सूरजपुर। सूरजपुर की संस्कृति सांस्कृतिक विविधता का एक उत्तम उदाहरण है। जहाँ एक ओर बड़ी सँख्या में यहाँ अंचल के स्थानीय आदिवासी लोगो के समूह हैं वही कई दशकों से यहाँ आकर रह रहे उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड,राजस्थान, पंजाब तथा बंगाल जैसे राज्यो के लोग भी यहाँ बड़ी सँख्या में हैं। जहाँ एक ओर यहाँ के आदिवासियों की विशिष्ट परंपराएं और रीति रिवाज यहाँ खिलते हैं वहीं अन्य राज्यों से यहाँ आकर बसे लोगो के रीति रिवाज भी यहाँ की संस्कृति को विविधता से परिपूर्ण बनाते हैं।
यहाँ की सांस्कृतिक विशेषताओं का मुख्य प्रतिनिधित्व यहाँ के जनजातीय समुदाय करते हैं जो अपने रहन सहन के विशिष्ट तौर तरीकों के लिए जाने जाते हैं। यहाँ निवासरत कोरकू जनजाति के लोग भूमि खोदने का कार्य करने के लिए जाने जाते हैं साथ ही साथ काष्ठ पर की गई अपनी विशिष्ट कला में भी ये अद्वितीय हैं। नवरात्रि के महीने में ये खम्भ स्वांग जैसा मनोरंजक लोकनाट्य प्रस्तुत करते हैं और विभिन्न अवसरों पर ये अपना थापटी और ढाँढल जैसे मनोरम लोकनृत्य भी करते हैं। मृतक संस्कार में इनके द्वारा की जाने वाली सिडोली प्रथा भी अपने आप मे विशिष्ट है जिसमे ये मृत व्यक्ति को दफनाकर उसकी स्मृति में एक लड़की का स्तंभ लगा देते हैं। यहाँ निवासरत कोल जनजाति कोयला खोदने का पारंपरिक कार्य करने के साथ साथ अपने कोलदहका नाम नृत्य के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ के कंवर आदिवासी समूह जो स्वयं को कौरवों का वंशज मानते हैं ये सैन्य कार्य करने के लिए लालायित रहते हैं। इनके द्वारा किया जाने वाला बार नृत्य इनके द्वारा ही किया जाने वाला विशिष्ट नृत्य है वहीं इनकी धरजन नामक विवाह पद्धति भी अनूठी है जिसमें विवाह हेतु जमाई को अपने भावी ससुर के घर रहकर अपनी सेवा से उसे खुश करना पड़ता है। यहाँ निवासरत कोरवा जनजाति के लोग भी अपना विशिष्ट महत्व रखते हैं ये दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में वृक्षों पर मचान बनाकर रहने के लिए जाने जाते हैं। साथ ही साथ कृषि कार्य से संबंधित कोरा और धेरसा जैसे पर्व भी इनकी सांस्कृतिक विशिष्टता को दर्शाते हैं। इनके द्वारा संपादित दमनक नृत्य बड़ा भयोत्पादक नृत्य माना जाता है। चावल से बनाई जाने वाली हांडिया शराब भी इनका विशिष्ट पेय पदार्थ है। यहाँ खैरवार जनजाति भी निवासरत है जो कत्था बनाने के लिए जानी जाती है। यहाँ के आदिवासियों के खुड़ियारानी,सगराखण्ड, भटुवा देव,सिंगरी देव जैसे देवी देवता भी अपने आप मे विशिष्ट हैं। फसलों से संबंधित करमा नृत्य त्योहार यहाँ सभी आदिवासी और अन्य पिछड़े वर्गों में बड़े स्तर पर प्रचलित है। सुआ गीत नृत्य भी यहाँ की महिलाएं बड़े मनोरंजक ढंग से संपन्न करती हैं। शैला या डंडा नृत्य भी यहां व्यापक रूप से चलन में है। यहाँ के आदिवासी अब अन्य समुदायों से घुल मिलकर होली,दीवाली,तीज और छठ जैसे त्योहारों को भी चाव से मनाने लगे हैं। यहाँ गणेश उत्सव और दुर्गा पूजा के साथ साथ काली पूजा भी धूमधाम से बनाई जाती है।
मोहर्रम और ईद जैसे मुस्लिमों के त्योहारों में भी यहाँ इतनी ही धूम रहती है। यहाँ के आदिम और जनजातीय समूहों के त्योहार और रीति रिवाज तथा हिंदुओं मुस्लिमों ईसाइयों और सीखों के तीज त्योहार मिलकर सूरजपुर क्षेत्र को सांस्कृतिक सम्पन्नता और विविधता से लबरेज कर देते हैं।