Surajpur…शिक्षक यदि ठान ले तो अशासकीय विद्यालयो से अच्छी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देकर सर्वांगीण विकास कर सकता हैं। इस लाइन पर खरे उतरते हैं शिक्षक रंजय कुमार सिंह। जिन्होंने अपने पूरे शिक्षकीय जीवन में एक आदर्श शिक्षक का उदाहरण प्रस्तुत किया हैं। जो अन्य शिक्षको हेतु प्रेरणा श्रोत हैं लोग कहते हैं की शासकीय शालाओं में अध्यापन अच्छा नहीं हैं, जिसे ऐसे शिक्षको ने गलत साबित किया हैं। बता दें कि, 5 सितंबर को हर साल देश के पहले उपराष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जन्मदिन की अवसर पर शिक्षक दिवस मनाया जाता हैं।
वैकल्पिक शाला में शिक्षक के पद पर 1996 से शिक्षकीय पद को सुशोभित कर रहे शिक्षक प्राथमिक शाला सारसताल सोनगरा में लंबे समय तक पदस्थ रहे इस दौरान इनका कार्य शिक्षा के क्षेत्र में अच्छे कार्य से चर्चा का विषय बना रहा हैं।
वर्तमान में प्रधान पाठक के पद पर प्राथमिक शाला सड़कपारा तुलसी में पदस्थ हुए क्रियेटिव शिक्षक रंजय कुमार सिंह ने इस विद्यालय को भी आदर्श विद्यालय की श्रेणी में लेकर आ गए हैं। जिसकी चर्चा पूरे क्षेत्र में हो रही हैं, लेकिन, शिक्षा विभाग में ही कुछ शिक्षक ऐसे हैं। जो विद्यालियन कार्य छोड़कर अधिकारियो के आगे पीछे घूम कर सभी पुरस्कार प्राप्त करते हैं। जब की अच्छे कार्य करने वाले शिक्षको को किसी पुरस्कार हेतु नामांकित तक नहीं किया जाता हैं। जो की अत्यंत शर्मनाक हैं।
क्रियेटिव शिक्षक ने कोरोना काल में जिला नही पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा ऑनलाइन क्लास लेकर छोटे-छोटे प्राथमिक शाला के बच्चो को शिक्षा देने का प्रयास किया। जिसका सभी ग्रामीणों ने अत्यधिक प्रशंशा किया था। इनके द्वारा नीत बच्चो से घुल मिल कर उनके स्तर को समझ कर बालकेंद्रित शिक्षा उनके स्तर के अनुसार गुणवक्तापूर्ण देने का कार्य किया हैं। जो अन्य शिक्षको हेतु अनुकरणीय हैं। इनकी पदस्थापना से दर्ज संख्या में भी सभी जगह वृद्धि हुआ हैं।
ग्रामीण परिवेश में बच्चो के अध्यापन हेतु ग्रामीण सजग नही हैं, बच्चो के पास स्टेशनरी सामग्री का अभाव रहा हैं। ऐसी स्थिति में शिक्षक द्वारा टाई बेल्ट के साथ साथ शीश, रबर, कटर, पेन, कापी, ड्राइंग बुक निःशुल्क प्रदान करते हैं। जिससे बच्चो को अध्ययन करने में कोई परेशानी ना हो।
शिक्षक द्वारा स्वयं प्रयास कर अहाता विहीन होने के बाद भी अभिभावकों बच्चों के सहयोग से वास का अस्थाई घेरा बनाकर बृहद किचन गार्डन विकसित करने का प्रयासरत हैं। जिसका परिणाम यह रहा हैं कि, मौसमी सब्जी के साथ फलदार पौधा का रोपण किया गया हैं। जिसका देख भाल पूरा शाला परिवार करता हैं और बहुत जल्द ही ताजी मौसमी सब्जी बच्चो को शाला में भी उपलब्ध हो सकेगा।
खेल-कूद में गीत कविता के साथ स्थानीय संस्कृति को विकसित करनें शिक्षाप्रद सुआ गीत एवं नृत्य के माध्यम से बच्चो में सांस्कृतिक कला को भी विकसित करने का प्रयास किया जा रहा हैं। इस तरह की कार्य अन्य शालाओं में देखने को बहुत कम ही मिलता हैं। इससे बच्चो के मन का झिझक दूर होगा, कई बच्चे सुनकर बोलना आरंभ कर शिक्षा की मुख्यधारा में जुड़ जाते हैं।
शाला में अध्ययन रत्त समस्त बालक-बालिका प्रतिदिन मध्यान्ह भोजन एक साथ कतार बद्ध बैठकर संस्कृत के कठिन शब्दों का उपयोग कर भोजन मंत्र का उच्चारण कर मध्यान्ह भोजन करते हैं, जो शासकीय विद्यालयों के लिए आदर्श हैं।
शिक्षक बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार रखते हैं। घुल मिल कर रहते हैं, बच्चो को करके सीखने का अवसर प्रदान करते हैं। जिसका सबसे सार्थक असर यह हैं कि, बच्चे खुल कर अपनी बात रखते हैं। अध्ययन के दौरान भी बच्चे पूरे मनोयोग से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इससे बच्चो को सीखने में मददगार शाबित हो रहे हैं।
देश प्रदेश सहित अन्य सामान्य ज्ञान के साथ-साथ महत्वपूर्ण समाचार का वाचन प्रतिदिन प्रार्थना सभा में किया जाता हैं। जिससे बच्चो का सामान्य ज्ञान में वृद्धि दर्ज हो रहा हैं।
शाला में अध्ययनरत छात्र प्रतिदिन अपने माता पिता एवं बड़ो का चरण स्पर्श कर विद्यालय आते हैं। जिसकी सीख शिक्षक द्वारा बता कर माता पिता एवं गुरु का सदैव सम्मान कर इन सभी के बातो को मानने का सीख दिया जाता हैं। जिसका बच्चें रोज पालन कर रहे हैं।
ये सोशल मीडिया ने भी अपलोड हैं, शाला की गतिविधि शिक्षक द्वारा शाला में अध्ययनरत बच्चो के साथ किए गए कार्य की विभिन्न गतिविधियों को फेसबुक एवम् यूट्यूब में अपलोड करते हैं। जिसे शिक्षकीय समाज अनुसरण कर रहे हैं। साथ ही अभिभावक एवं ग्रामीण भी देखते हैं बच्चे भी बहुत खुश रहते हैं।