फटाफट डेस्क. 28 दिसंबर आज ही का वो दिन है जब भारत के प्रसिद्ध उद्योगपति धीरूभाई अंबानी और भारतीय उद्योगपति रतन टाटा का जन्म का जन्म हआ था. टाटा का जन्म 28 दिसंबर “1937” में हुआ. वही धीरुभाई अंबानी का जन्म 28 दिसंबर “1932” में हुआ. भारतीय उद्योग जगत में देखा जाए तो सबसे मजबूत स्तंभ में आज भी धीरूभाई अंबानी और रतन टाटा का नाम हमेशा सबसे ऊपर आता है. आज हम आपको दोनो के जीवन की रोचक किस्सें बताएंगे.
धीरूभाई अंबानी फुटपाथ पर बेचते थे फल
छोटी उम्र में धीरूभाई अंबानी फुटपाथ पर फल बेचते थे. जवानी में पेट्रोल पंप पर 300 रुपये महीने की नौकरी मिल गई. उनकी मेहनत और लगन को देखते हुए 2 साल बाद मालिक ने उन्हें मैनेजर बना दिया. यहां से उन्हें भी बिजनेस करने का आइडिया मिला. इतनी कम सैलरी में भी वह चाय पीने के लिए 5 स्टार होटल जाते थे. जब उनसे कारण पूछा गया तो बताया कि वहां पर बड़े-बड़े लोगों से बिजनेस का आइडिया मिलता है.
रतन टाटा एक-एक पायदान ऊपर चढ़ते चले गए
रतन टाटा 1962 में टाटा समूह से जुड़े. उन्हें पहली नौकरी टेल्को (अब टाटा मोटर्स) के शॉप फ्लोर पर मिली. धीरे-धीरे अपनी योग्यता के दम पर वह टाटा समूह में एक-एक पायदान ऊपर चढ़ते गए. वह 1981 में टाटा इंडस्ट्रीज के चेयरमैन बनाए गए और उन्हें जेआरडी का उत्तराधिकारी चुन लिया गया. उनकी अगुवाई में टाटा समूह का रेवेन्यू 100 बिलियन डॉलर के पार निकल गया. नमक और चाय के घरेलू उत्पादों से लेकर एयर इंडिया तक उन्होंने अपनी जड़ें जमा दीं.
स्टॉक मार्केट के दलालों को घुटनों पर ले आए थे धीरूभाई
ये उस दौर की बात है जब लोग शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करते तो थे, लेकिन ग्रोथ के लिए नहीं, बल्कि डिविडेंड्स के लिए. अधिकतर कंपनियों का उद्देश्य मुनाफा कमाना हुआ करता था. और शेयरहोल्डर्स को इस मुनाफे की एवज में डिविडेंड्स मिल जाया करते थे. फिर 70 और 80 के दशक में एक आदमी ने इस खेल को पूरी तरह बदल डाला. इस शख्स का नाम था धीरू भाई अंबानी (Dhirubhai Ambani). अंबानी किसी भी हाल में अपने शेयर्स की कीमत में कमी आने देने को तैयार नहीं थे. इसी का नतीजा हुआ कि 90 का दशक आते-आते रिलायंस से 24 लाख निवेशक जुड़ चुके थे.
एक बार रतन टाटा का हुआ था अपमान
एक बार जब रतन टाटा ने अपने पैसेंजर कार बिजनेस को Ford Motors को बेचने का फैसला किया. तो लग्जरी कार निर्माता कंपनी Ford के चेयरमैन Bill Ford ने उनका मजाक उड़ाया था. फोर्ड ने अपमान करते हुए कहा था, ‘तुम कुछ नहीं जानते, आखिर तुमने पैसेंजर कार डिविजन क्यों शुरू किया? अगर मैं ये सौदा करता हूं तो ये तुम्हारे ऊपर बड़ा एहसान होगा.’ फोर्ड चेयरमैन के ये शब्द रतन टाटा के दिन में तीर की तरह लगे. लेकिन उनके चेहरे पर ये भाव नहीं आए और उन्होंने शालीनता से बिल फोर्ड की बात सुनने के बाद मन ही मन बड़ा फैसला कर लिया. अपने अपमान के बाद भी रतन टाटा शांत रहे और उन्होंने कोई त्वरित प्रतिक्रिया नहीं की. उसी रात वे मुबंई के लिए वापस लौट आए. उन्होंने इस अपमान को लेकर कभी किसी से कोई जिक्र नहीं किया, बल्कि अपना पूरा ध्यान कंपनी के कार डिविजन को बुलंदियों पर पहुंचाने में लगा दिया. उनकी मेहनत रंग लाई और करीब नौ साल बाद यानी 2008 में उनकी टाटा मोटर्स दुनिया भर के मार्केट में छा चुकी थी और कंपनी की कारें वेस्ट सेलिंग कैटेगरी में सबसे ऊपर आ गई थीं.