NGO डकार गए क्षय विभाग के लाखो रुपये…

अम्बिकापुर 

“दीपक सराठे की विशेष रिपोर्ट”

अम्बिकापुर में टीबी की बीमारी को लेकर सरगुजा की मैदानी हकीकत से अधिकारी अनजान नहीं है। हर माह इस बिमारी से ग्रसित लोगों का आंकड़ा सैकड़ा पार कर रहा है। दूसरी ओर वर्षों से इस बिमारी को लेकर सरगुजा में काम करने का दावा करने वाली गैर शासकीय संस्थाओं ने अब तक सिर्फ कागजों में सारे काम किये और लाखों रूपये का भुगतान उन्हें कर दिया गया। सरगुजा की इस कड़वी हकीकत के सामने आने के बाद क्षय विभाग के आला अधिकारीयो ने सख्त रूख अपनाने की योजना तो बना ली है परंतु  एक हकीकत यह भी है कि शासन भी इन गैर शासकीय संस्थाओं की असलियत जानकर इस बार बजट के रूप में एक ढेला तक नहीं दिया है।

ताज्जुब की बात यह है कि क्षय विभाग के पास पिछले वर्षों से गैर शासकीय संस्थाओं के भुगतान का तो रिकार्ड है, परंतु धरातल पर उनके द्वारा टीबी बिमारी को लेकर क्या काम किया गया उनका रिकार्ड कागजों के ताने बाने में ही उलझ कर रह गया है या फिर उलझा कर रख दिया गया है। सच्चाई अधिकारी भी जानते हैं कि काम कुछ नहीं हुआ और लाखों के बिल सिर्फ पुराने अधिकारियों की सांठगांठ से पास होते गये। पूर्व के अधिकारियों की कमीशनबाजी के चलते आज तक योजनाओं को पलीता लगता आ रहा था।

गौरतलब है की अधिकारिक जानकारी के अनुसार सरगुजा में टीबी जैसी बिमारी को लेकर शासन से कई लाख रूपयों का बजट हर वर्ष आता रहा है।  सरगुजा के बीहड़ व दूर दराज इलाकों में टीबी से ग्रसित मरीजों को उपचार के लिये जागरूक करने से लेकर बलगम इकट्ठा कर उसे क्षय विभाग तक जांच के लिये पहुंचाने का जिम्मा 2009 से लेकर 2015-16 तक लगभग 6 गैर शासकीय संस्थाओं को दिया गया था। इनमें 2011-12 की बात करें तो छत्तीसगढ़ प्रचार एव विकास संस्थान, होलीनूर वेलफेयर सोसायटी, सबरी फाउंडेशन, आंचलिक शैक्षणिक क्षेत्र, विकास समिति, सरई सोसल एक्शन रिसर्ज एण्ड एडवोकेसी इंस्टीट्युट संस्थाओं को सरगुजा क्षेत्र में टीबी उन्मूलन के लिये काम करने का बीड़ा सौंपा गया था।

 

वहीं धरातल पर काम न करते हुये कागजों में टीबी के मरीजों व बलगम अस्पताल तक पहुंचाये गये। ताज्जुब तो यह है कि इन संस्थाओं के काम का कोई खास रिजल्ट न होते हुये भी इन्हें वर्ष 2011-12 में लाखों रूपये का भुगतान विभाग ने किया है। अधिकारिक आंकड़े के अनुसार 2011-12 में छत्तीसगढ़ प्रचार एवं विकास संस्थान को 305896, होलीनूर वेलफेयर सोसायटी को 84000, सबरी फाउंडेशन को 84000, आंचलिक शैक्षणिक क्षेत्र विकास समिति को 102892 व सरई सोशल एक्शन रिसर्च एण्ड एडवोकेसी इंस्टीट्पूर को 309660 रूपये का भुगतान किया गया, जो सवालों के घेरे में है। वहीं वर्ष 2013-14 की बात करें तो छत्तीसगढ़ प्रचार एवं विकास संस्थान से 247465 रूपये का भुगतान भी किया गया। लाखों के इस भुगतान के एवज में इस ओर में किये गये कार्यों की अगर सूक्ष्मता से जांच की जाये तो कमीशन के सारे खेल का खुलासा आसानी से किया जा सकता है। बहरहाल गैर शासकीय संस्थाओं के द्वारा धरातल पर कोई भी काम नहीं किये जाने से शासन ने भी इस  बार का बजट फिलहाल तक नहीं भेजा है। सरगुजा जैसे आदिवासी अंचलों में पिछले सात माह में 556 टीबी क मरीजों के सामने आने की बात अधिकारियों ने स्वीकार की है। गैर शासकीय संस्थाओं के बिना ही विभाग के कर्मचारियों ने इन मरीजों को जागरूक कर अस्पताल तक पहुंचाया है। समझा जा सकता है कि संस्थाओं के भरोसे पिछले वर्षों में विभाग ने सिर्फ सांठगांठ कर शासन के रूपयों का किस तरह से इस्तेमाल किया है।