पुत्र के दिर्घायु की कामना कर माताओं ने रखा निर्जला व्रत

जीवतिया पर्व पर चिलो-सियार के मुर्ति स्थापना कर किया गौरी-शंकर की पूजा अर्चना

अंबिकापुर

संतान के सुख समृद्धी जीवन की कामना को लेकर माताएं निर्जला उपवास रखी। संतान की लम्बी उम्र के लिए जिवतिया व्रत रखने की पंरपरा है सप्तमी तिथि से प्रारंभ यह व्रत नवमी व्रत को पारण के पश्चात समाप्त होता है।

इस संबंध में महिलाओं ने बताया कि यह व्रत बहुत ही कठिन है। सप्तमी को सुवह स्नान महुआ आटा व सतपुतिया झिगी की एक प्रजाति की सब्जी पहले चील व सीयार के लिए निकाल कर फिर स्वयं खाते है। अष्ठमी की सुबह नगर में विभिन्न जगहों पर माताएं निर्जला व्रत कर लकड़ी के पट्टे पर मिट्टी के भगवान शंकर, पार्वती, गणेश, चील सियार मूर्ति के साथ प्रतीक रूप से तालाब बना जिवतियां डाल फूल व प्रसाद में सुसज्जित कर संतान की दिर्घायु व सुखी जीवन के लिए पूजा अर्चना व भजन कीर्तन की जाती है, और नवमी तिथि को बटुआ, चना, खिरा, बीज, गुड व दही संतान के हाथ से पानी पीकर अपना व्रत समाप्त करती है। इस व्रत को लेकर एक कथा प्रचलित है कि आदि काल में चिलों और सियार दो बहने हुआ करती थी। चिल तो धर्म को मानने वाली थी पर उसकी बहन सियार किसी व्रत त्यौहार को नहीं मानती थी। जिवतिया पर्व पर भी उसने ऐसा ही कुछ किया जिवतियां पर्व मनाने दोनों बहने चिला और सियार ने व्रत रखा चिलो निर्जला रह कर शंकर पार्वती जी की पूजा अर्चना करने के पश्चात सुबह के पूजा समाप्ति पश्चात अन्न जल का ग्रहण किया वहीं उसकी बहन रात्रि में भूख बर्रदाश्त नहीं कर पायी और कहीं से मांस का भक्क्षण कर ली जिससे उसके जितने पुत्र-पुत्रियां हुये उनकी  किसी न किसी कारणवश अकाल मौत हो  गई। जिससे वह निःसंतान हो गई।

वहीं दूसरी ओर चिलो के सात पुत्र हुये सभी सुख समृद्धिपूर्ण जीवन यापन कर रहे थे। एक दिन चिलो ने अपने बच्चों को मौसी सियार से मिलने भेजी। मौसी सियार ने इस्यावश मिलने आये सातो बच्चों का सर काटकर उन्हे सात झापी में बंद कर बहन चिलो के घर भेज दी। जब चिलो ने एक-एक कर के सातो झापी का मुंह खोला तो उसमे ंसातों बच्चे स्वस्थ झापी से निकले। बच्चों के सकुशल होने की खबर बहन सियार को लगा तो वे सोचने लगी की उसने उसके बच्चों का सर काट दिया था तो वो कैसे सकुशल घर पहोच गये फिर उसने दोबारा अपनी बहन चिलो के पास खबर भेजी की उसे बच्चों को देखने की इक्छा हो रही है जिस पर पुनः दूसरी बार बहन चिलो ने अपने सातों बच्चों को अपनी बहन सियार के पास भेजती है। दूसरी बार भी सियार सातो बच्चों को मार कर उसके पास पूर्व की भांति ही झांपी में बंद कर उन्हे चिलो के पास भेजती है फिर बच्चे पूर्व की भांति ही झांपी से स्वस्थ निकलते है। फिर इसकी खबर सियार को लगती हैं और वो अपनी बहन चिलो के पास आ विलाप करते हुये बोलती है कि उसके द्वारा दो बार बच्चों को मारा गया और बच्चे बच गये ऐसा कैसे हुआ मेरे बच्चे तो असमय ही किसी न किसी कारण से मर गये तब चिलो ने सियार को बताया कि उसने जिवतियां व्रत पूर्व भक्तिभाव एवं नियम सके किया जिसकी वजह से उसके बच्चे सुख समृद्धि को पा रहे है। तुमने भी जरूर कुछ गलत किया होगा इसी लिए तुम्हारी संताने की मौत हो जाती है। इस बार जिवतियां पर्व तुम मेरे साथ मनाने जिवतियां पर्व पर दोनों ने व्रत रख शाम को गौरी शंकर की पूजा की और रात्रि में चिलो ने सियार को अपने पास सुलाकर उसके पुछ को अपने पंख से बांध लिया ताकि रात में सियार फिर मांस का भक्क्षण न कर ले रात्रि के मध्य सियार भुख से व्याकुल होते हुए बहन चिलो से उसे खोलने जाने की मिन्नत की जाती रही पर चिलो ने उसे सुबह तक नहीं खोला और सियार का भी जिवतियां का व्रत पूरा हुआ सुबह दोनों बहने नहा धोकर गौरी की पूजा अर्चना कर अन्न जल ग्रहण किया अगले ही माह सियार को संतान की प्राप्त हुई और उसके संतान सुख समृद्धि का भोग करते हुए जीवन यापन करने लगे।

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