देश दीपक “सचिन”
देश के प्रधानमंत्री द्वारा गुडगवर्नेंस को बढ़ावा देने के लिए भ्रष्टाचार विरोधी कई नियम बनाए जा रहे है और नई सरकार आने के बाद विभिन्न विभागों की कार्यप्रणाली भी काफी तेज दिखने लगी है. सरकार ने जहाँ नोटबंदी कर भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने का बड़ा कदम उठाया है वही छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेश में भी आयकर विभाग EOW और ACB की कार्यवाही तेज हुई है. ऐसे में प्रधानमंत्री के विजन को और सशक्त करने के लिए मीडिया जगत को भी खोजी पत्रकारिता की ओर पुनः अग्रसर होने की आवश्यकता दिख रही है 17 साल पहले हुए तहलका काण्ड जैसे खुलासे की जरूरत देश और प्रदेश में है. हालाकी तहलका ने बड़े पैमाने पर खुलासे किये थे लेकिन आज हर प्रदेश और हर जिले में काली कमाई जमा कर रहे अधिकारियों के खिलाफ तहलका काण्ड को दोहराने की जरूरत आन पडी है. क्योकि संविधान के अनुरूप जब इन भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्यवाही होती है तो ये क़ानून का सहारा लेकर खुद को बचा लेते है और अमूमन देखा गया है की रिश्वतखोरी के आरोप में अधिकारी बरी हो जाते है और दोबारा फिर वही काम करते है और देश के धन को दीमक की तरह चाटते है. लिहाजा तहलका जैसे काण्ड के बाद इन अधिकारियों में दोबारा ऐसा करने का भय तो पैदा किया ही जा सकता है. आज यह लिखने की जरूरत सिर्फ इसलिए महसूस हो रही है क्योकि सरकार बदलने के बाद देश बदला है देश में काम के तरीके बदले है कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं हुआ है जो होना चाहिए वही किया जा रहा है लेकिन जो अन्य सरकारे नहीं कर सकी वो मोदी सरकार ने किया है बहरहाल जब सरकार के काम का तरीका बदला है तो मीडिया भी अपने काम के तरीके को बदल कर सरकार का सहयोग क्यों नहीं कर सकती..? हालाकी कुछ विचारको ने इसे पत्रकारिता के दौर का जंगल राज भी बताया है पर क्या अपराध को उजागर करना जंगलराज है.? फिर क्यों अपराध नियंत्रण में आम जन से सहयोग की उम्मीद की जाती है.?
क्या है तहलका काँड..?
दिल्ली, सन् 2001 के मार्च महीने के मध्य में एकाएक गरमा गई. ये गरमी थी तहलका कांड की और इसकी आंच ने संसद के शीतकालीन सत्र को भी झुलसा दिया था. दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में दोपहर दो बजे शुरु हुई तहलका वेबसाइट की एक प्रेस कांफ़्रेंस में मौजूद पत्रकारों और कुछ जाने-माने लोगों को ये इल्म भी नहीं था अगले आधे घंटे में उन्हें जो तस्वीरें दिखाई जाने वाली थीं वो भारतीय राजनीति के कुछ शर्मनाक पहलुओं को उजागर करेंगी.जब तहलका टीम ने अपने छह महीने की मेहनत को एक बड़े टीवी पर्दे पर दिखाना शुरु किया तो वहां मौजूद लोग स्तब्ध रह गए. तहलका ने इस खोजी मुहिम को ऑपरेशन वेस्ट एंड का नाम दिया. इसमें तहलका के दो पत्रकारों को हथियारों के सौदागर के रुप में कई बड़े राजनेताओं और सेना के कुछ आला अफ़सरों को घूस देते हुए और रक्षा मंत्रालय के कई ख़ुफ़िया रहस्यों के बारे में खुल्लमखुल्ला बातचीत करते दिखाया गया था.
बंगारू लक्ष्मण
तहलका के इस खोजी कारनामे के पहले शिकार बने बीजेपी अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण. ख़ुफ़िया तौर पर फ़िल्माई गए तहलका के फ़ुटेज में उन्हें एक लाख रुपए की घूस लेते दिखाया गया. शाम होते-होते उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया.बंगारू लक्ष्मण तहलका के फ़ुटेज को अपने और पार्टी और सरकार के ख़िलाफ़ एक राजनीतिक साज़िश क़रार दिया. लेकिन जब तमाम टेलीविज़न समाचार चैनलों ने बंगारू लक्ष्मण को एक लाख रुपए लेते हुए दिखाया तो बीजेपी की साख को गहरा धक्का पहुंचा. संसद के दोनों सदनों में विपक्ष ने सरकार को घेरा और उसके इस्तीफ़े की मांग की.
