- रासेयो के तहत कार्यक्रम में लोगों को किया गया था जागरूक
अम्बिकापुर
प्राकृतिक जल स्त्रोत संरक्षण से संरगुजा संभाग के 50 से अधिक गांवों को नया जीवन मिला है। गर्मी के दिनों में जहां क्षेत्र के हैण्डपम्प, कुंए के सूख जाने का खतरा हर समय बना रहता है। वहां पर अब प्राकृति जल स्त्रोत सं संग्रहीत पानी लोगों के साथ-साथ पशुओं की प्यास भी बुझा रहा है।
सरगुजा विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम समन्वयक डाॅ. अनिल कुमार सिन्हा के अनुसार वर्ष 2015-16 में एक 138 जल स्त्रोंतों को संरक्षित किया गया। कोरिया में 45, सूरजपुर में 26, जशपुर में 28, सरगुजा में 21 व बलरामपुर में 18 जल स्त्रोंतों को बचाने काम किया गया। उन्होंने बताया कि जल स्त्रोंतों के संरक्षण के लिये गांव के लोगों को साथ लेना होता है। उन्हें जल संरक्षण के साथ-साथ जल की उपयोगिता को भी बताना पड़ता है। हमारे द्वारा यही काम किया गया। गांव के लोग जागरूक होने पर स्वयं ही जल स्त्रोत को संरक्षित करने ध्यान देने लगे हैं। जल संकट से निजात पाने उन्होंने ग्राम असोला का एक उदाहरण बताते हुये कहा कि वर्ष 2013 में राष्ट्रीय सेवा योजना का शिविर असोला में आयोजित किया गया था, उस समय गांव के सारे हैण्डपंप खराब थे। गांव के लोगों सहित पशुओं के लिये घोर पेयजल संकट था। गांव के पास ही प्राकृति जल स्त्रोत से पानी रिस रहा था। स्वयं सेवकों ने इस जल स्त्रोत के सामने में बालू की बोरी से बांध कर पानी रोका। पानी संग्रहण से वहां एक छोटा जलाशय में तब्दील हो गया। वर्तमान में असोला के लिये यह जलाशय पानी को लेकर वर्दान सावित हुआ है। इस कार्य से प्रेरित होकर गांव के लोगों ने अपने प्राकृतिक जल स्त्रोत को संरक्षित किये हुये हैं। प्रशासन ने बाद में गांव के कुछ हैण्डपम्प को ठीक कराया। यह प्रयोग ग्राम घंघरी में भी सफल रहा। मैनपाट विकासखण्ड के उडूमकेला गांव के लोग सामान्य दिनों में पानी के लिये तरस जाते थे। गांव के प्राकृतिक जल स्त्रोंत में गंदगी मिली रहती थी। गांव के लोग इसमें स्नान करते थे। शासकीय श्यामाप्रसाद महाविद्यालय सीतापुर के डाॅ. रोहित बरगाह ने बताया कि राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयं सेवकों ने इस जल स्त्रोत को साफ किया और स्नान के लिये दूसरी जगह निर्धारित की। गांव की सरपंच सुशीला ने गांववासियों को इसके लिये प्रेरित किया। वर्तमान में गांव के लिये यह जल स्त्रोत अहम बन गया है।