सड़क की चाह में पहाड़ को मैदान बना रहे है बेखौफ ठेकेदार
कोरिया
बैकुण्ठपुर से J. S. ग्रेवाल
जिला कोरिया में बाहुबली लोगो के सामने प्रशासन कितना कमजोर और नतमस्तक है, वह इस बात से मालूम होता है कि जिले में उनके नाक के नीचे बगैर किसी अनुमति के बड़े पैमाने पर अवैध उत्खंनन किया जा रहा है। जिसका नजारा इन दिनो बैकुण्ठपुर से महज 7 किलो मिटर दूरी में देखने को मिल रहा है।
मामला कोरिया जिला मुख्यालय के समीप कोरिया पैलेस से बचरापोंडी मार्ग का है जहाँ सड़क निर्माण में लगने वाले गिट्टी के लिय प्रतिदिन करोड़ो रूपए की आटोमेटिक मोबाईल क्रेसर मशीन से पहाड़ो को तोड़ कर पत्थर निकाला जा रहा है। रोजाना सैकड़ो हाईवा ट्रक गिट्टी इस पहाड़ से अब तक खोद लिया गया है और इस प्रकार पूरा का पूरा पहाड़ चट हो रहा है। आश्चर्य की बात यह है कि कम्पनी के पास जिला प्रशासन या पर्यावरण विभाग से मोबाईल क्रेशर चलाने की अनुमति ही नहीं हैं और जानकारी के मुताबिक ना ही उक्त पहाड़ को सपाट मैदान बनाने के लिए कंपनी ने प्रशासन से कोई भी लिखित अनुमति ली है ,,, उसके बाद भी ठेकेदार ने सड़क की चाह में पहाड़ को निगल रहे है।
दबगई के साथ आॅख में झोक रहे धूल
ठेकेदार इतने रसूकदार और राजनैतिक षडयंत्र प्राप्त शख्शियत है कि खनिज, पर्यावरण और प्रशासनिक नियमों को ताक में रखकर,, भी वो पहाड़ को मैदान बनाने में तुले है ,,, क्योंकि शायद उनको शासन प्रशासन का खौफ नहीं है। दिन दहाड़े शासन प्रशासन के आॅखो में धूल झोक कर हरे भरे पहाड़ को समतल बना दिया जा रहा है तस्वीरो में आप साफ देख सकते है कि किस कदर कम्पनी ने पहाड़ को बारूद से फोड़ कर हजारो टन पत्थर निकाल लिये है पर इन्हे रोकने वाला कोई नहीं है।
शासन को करोड़ो का नुकसान फिर भी बेसुध
सड़क बनाने के लिए ठेकेदार पहाड़ो को तोड कर गिट्टी बना अपना लाभ पहुचाने में लगे हुए है। वही दूसरी ओर संबधित विभाग को प्रतिमाह रायल्टी के रूप में लाखो रूपए का नुकसान हो रहा है। इसके बावजूद उसे विभाग द्वारा रोकने का प्रयास नहीं किया जाना कहीं न कहीं अधिकारियो के साथ साठ-गांठ की ओर इशारा करने के लिए पर्याप्त है,,
पूरे राज्य में नहीं है अनुमति
मोबाईल क्रेसर चलाने के लिए पर्यावरण विभाग से अनुमति लेना होता है पर विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक समूचे छत्तीसगढ़ में पर्यावरण विभाग और खनिज विभाग से इसकी अनुमति लेनी होती है। इसके बाद ही पत्थर का उतखन्न किया जाता है पर पूरे राज्य में आज तक किसी को भी इस प्रकार की अनुमति नहीं मिली है,, क्योंकि इस प्रकिया से पर्यावरण को काफी नुकसान पंहुचता है। यही वजह है कि पर्यावरण विभाग इसकी अनुमति नहीं देता है।