रायपुर. होली जलने के बाद सूतक लगता हैं। यह प्रथा शहरों में तो लगभग लुप्त हो चुकी है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रो में यह रस्म आज भी निभाई जाती है जैसा कि बड़े बुजुर्गों को करते देखें है। होलिका दहन होते ही पूरे गांव में सूतक शुरू हो जाता है। जैसे किसी व्यक्ति की मृत्यु पर सूतक लगता है। अंतर सिर्फ इतना ही होता है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु पर केवल उसके परिवार में सूतक लगता है, और होली पर पूरे गांव में.!
होलिका दहन के बाद धुलेड़ी/रंगोत्सव की सुबह महिलाएं घर की साफ-सफाई करके लिपाई-पुताई करती हैं। प्रत्येक घर से पुराने झाड़ू और मिट्टी के बर्तन घड़े आदि को घर से बाहर निकाला जाता है। रात का बचा हुआ भोजन सुबह कोई नही खाता है गौमाता को खिला दिया जाता है। पुराने झाड़ू और मिट्टी के घड़े आदि को लेकर हर घर के पुरुष वर्ग गांव के बार मेड़े (गांव के बाहर स्थित देव स्थान) में पहुंचते है और साथ मौजूद गांव के पंडा द्वारा निकाई (किसी चीज को बाहर फेंकने) की रस्म किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि सूतक में घर की झाडू या अनुपयोगी सामग्री बाहर कर देने से खुशियां आती हैं। नकारात्मक चीजें दूर हो जाती हैं। फिर सभी लोग यहां से सीधे नदी या तालाब में जाते है। जहाँ बाल दाढ़ी हजामत आदि बनवाकर, शुध्द स्नान आदि के बाद ही अपने अपने घर आते है। और जनेऊ तथा मौलीधागा बदल कर गंगाजल आदि पूरे घर मे छिड़क कर पवित्र शुध्द करते है।
जब गांव के पुरुष मेड़ा के रस्म व स्नान करने गये रहते है तब महिलायें घर की लिपाई पुताई करके बची रद्दी सामान आदि को लेकर गांव के बाहर फेंकते हुए स्नान के लिये नदी तालाब के लिए रवाना होती हैं।
जब वे नदी-तालाब से नहाकर लौट आती है इसके बाद ही घर में नेवज (नवा पानी) बनाते है, कुल देवी देवता के पूजन तथा भोग लगाने के लिये तरह तरह के व्यंजन बनाते है। पुरुष वर्ग पूरे परिवार सहित कुल देवी देवता की पूजा करते है फिर प्रसाद ग्रहण करने के बाद खाने-पीने का क्रम शुरू होता है। गांव भर के भाई बंधुओ, गोत्रज तथा पौनी पसारी आदि को भी भोजन में बुलाकर सम्मान पूर्वक भोजन कराते है।
साल में कम से कम 2 बार तथा विवाह व जन्मोत्सव में कुलदेवी देवता की पूजन जरूर करना चाहिए।
नेवज भोजन के बाद मध्यान्ह समय से गांव के बाहर जली हुई होलिका की राख उड़ाई जाती है इसलिए इसे धुलेड़ी कहते है। इस तरह रंग गुलाल लगाकर एक दूसरे को शुभकामनाएं देते है।
फिर बच्चे होली खेलना शुरु करते हैं। गांव में फागों का भी शानदार आयोजन होता है, जो अनवरत कई दिन तक चलता है। रस्म निभाए जाने के बाद गांव रंग में भीग जाता है। फागुनी गीतों की तान छिड़ जाती है।
होलिका सूतक के वैज्ञानिक कारण
पहले मकान कच्चे होते थे। सादगी पूर्ण जीवन होता था विलासिता के सामग्री नही होते थे, हर मौसम के ऋतु परिवर्तन संधिकाल में कीट पतंगे जीवाणु कीटाणु रोगाणु बढ़ जाते थे। इसलिए लोग दीपावली की तरह ही होली पर भी घरों की सफाई करते थे। होली पर घर की सफाई से निकले कचरे और घरों के समीप बाडिय़ों में लगी पुरानी लकडिय़ां होलिका में जला दिया जाता था। इसके बाद घरों पर नई बाड़ लगाई जाती थी। लकडिय़ों के साथ अंडी (एक तरह का औषधीय पौधा) भी जलाई जाती थी, जिससे वायरस व कीट पतंगे नष्ट हो जाते थे।
तीन बार लगती है सूतक
वैदिक सनातन धर्म में निम्न प्रकार से सूतक का उल्लेख है। एक सूतक तब मनाते है जब घर परिवार में किसी की मृत्यु हो जाती है। यह सूतक दस दिन तक यानी दशगात्र तक चलता है। घर की साफ-सफाई, घर की शुद्धता पर दशगात्र के बाद ही सूतक खत्म होता है। इसके बाद दिवंगत आत्मा की शांति के लिए पाठ, पूजन, त्रयोदशी आदि होती है।
दूसरा सूतक जन्म सूतक– घर में प्रसव यानी शिशु के जन्म का होता है। इसके सोहर भी कहते हैं, जो सामान्यतया कुल परम्परा के अनुसार छठी, दसठान, बरही, इक्कीसा, सवा महीने तक भी चलता है।
तीसरा सूतक- चंद्र व सूर्य ग्रहण के समय मनाया जाता है, जो कि ग्रहणकाल से 10/12 घण्टे पूर्व से आरम्भ होकर केवल ग्रहणकाल की अवधि तक माना जाता है।
होली में भी सूतक मनाने की प्राचीन परम्परा है जो होलिका दहन के बाद शुरू होता है जिसकी शुद्धि दूसरे दिन सुबह स्नान तथा घर की साफ सफाई आदि से हो जाता है। यह प्रथा अब लुप्त सी होते जा रही है
लेकिन यथा सम्भव उपरोक्त समस् सूतक का पालन हर हिंदुओ को करना चाहिये, शुद्धि अशुद्धि का प्रभाव ही घर परिवार को सुखी या दुखी जीवन प्रदान करता है।
– पण्डित मनोज शुक्ला, महामाया मन्दिर राय