नई दिल्ली. पति के आधार कार्ड की जानकारी पत्नी मांग सकती है या नहीं या फिर पत्नी के पास इसकी जानकारी एकतरफा हासिल करने का हक है भी या नहीं, इसे लेकर हाईकोर्ट का एक बड़ा फैसला आया है. कर्नाटक हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि कोई पत्नी केवल वैवाहिक संबंधों के आधार पर अपने पति के आधार डेटा की जानकारी एकतरफा नहीं मांग सकती है, जो कानून के वैधानिक ढांचे के भीतर गोपनीयता अधिकारों की स्वायत्तता और सुरक्षा पर जोर देती है. इतना ही नहीं, कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि शादी से पति की निजता का अधिकार कम नहीं हो जाता है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, जस्टिस एस सुनील दत्त यादव और जस्टिस विजयकुमार ए पाटिल की खंडपीठ ने कहा कि शादी से आधार कार्डधारक की निजता का अधिकार कम नहीं होता है और निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए. दरअसल, कर्नाटक हाईकोर्ट का यह फैसला हुबली स्थित एक महिला की याचिका के जवाब में आया, जिसमें महिला ने अपने से अलग रह रहे पति का आधार नंबर, इनरॉलमेंट डिटेल और फोन नंबर मांगा था. महिला ने दलील दी थी कि पति की डिटेल नहीं होने की वजह से उन्हें पारिवारिक अदालत (फैमिली कोर्ट) के भरण-पोषण वाले आदेश को लागू करने में कठिनाइ हो रही है.
दरअसल, इस कपल ने नवंबर 2005 में शादी की थी और उनकी एक बेटी है. दोनों के बीच रिश्ते में आई परेशानियों के बाद महिला ने कानूनी कार्यवाही शुरू की थी, जिसके बाद पारिवारिक अदालत ने उन्हें भरण-पोषण के रूप में 10,000 रुपये और उनकी बेटी के लिए अतिरिक्त 5,000 रुपये दिए जाने का आदेश दिया था. महिला ने अपने पति के अज्ञात ठिकाने के कारण पारिवारिक अदालत के आदेश को लागू करने में चुनौतियों की सूचना दी थी. मदद की गुहार लगाते हुए उसने यूआईडीएआई यानी भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण से भी संपर्क किया, मगर उसका आवेदन 25 फरवरी, 2021 को खारिज कर दिया गया.
इसके बाद महिला ने राहत की उम्मीद लिए हाईकोर्ट की एकल पीठ का रुख किया और इसके बाद 8 फरवरी, 2023 को महिला के पक्ष में कोर्ट का फैसला आया. एकल पीठ ने यूआईडीएआई को उसके पति को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया. इतना ही नहीं, यूआईडीएआई को आरटीआई के तहत महिला की याचिका पर विचार करने को भी कहा. महिला ने तर्क दिया कि विवाह का तात्पर्य पहचानों के विलय से है, जो जीवनसाथी की जानकारी तक उसकी पहुंच को उचित ठहराता है. हालांकि, हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों का हवाला दिया और कहा कि किसी भी खुलासे से पहले दूसरे व्यक्ति को भी अपना पक्ष रखने का हक है.
हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा, ‘विवाह द्वारा संबंध, जो दो पार्टनर्स का मिलन है, निजता के अधिकार को प्रभावित नहीं करता है, जो कि एक व्यक्ति का अधिकार है, और ऐसे व्यक्ति के अधिकार की स्वायत्तता धारा 33 के तहत विचार की गई सुनवाई की प्रक्रिया द्वारा मान्यता प्राप्त और संरक्षित है. विवाह अपने आप में आधार अधिनियम की धारा 33 के तहत प्रदत्त सुनवाई के प्रक्रियात्मक अधिकार को खत्म नहीं करता है. हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा कि धारा 33 के तहत निर्णय एक नॉन डेलिगेबल ड्यूटी (प्रत्यायोजित दायित्व) है और मामले को नए सिरे से विचार करने के लिए एकल पीठ को भेज दिया.