रायपुर. सीताफल का स्वाद आखिर कौन नही लेना चाहता. इसकी मिठास और स्वाद इतना बढ़िया है कि सीजन में इस फल को हर कोई स्वाद चखना चाहता है. यह फल जितना मीठा है, उतना ही स्वादिष्ट और पौष्टिक भी है. कांकेर जिले में इस फल की न सिर्फ प्राकृतिक रूप से खूब पैदावार हो रही है, हर साल उत्पादन एवं विपणन भी बढ़ रहा है. कांकेर के सीताफल की अपनी अलग विशेषता होने की वजह से ही अन्य स्थानों से भी इस फल की डिमांड आ रही है. स्थानीय प्रशासन द्वारा सीताफल को न सिर्फ विशेष रूप से ब्रांडिंग, पैकेजिंग एवं मार्केटिंग में सहयोग कर इससे जुड़ी महिला स्व सहायता समूह को लाभ पहुंचाने का काम किया जा रहा है. उन्हें आत्मनिर्भर बनने का अवसर भी दिया जा रहा है. इसी का परिणाम है कि इस वर्ष सीताफल का ग्रेडिंग और संग्रहण करने वाली स्व सहायता की महिलाओं एवं इससे जुड़े पुरुषों को लगभग 25 लाख रुपये तक की आमदनी होने की उम्मीद है. प्रशासन द्वारा कांकेर वैली फ्रेश सीताफल के रूप में अलग-अलग ग्रेडिंग कर 200 टन विपणन का लक्ष्य रखा गया हैं.
वैसे तो सीताफल का उत्पादन अन्य जिलों में भी होता है लेकिन कांकेर जिला का यह सीताफल राज्य में प्रसिद्ध है. यहाँ प्राकृतिक रूप से उत्पादित सीताफल के 3 लाख 19 हजार पौधे हैं, जिससे प्रतिवर्ष अक्टूबर से नवम्बर माह तक 6 हजार टन सीताफल का उत्पादन होता है. यहां के सीताफल के पौधौ में किसी भी प्रकार के रासायनिक खाद या कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता है. यह पूरी तरह जैविक होता है. इसलिए यह स्वादिष्ट होने के साथ पौष्टिक भी होता हैं. यहां से प्राकृतिक रूप से उत्पादित सीताफल को आसपास की ग्रामीण महिलाएं एवं पुरूष संग्रह कर बेचते आ रहे हैं. इससे थोड़ी बहुत आमदनी उनको हो जाती थी. लेकिन उन्हें पहले कोई ऐसा मार्गदर्शक नही मिला जो मेहनत का सही दाम दिला सके. कुछ कोचिए और बिचौलियों द्वारा औने-पौने दाम में वनवासी ग्रामीण संग्राहकों से सीताफल खरीदकर अधिक दाम में बेचा जाता था. इसे देखते हुए जिला प्रशासन द्वारा संग्राहकों को आर्थिक लाभ के साथ आत्मनिर्भर बनने की राह बताई गई. स्वसहायता समूह के माध्यम से सीताफल को बाजार तक पहुचाने के उपाय बताए गए. इसके लिए महिलाओं को प्रशिक्षण और साधन उपलब्ध कराकर स्थानीय लोगों को वास्तविक फायदा पहुंचाने की पहल की गई.
अब स्थानीय संग्राहक गांव में ही सीधे स्वसहायता समूह की महिलाओं को सीताफल विक्रय कर उचित दाम प्राप्त करते है. समूह से जुड़ी महिलाएं रायपुर, धमतरी सहित दुर्ग भिलाई के मरीन ड्राइव, मंडी एवं अन्य शहरों में सीताफल बेचकर लाभ कमा रही है. शासन की पहल पर वन विभाग द्वारा स्वसहायता समूह की महिलाओं को पैकेजिंग और वाहन की सुविधा प्रदान की गई है. एक अलग मिठास लिए इस सीताफल का स्वाद अन्य राज्यों के लोगों तक भी पहुंच चुकी है. यही वजह है कि कुछ बड़े व्यवसायी इसे कोलकाता तक विक्रय के लिए ले जाना चाहते है. इस संबंध में शासन की ओर से कलकत्ता और वारंगल में सीताफल विक्रेताओं की बात हो रही है, वहां लगभग 5 से 10 टन सीताफल की मांग की गई है.
राज्य सरकार द्वारा स्वसहायता समूह की महिलाओं को सीताफल के पैकेजिंग, विपणन और सीताफल पल्पिंग के प्रशिक्षण के लिए कार्यशालाओं का आयोजन भी किया गया. सीताफल संग्रहण के लिए 28 सीताफल कलेक्शन सेंटरो में विशेष ट्रैनिंग दिया गया है. वर्तमान में काँकेर, चारामा और नरहरपुर विकासखंड के 77 ग्रामों में कलेक्शन पॉइन्ट बनाकर महिला समूहों के माध्यम से सीताफल संग्रह का कार्य शुरू कर दिया गया है तथा सड़क के किनारे बैठने वाले सीताफल विक्रेताओं को भी स्वसहायता समूह के माध्यम से सीताफल बेचने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. उम्मीद की जा रही है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष सीताफल का दुगुना व्यवसाय महिला स्वसहायता समूह के माध्यम से किया जाएगा.
काँकेर वेली फ्रेश सीताफल के ब्रांड नाम से सीताफल की ग्रेडिंग कर मार्केटिंग के लिए प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराया जा रहा है. काँकेर वेली फ्रेश का सीताफल 20 किलोग्राम के कैरेट और एक किलोग्राम के बॉक्स में बिक्री के लिए उपलब्ध है. प्रशासन द्वारा सीताफल की खरीदी महिला स्वसहायता समूह के माध्यम से हो सके इसके लिए विशेष व्यवस्था की गई हैं. संग्राहकों के साथ ग्रेडिंग करने वाली महिलाओं को लाभ पहुंचाने और सीताफल आसानी से सभी लोगों तक पहुंच सके इस दिशा में भी कदम उठाया गया हैं. यहाँ संग्रहण एवम ग्रेडिंग से जुड़े लोगों के अलावा कांकेर के लोगों को भी खुशी है कि प्रशासन के इस पहल से स्थानीय लोगों को लाभ मिलने के साथ उनके जिले के सीताफल की पहचान लगातार बढ़ती जा रही है.