबी घाट पर जिला प्रशासन की ओर से कोविड-19 से संक्रमित मृतकों के शवदाह की व्यवस्था की गई है, जबकि खाजेकलां घाट की शवदाह मशीन खराब है। बुधवार की सुबह 8 से शाम करीब सात बजे तक बांस घाट पर 12 तथा गुलबी घाट पर 8 लोगों के शव जलाये गये। बांस घाट पर शवों के जलाने के लिए लोगों को एक से डेढ़ घंटे तक बारी का इंतजार करना पड़ा, जबकि गुलबी घाट पर दोनों मशीनें चालू होने से शवों को बारी-बारी से जलाया जा रहा था।