फ़टाफ़ट डेस्क। इसे अंधविश्वास नहीं तो और क्या कहेंगे। लोगों ने कोरोना से बचाव के लिए आस्था की राह पर चलकर यूपी के प्रतापगढ़ के एक गांव में कोरोना माता की मूर्ति स्थापित कर दी। हैरानी तो इस बात की है कि ग्रामीण मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए भी पहुंच रहे हैं। हालांकि मंदिर में प्रवेश के लिए बनाए गए नियम लोगों को संक्रमण के प्रति जागरूकता का संदेश दे रहे हैं।
कोरोना संक्रमण ने लोगों के जेहन में खौफ पैदा कर दिया है। परेशान लोगों ने अब आस्था की राह अपनाई। सांगीपुर के पूरे जूही (शुकुलपुर) में महामारी से तीन मौतें हुईं तो लोग डर गए। गांव के लोकेश श्रीवास्तव की पहल के बाद ग्रामीणों ने सात जून को कोरोना माता की मूर्ति स्थापित कराई। विशेष ऑर्डर पर तैयार कराई मूर्ति को गांव में नीम के पेड़ के पास स्थापित कर इसे कोरोना माता मंदिर का नाम दिया गया। ग्रामीणों का मानना है कि पूर्वजों ने चेचक को माता शीतला का स्वरूप माना था अब कोरोना भी देवी माता का ही रूप है। हालांकि जानकारों का कहना है कि जब समाज बीमारी या फिर महामारी से हार जाता है तो भयभीत होकर पूजा-अर्चना करने लगता है।
मूर्ति से जागरूकता का संदेश देने की पहल
महामारी से बचने को भले ही ग्रामीणों ने आस्था का सहारा लिया है, लेकिन मूर्ति के जरिए ग्रामीणों को जागरूक करने की कोशिश की गई है। मूर्ति के चेहरे पर मास्क लगा है। इसके अलावा दर्शन करने के लिए आने वालों को दोनों हाथ धुलाने के बाद ही प्रवेश दिया जाता है। इसके जरिए यह संदेश भी ग्रामीणों को दिया जा रहा है कि वे हमेशा मास्क लगाएं और हाथ धुलते रहें।
सांस्कृतिक विश्वास का परिणाम
डॉ. एमपी शर्मा, मनोचिकित्सक, जिला अस्पताल, प्रतापगढ़ कहते हैं कि कोरोना माता की मूर्ति स्थापित किया जाना सांस्कृतिक विश्वास का परिणाम है। इस मंदिर में विज्ञान और आस्था दोनों साथ-साथ चल रही है। आस्था से पूजा तो विज्ञान से मास्क और हाथ धुलने की सीख दी जा रही है। आस्था प्रधान देश है ऐसे में लोग दवा के साथ दुआ भी करते आए हैं। अगर लोगों की भीड़ जुट रही है तो उन्हें कोरोना प्रोटोकाल की सीख भी दी जानी चाहिए।