अम्बिकापुर..(उदयपुर/क्रांति रावत)..ग्राम सभा के फर्जी प्रस्ताव के सहारे परसा कोल परियोजना की स्वीकृति प्रक्रियाएं और हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोल प्रभावित 20 ग्राम सभाओं के विरोध के बावजूद खदानों के खोले जाने की तैयारी के विरोध में पिछले 14 अक्टूबर से सरगुजा, सूरजपुर और कोरबा जिले के सैकड़ों आदिवासियों और अन्य ग्रामीणों के लगातार धरना प्रदर्शन से अदानी कंपनी में खलबली होने लगी है. करीब डेढ़ महीने से चल रहे विरोध प्रदर्शन को तोड़ने अब तरह-तरह की तरकीब अपनाई जा रही हैं.
सबसे पहले अंबिकापुर-बिलासपुर हाईवे में सूरजपुर जिला में स्थित ग्राम तारा में चल रहे धरना प्रदर्शन को एसडीएम की अनमति नहीं होने का हवाला देते हुए. ग्राम पंचायत के सरपंच के माध्यम से धरनास्थल बदलने के लिए मजबूर किया गया गया. जब प्रदर्शनकारियों ने धरनास्थल बदलकर सरगुजा जिला के परसा कोल ब्लॉक के प्रभावित ग्राम फतेहपुर में धरना जारी रखा. तब प्रशासन के माध्यम से अयोध्या विवाद के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के वक्त धारा 144 का भी डर दिखाया गया.
प्रदर्शनकारी इन सबके बावजूद बड़ी संख्या में धरना में शामिल होते रहे. इसी बीच कलेक्टर सरगुजा और कलेक्टर सूरजपुर को परसा कोल परियोजना को जल्दी शुरू किए जाने की मांग से संबंधित ज्ञापन सौंपा गया. इसकी भनक तक स्थानीय ग्रामीणों को नहीं थी. समाचार पत्रों में खबर प्रकाशित होने पर इसका पता चला. उक्त ज्ञापन में पूर्व से संचालित खदान परसा ईस्ट केते बासेन के प्रभावित क्षेत्र में विकास कार्यों, स्थानीय लोगों को योग्यता के अनुसार नौकरी आदि का हवाला दिया गया था. आंदोलन में शामिल स्थानीय ग्रामीणों ने जब इसकी पड़ताल की तब पता चला कि अदानी कंपनी के द्वारा ग्रामीणों के बीच में फूट डालने के लिए कुछ एजेंट तैयार किए गए हैं. इसी तरह के कुछ लोगों ने उक्त ज्ञापन में हस्ताक्षर किए थे. ग्रामीणों के अनुसार इस परियोजना के प्रभावित गांवों में मुआवजे की लालच में कुछ बाहरी लोगों ने भी कुछ जमीन खरीदी है. उन्होंने ने भी कंपनी के आफिस में उनके द्वारा तैयार किए गए ज्ञापन में हस्ताक्षर किए हैं.
परसा कोल ब्लॉक के प्रभावित गांव साल्ही हरिहरपुर, फतेहपुर और घाटबर्रा के ग्रामीण रामलाल, बालसाय कोर्राम, मुनेश्वर, जयनंदन पोर्ते और अन्य लोगों ने बताया कि पूर्व से संचालित परसा ईस्ट केते बासेन परियोजना का हाल हम देखते आ रहे हैं. हमारे गांवों से बमुश्किल तीन किमी दूरी पर संचालित इस खदान से केते गांव का नामोनिशान मिट गया. उस गांव के लोगों को पुनर्वास के नाम पर छोटे-छोटे दड़बानुमा कमरे बनाकर ग्राम बासेन मे दिया गया है. मुआवजे के रूप में मिली राशि अधिकांश लोगों की खर्च हो चुकी है. सैकड़ों लोग सड़क दुर्घटनाओं में असमय ही मौत के मुंह में समा चुके हैं. उनके बच्चे अनाथ हो चुके हैं. हरे भरे जंगल कट चुके हैं. तापमान बढ़ता ही जा रहा है. धूल और कोयले के गुबार से लोग सांस की बीमारियों से पीड़ित हो रहे हैं. नौकरी के नाम पर कुछ लोगों को आठ-दस हजार मासिक के काम कराया जा रहा है. ऐसा विकास हमें नहीं चाहिए.
अब स्थानीय ग्रामीणों ने बुधवार 27 नवम्बर को पुनः कलेक्टर सरगुजा को परियोजना के विरोध में ज्ञापन सौंपा है. जिसमें कहा गया है कि हम लोग पिछले 14 अक्टुबर से खदानों के विरोध में लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. पर शासन प्रशासन की तरफ से अभी तक कोई सकारात्मक पहल नहीं की गई है. हम लोगों ने खदान खोलने की मांग से संबंधित कोई ज्ञापन नहीं दिया है. उक्त ज्ञापन फर्जी है. उसे निरस्त करने की मांग की करते हैं.