आदिवासी लोगो का जीवन यापन जंगल से ही होता है.. महुआ, हर्रा ,बहेरा, तेंदूपत्ता जैसे वन उत्पाद आदिवासियों की अजीविका का साधन है.. और शायद यही वजह है कि जंगल जमीन और गांव झिनने के भय से.. सरगुजा जिले के 39 गांवो के लोग सरकार के लेमरू एलीफेंट कोरिडोर के विरोध मे एक जुट हो गए हैं.. और इनके विरोध के बीच स्थानिय विधायक और मंत्री टी एस सिंहदेव ने सरकार के खिलाफ जाकर ग्रामीणो का साथ देने का दम भरा है.. तो भाजपा ने आरोप लगाया है कि जब लेमरू मामला केबीनेट मे पास हो रहा था.. तब आप कहां थे ?
छत्तीसगढ के सरगुजा जिले समेत रायगढ और कोरबा के 145 गांव को लेकर बनने वाले लेमरू हाथी कोरिडोर का पिछले 10 दिनो से पुरजोर विरोध शुरु हो गया है.. विरोध तो इसके पास होने के बाद से ही हो रहा है.. लेकिन अब अपना गांव जंगल झिनने के दिन करीब आते है कि सरगुजा के प्रभावित गांव के लोग इस कदर विरोध मे आ गए हैं कि वो कहने लगे हैं कि हमको गांव से कोई भगा नहीं सकता है.. इसके अलावा जब मीडिया ने अलग अलग करीब आधा दर्जन प्रभावित गांवो का दौरा किया. तो कुछ का कहना है कि आदिवासियो का जीवन यापन जंगल से ही होता है.. सरकार इसे नहीं ले सकती है.. तो कुछ का कहना है कि हमारे बाप दादा कि विरासत को हम लुटने नहीं देंगे.. हमारे जंगल से मिलने वाले हर्रा बहेरा, महुआ फिर हमे कहां मिलेगा..
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अपने विधानसभा के 39 गांवो के लोगो का विरोध देखकर स्वास्थ मंत्री टी एस सिंहदेव इतने भयभीत हो गए कि अपने क्षेत्र के प्रवास के दौरान वो सबसे पहले प्रभावित गांवो के दौरे पर पहुंच गए.. और उन्होने आंदोलनकारियो की तादाद देखकर.. आश्चर्यजनक तरीके से अपना और अपनी ही सरकार के फैसले का विरोध कर दिया औऱ कहा कि अगर लेमरू हाथी कोरिडोर प्रभावित लोग इसके विरोध मे है तो मै भी उनके साथ धरने पर बैठ जाउंगा.. जबकि चुनाव के पहले खुद टीएस सिंहदेव ने हाथी समस्या को देखते हुए लेमरू हाथी कोरिडोर को कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र मे शामिल किया था..
सरगुजा जिले के लखनपुर विकासखण्ड के 9 और उदयपुर ब्लाक के 30 गांवो को लेमरू हाथी कोरिडोर मे शामिल किया है.. जिसके लिए भाजपा ने उसी क्षेत्र के अपने वरिष्ठ कार्यकर्ताओ से जमीनी हकीकत की जांच कराई.. जिसके आधार पर भाजपा जिला अध्यक्ष ललन प्रताप सिंह का कहना है कि ग्रामीण आदिवासी परिवार के लोग अपना गांव नहीं छोडना चाहते है क्योकि वो आदिकाल से इस क्षेत्र मे रहते आए हैं. और उनके जंगल उनकी अजीविका का साधन है.. इधर स्थानिय विधायक और छत्तीसगढ सरकार मे केबीनेट मंत्री टी एस सिंहदेव द्वारा ग्रामीणो के समर्थन किए जाने के मामले मे भाजपा ने आरोप लगाया है कि मंत्री जी उस दिन केबीनेट मीटिंग मे मौजूद थे.. जब लेमरू हाथी कोरिडोर का मुद्दा पास किया गया था.. इतना ही नहीं भाजपा जिला अध्यक्ष ने कहा कि अगर वो ग्रामीणो के हितैषी हैं तो सरकार को अपना इस्तीफा देकर उनके साथ धरने पर बैठे..
हाथी समस्या से निपटने के लिए मौजूदा कांग्रेस सरकार ने अपने घोषणा पत्र मे लेमरू एलीफेंट कोरिडोर बनाने की बात कही थी.. जिसके लिए छत्तीसगढ शासन करीब साढे नौ सौ करोड रूपए मंजूर कर दिए हैं.. इस हाथी कोरिडोर मे सरगुजा के 39 गांवो के अळावा रायगढ औऱ कोरबा के 145 गांवो को शामिल किया गया है.. लेकिन इधर विपक्षी दल भाजपा ने लेमरू हाथी कोरिडोर मे सरगुजा के 39 गांवो को नहीं शामिल करने के लिए मुख्यमंत्री के नाम कलेक्टर को मांग पत्र सौंपा है..
अम्बिकापुर विधानसभा के जिन 39 पंचायतो को लेमरू हाथी कोरिडोर मे शामिल किया गया है.. वहां के वोटर अम्बिकापुर विधानसभा के लिए निर्णायक होते हैं.. और शायद यही वजह है कि हाथी कोरिडोर के प्रभावित की नब्ज टटोलने के बाद सत्ताधारी औऱ विपक्ष के नेताओ अब इस क्षेत्र के मसीहा बनने मे कोई कमी नहीं छोडना चाहते हैं.. बहरहाल सवाल तो ये है कि आदिकाल से वनो पर आश्रित यहां के आदिवासियों को बिना विस्थापन अगर कोरिडोर के अंदर रहना पडेगा.. तो क्या वो रह पाएगें..? और अगर विस्थापित होना पडा तो वो कहां जाएगें… ?