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन
ऐसा नहीं था कि तहलका के इस खोजी कारनामे की लपटों में सिर्फ़ बीजेपी नेता ही झुलसे. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के एक प्रमुख घटक दल समता पार्टी की अध्यक्ष और रक्षा मंत्री जॉर्ज फ़र्नांडिस की क़रीबी जया जेटली को भी तहलका फ़िल्मों में हथियारों के सौदागर बने पत्रकारों से बात करते दिखाया गया. समता पार्टी के पूर्व कोषाध्यक्ष आरके जैन भी तहलका के पर्दाफ़ाश के घेरे में आए. इसी तरह तहलका के पत्रकारों ने सेना के कुछ बड़े अफ़सरों के कारनामे भी उजागर किए. सरकार ने एक मेजर जनरल समेत चार वरिष्ठ सेना अधिकारियों को निलंबित कर दिया. लेकिन विपक्षी पार्टियां इससे संतुष्ट नहीं थीं. उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्री जॉर्ज फ़र्नांडिस को भी इस्तीफ़ा देना चाहिए. रक्षा मंत्री के इस्तीफ़े की मांग को लेकर एनडीए में भी दरार पड़ गई. इस मांग को लेकर तृणमूल कांग्रेस एनडीए से अलग हो गई और ममता बनर्जी ने रेल मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था.इस तरह तहलका के खड़े किए राजनीतिक तूफ़ान ने जहां ऊंचे पदों पर भ्रष्टाचार को उजागर किया वहीं एनडीए सरकार की साख पर भी एक सवाल खड़ा कर दिया.
जांच आयोग
वाजपेयी सरकार ने तहलका मुद्दे पर इस्तीफ़ा देने से इनकार कर दिया. कुछ दिनों की टालमटोल के बाद रक्षा मंत्री जॉर्ज फ़र्नांडिस ने इस्तीफ़ा दे दिया. उनकी पार्टी समता पार्टी की अध्यक्ष जया जेटली पहले ही इस्तीफ़ा दे चुकी थीं.प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दूरदर्शन पर राष्ट्र के नाम संबोधन में तहलका मामले में सरकार पर लगे आरोपों को पिछले 50 सालों में किसी भी सरकार पर लगे सबसे गंभीर आरोप बताया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक जज से इस मामले की जांच के आदेश दिए.लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने किसी जज को जांच के लिए नियुक्त करने से इंकार कर दिया. इसके बाद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज के वेंकटस्वामी को इस मामले की जांच करने का आदेश दिया.तहलका कांड से भारतीय सेना की साख पर भी धब्बा लगा. सेना ने एक अलग जांच आयोग बनाकर इस पूरे मामले की छानबीन करने का फ़ैसला किया.
काण्ड में टर्न
इस तरह तहलका वेबसाइट को खोजी पत्रकारिता को पुनर्जीवित करने का श्रेय दिया गया. वेबसाइट के प्रमुख संपादक तरुण तेजपाल का कई जगह सार्वजनिक रुप से सम्मान भी किया गया.लेकिन अगस्त में दिल्ली से छपने वाले इंडियन एक्सप्रेस ने पूरे तहलका मामले के एक अलग ही पहलू को उजागर किया.अख़बार ने लिखा कि तहलका ने सनसनीखेज रहस्योदघाटन करने में वेश्याओं का इस्तेमाल भी किया और कई सैनिक अधिकारियों की इन वेश्याओं से एक पांच सितारा होटल में मुलाकात भी करवाई.इस तरह पूरे मामले ने एक नया मोड़ ले लिया. तहलका से पहले से ही नाराज़ बैठी समता पार्टी ने वेबसाइट पर हमला तेज़ कर दिया. संसद के दोनों सदनों में सत्ता पक्ष ने तरुण तेजपाल के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की मांग भी की.पत्रकारिता जगत में भी एक नई बहस खड़ी हो गई कि खोजी पत्रकारिता में किन-किन तरीक़ों का इस्तेमाल किया जाना जायज़ है. साथ ही पत्रकारिता से जुड़े नैतिकता के मुद्दों को भी उठाया गया.
कुछ और तहलके
ये कोई पहला मौक़ा नहीं था जब तहलका वेबसाइट ने ख़ुफ़िया कैमरों की मदद से सनसनीखेज रहस्योदघाटन किए हों. क्रिकेट में मैच फ़िक्सिंग को लेकर भी तहलका वेबसाइट ने वर्ष 2000 में पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी मनोज प्रभाकर की सेवाएं लेते हुए मैच फ़िक्सिंग से जुड़े कई तथ्य उजागर किए थे. लेकिन उस वक़्त तहलका के इस तहलके को ज़्यादा अहमियत नहीं दी गई. वैसे मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई. लेकिन इस जांच में अभी तक कुछ भी नहीं निकला.