
बलरामपुर. जिले को पर्यटन के मानचित्र में पहचान दिलाने वाला तातापानी एक बार फिर सुर्खियों में है. जिसकी वजह तातापानी में आयोजित होने वाली भव्य महोत्सव नही. बल्कि जिले के कुछ आला अधिकारियों की अनदेखी और लापरवाही है. वही अब लापरवाह सिस्टम के चक्कर में रामप्रसाद हैरान और परेशान है. सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे है. गुस्सा इतना है की आयोजित होने वाले महोत्सव के पहुंच मार्ग को ही बाधित करने चेतावनी दे बैठे है.
दरअसल साल 2012 में छत्तीसगढ़ के राजस्व नक्शे पर बलरामपुर-रामानुजगंज जिले के रूप दर्शित हुआ. जिला बनने के बाद मूलभूत सुविधाओं की नींव की शुरुआत हुई. और उसी दौरान तत्कालीन अधिकारियों का ध्यान क्षेत्र में प्रचलित प्राचीनतम कहानियों पर आधारित तातापानी की ओर गया. फिर पर्यटन के नक्शे में तातापानी को दर्शाने की कवायद शुरू हुई. साल 2012-13 में कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन ने मकर सक्रांति पर्व पर तातापानी में आयोजित होने वाले मेले को भव्य महोत्सव का आकार दिया. इस बीच तातापानी में पर्यटन के दृष्टिकोण से निर्माण कार्य भी शुरू हुए. जिसमें लगभग दर्जनभर से अधिक ग्रामीणों की जमीन अधिग्रहित की गई. और ग्रामीणों को तातापानी में ही एनएच 343 के किनारे विस्थापित किया गया था. लेकिन उन विस्थापितों की सूची में एक नाम ऐसा भी था जिसे विस्थापन का लाभ आज तक नही मिल सका. रामप्रसाद रौनियार पिता हीरा रौनियार उन्हीं ग्रामीणों में से एक थे. जिनकी 0.08 हेक्टेयर जमीन प्रशासन ने अधिग्रहित की थी. पर विस्थापन का लाभ उन्हें नही मिल सका. और उन्होंने ने भी सोंचा की सरकारी काम है आज नहीं तो कल विस्थापन का लाभ मिल ही जाएगा. इधर समय बीतता गया और जिम्मेदार अधिकारी बदलते गये पर इस ओर किसी का ध्यान नही गया.. जिसका खामियाजा अब रामप्रसाद और उसके परिजनों को भुगतना पड़ रहा है.
एक साल पहले ही दिया था आवेदन
20 जून 2024 को रामप्रसाद ने जिम्मेदार अधिकारियों के यहां फिर से दस्तक दी..और उन्हें लिखित रूप में यह बताना चाहा कि सेटलमेंट के रिकॉर्ड में खसरा नंबर 143, पुराना खसरा नंबर 86/2, 87/2 रकबा 0.08 हेक्टेयर की तातापानी की उनकी जमीन को अधिग्रहित किया गया है..और उन्हें अन्य विस्थापितों की तरह विस्थापन का लाभ नही मिला है..लेकिन उनकी उस दरख़्वास्त पर सुनवाई नही हुई..अब वे चाहते है..की उनकी जिस भूमि को प्रशासन ने अधिग्रहित किया है..जो मौजूदा समय में तातापानी मंदिर प्रांगण पहुंच मार्ग में है..उस पर वे कब्जा कर लेंगे..दिलचस्प बात तो यह है कि रामप्रसाद ने 20 जून 2024 को कलेक्टर को आवेदन दिया था..वह आवेदन भी सिस्टम के फाइलों में दफन होकर गई है!.
महोत्सव का रंग पड़ सकता है फीका
रामप्रसाद का गुस्सा जायज है..जमीन अधिग्रहण किये 10 साल बीत गये विस्थापन का लाभ उन्हें मिला नही..ऐसे में अब उन्हें अधिग्रहित भूमि पर कब्जा करना ही एक मात्र सहारा नजर आ रहा है..और अगर ऐसा हुआ तो भव्य महोत्सव की चमक धुंधली भी हो सकती है..बहरहाल समय रहते प्रशासन इस ओर संज्ञान ले मामले का पटाक्षेप कर ले तो रामप्रसाद की पीड़ा कम हो सकती है!.
जिम्मेदार अधिकारियों के संज्ञान में नही है रामप्रसाद
इधर राजस्व विभाग से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि मामला काफी पुराना है. इसलिए वे कुछ भी बोलने से बचते बचाते नजर आ रहे है. हालांकि भूमि अधिग्रहण के मामले में या तो मुआवजे की रकम दी जाती है या फिर कलेक्टर न्यायालय में प्रकरण चलाकर प्रभावितों को विस्थापित किया जाता है.




