Parasnath Singh
Published: September 24, 2014 | Updated: September 1, 2019 1 min read
अम्बिकापुर
पितृ पक्ष पखवाडा के महत्व का संगोष्ठि का आयोजन महामना मालवीय मिशन द्वारा राजनारायण द्विवेदी (प.हरला महाराज) के निवास स्थान पर संपन्न हुआ, जिसमें नगर के प्रबुद्ध एवं विद्यवतजनो ने अपना-अपना मत रखा। कार्यक्रम में श्रीमद् भागवत गीता के 13वें अध्याय का सामुहिक पाठ वाचन किया गया। इस अवसर पर ललित मोहन तिवारी ने कहा कि आत्मा ही परमात्मा का स्वरूप है हिन्दी सांस्कृति के अनुसार प्रतिवर्ष अश्वनी माह मे प्रौष्ठपदी या भाद्रपदी से ही श्राध्य आरंभ किया जाता है। इन्हें 16 श्राध्य भी कहते है। हिन्दु धर्म में कहा गया है कि पितरो अर्थात पूर्वजो के शुभ-अशुभ कर्मो का फल पुत्र को मिलता है। मनोज सपतथी ने कहा कि मनुष्य को देव ऋण, पितृ ऋण एवं गुरू ऋण से छुटकारा पाना होता है जिसे इस पक्ष में श्रद्धा भाव से जल, तिल से तरपण कर पितृो को पूजन करते है जिससे मनुष्य अपने पितृ ऋण से उत्तीर्ण होता है। दूर्गा प्रसाद तिवारी ने प्रश्न करते हुए कहा कि जब आत्मा ही परमात्मा है तो कोई साधु, सन्यासी, गृहस्थ आदि कैसे बन जाता है जिसका प्रति उत्तर देते हुए ब्रम्हा शंकर सिंह ने बताया कि कर्म प्रधान विश्व करी राथा जो जस करई तसई फल चाखा अर्थात कर्म के प्रधानता के अनुसार मनुष्य का आचरण बनता है। पं.रामनरेश पाण्डेय ने कहा कि जनम-जनम मुनी जतन कराहीं अंत राम कहु आवत नाही अर्थात आदि काल मे भी देव ऋषि मुनी, सन्यासी को अंतिम क्षणो में ईश्वर का दर्शन नही हो पाता था। तात्पर्य यह है कि अपने कर्मो को सम्र्पण भाव रखकर कार्य करना चाहिए, अहम का त्याग करना चाहिए। डाॅ.उमा सिन्हा ने पितृ पक्ष में दान एवं दर्पण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बाढे पुत्र पिता के धर्मे, खेती बाढे अपने कर्मे अर्थात पितृो के द्वारा किये गये कर्मो का फल संतान को मिलता है जिसे हम व्यवहारिक जीवन मे भी देख सकते है। श्रीमती सीमा
तिवारी ने कहा कि मनुष्य में 28 प्रकार का इन्द्रीय विकार होता है जो मनुष्य के मन वाणी, नेत्र, रस आदि के माध्यम से बाहर आता है। सुरेन्द्र गुप्ता ने गीता महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गीता के पाठ करने से व्यक्ति के व्यवहार और स्वभाव में परिवर्तन आता है। मालवीय जी के जीवन में गीता का प्रभाव देखने को मिलता है। देवेन्द्र दुबे ने बताया कि गीता पढने से आत्म विश्वास बढ़ता इससे मनुष्य का समस्त विकारो का नाश होता है। मदन मोहन मेहता ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण गीता मे कहा है कि मन मे आसक्ति रखकर कोई कार्य न करें। श्रीमती आशा पाण्डेय ने पारिवारिक संस्कार के महत्व को बताते हुए कहा कि हिन्दु धर्म ग्रन्थो के अनुसार पूरे विश्व को बसुद्धेव कुटुम्बकम कहा गया है जिससे पूरे संसार को भाई चारा का संदेश जाता है। माधव शर्मा ने तर्पण श्राध्य का महत्व बताते हुए कहा कि पितृ पक्ष में मुख्यतः तीन कार्य किया जाता है। पिण्ड दान, दर्पण और ब्राम्हण भोजन। मनुष्य से जीतना संभव हो यथा शक्ति करना चाहिए। रणवीजय सिंह तोमर ने कहा कि श्रीमद् भागवत गीता मे कहा गया है कि संसार में दो प्रकार के प्राणी है। पहला नाशवान और दूसरा अविनाशी। नाशवान मनुष्य है और अविनाशी आत्मा। पितृ पक्ष में मनुष्य नाशवासन व्यक्ति की आत्मा को स्मरण करता है इससे परिवार में पूर्वजो के प्रति श्रद्धा का अहोभाव बढ़ता है। श्रीमती गीता द्विवेदी ने कहा कि पितृ पक्ष पखवाडा के माध्यम से मनुष्य अपने अतीत को याद करता है। रामजतन सिन्हा ने कहा कि अपने इष्ट के प्रति निष्ठ होकर कार्य करें तो फलदायी होता है। रामलखन सोनी ने पितरो को देव तुल बताया। जैसे हम त्यौहारो में भगवत स्वरूप को याद करते है उसी तरह इस मास में पितरो को याद कर दर्पण एवं पूजन करते है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए पं.राजनारायण द्विवेदी ने कहा कि पितृ पक्ष में अपने परिवारिक पृष्ठ भूमि की अतीत का याद करने का अवसर मिलता है जिससे नई पिढ़ियों में अपने पूर्वजो एवं कुल खंदान की कृतियां प्रकाशित होती है। पं.भूपेन्द्र तिवारी ने बताया कि धर्म ग्रन्थो के अनुसार देवताओं से पहले पितरो को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है। वायु पूराण, मतस्य पुराण, विष्णु पुराण, गरूण पुराण आदि ग्रन्थो में श्राघ्य कर्म का उल्लेख मिलता है। आभार प्रदर्शन सत्यम द्विवेदी ने किया। कार्यक्रम में ज्वाला वर्मा, आर.बी. गोस्वमी, डाॅ. अनिल सिन्हा, अनूज पाण्डेय, डाॅ. कृष्ण मोहन पाठक, मनोज पाण्डेय आदि उपस्थित रहे।