Loco Pilot Test: सामान्य व्यक्ति जब आफिस पहुंचता है तो उसकी किसी तरह की जांच नहीं होती है। आफिस में बायोमेट्रिक कर सीधे अपना काम शुरू कर देता है, लेकिन ट्रेन चलाने वाले लोकोपायलट के साथ ऐसा नहीं होता है। उसे ड्यूटी ज्वाइन करने से पहले और खत्म करने के बाद एक अनिवार्य जांच से गुजरना पड़ता है। इस जांच की रिपोर्ट ठीक आने के बाद ही उसे ट्रेन चलाने की इजाजत दी जाती है। आइए जानें, यह अनिवार्य जांच कौन सी होती है और क्यों कराई जाती है?
इंडियन रेलवे लोको रनिंगमैन आर्गनाइजेशन (आईआरएलआरओ) के वर्किंग प्रेसीडेंट संजय पांधी बताते हैं कि लोको पायलट की नौकरी चुनौतीपूर्ण है। मौजूदा समय भयंकर कोहरे में या भीषण गर्मी में गर्म हवा के थपेड़ने झेलने हुए सुरक्षित ट्रेन चलाना होता है। चूंकि ट्रेन में हजारों लोगों की जिम्मेदारी होती है, इसलिए उसे ट्रेन चलाने से पहले ब्रेथ एनालाइजर जांच से गुजरना होता है। इससे यह पता लगाया जाता है कि उसने ड्रिंक तो नहीं कर रखी है। नियम के अनुसार ड्यूटी ज्वाइन करने से आठ घंटे पहले ड्रिंक नहीं करनी चाहिए।
लोकोपायलट की जांच केवल ट्रेन चलाने से पहले ही नहीं होती है, बल्कि ड्यूटी खत्म करने के बाद एक बार दोबारा से ब्रेथ एनालाइजर जांच से गुजरना पड़ता है। इससे यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि ट्रेन चलाने के दौरान लोको पायलट ने ड्रिंक तो नहीं की है। अगर वो रास्ते में ड्रिंक करेगा तो ड्यूटी से लौटने के बाद जांच में आ जाएगा। इस तरह लोको पायलट ड्यूटी शुरू करने से पहले और खत्म करने के बाद दो बार इस जांच से गुजरता है।
ये हो सकती कार्रवाई
अगर कोई लोकोपायलट ऑन ड्यूटी ड्रिंक करता है और ब्रेथ इनलाइजर टेस्ट एल्कोहल पाया जाता है तो यूरिन और ब्लड की जांच कराई जा सकती है। यह रिपोर्ट तय मानकों के अनुसार नहीं आती है तो लोको पायलट को चार्जशीट दे दी जा सकती है और कार्रवाई की जा सकती है।
ये भी होती हैं जांच
लोको पायलट की नौकरी शुरू करने से लेकर 45 वर्ष की उम्र तक प्रत्येक चार साल में फुल बॉडी जांच होती है। इसके कलर ब्लाइंडनेस से लेकर कई ऐसी जांचें होती हैं जो ट्रेन चलाने से संबंधित होती हैं। वहीं 45 से लेकर 55 वर्ष तक प्रत्येक दो वर्ष में और 55 से 60 तक प्रत्येक वर्ष यह जांच करानी अनिवार्य होती है।