कांकेर..जिले के दुर्गुकोंदल विकासखंड के अंतर्गत रहने वाले सोनझरिया परिवार के लोग खेती किसानी निपटाने के बाद पूरे वर्ष भर जंगलों में खाक जानते हुए सोने की तलाश करते हैं। यह इनका पुष्तैनी धंधा है जो कई वर्षों से चला आ रहा है। कांकेर जिले के अलावा महाराष्ट्र के सीमावर्ती जिले गढ़चिरौली के भी नदी नालों में जाकर सोने की तलाश करते हैं। और नदी की रेत में मिलने वाले सोने के महीन कणों से इनका जीवन चलता है।
इनके साथ तमाम चुनौतियां हैं क्योंकि नक्सल प्रभावित क्षेत्र में जंगलों में रहकर सोने की तलाश करना चुनौतीपूर्ण होता है। जंगल में जंगली जानवरों का भय भी होता है पानी, बारिश, गर्मी, ठंड की भी समस्या झेलनी पड़ती है। वही जंगल के बीच लगातार भोजन की उपलब्धता भी नहीं होती और स्वास्थ्य समस्याएं बिन के साथ होती हैं। इतनी तमाम चुनौतियों के बाद भी इस समाज के लोग वर्षों से जंगल में नदी नालों में सोने की तलाश करते हैं।
दुनिया में महीन माने जाने वाली रेत में भी सोने के महीन कणों को तलाश लेते हैं। इनके एक युवा सदस्य राम कुमार ने बताया कि कई वर्षों से हम यह काम कर रहे हैं और हमें इससे अन्य दूसरे रोजगार करने की आवश्यकता नहीं होती इस काम को करके ही हमारे परिवारों का जीवन यापन चलता है।
वहीं, इस परिवार के बुजुर्ग मोतीराम ने बताया कि वर्षों से हम इस क्षेत्र में रहते हैं, परंतु आज भी आदिवासी होने के बाद भी हमें आदिवासी होने के प्रमाण पत्र नहीं मिले हैं इसे हेतु हम राजधानी तक कई बार दौड़ लगा चुके हैं। हर जनप्रतिनिधि से चर्चा कर चुके हैं पर हमें आदिवासी होने का प्रमाण पत्र नहीं मिला, जिसके कारण हमारे परिवार के लोगों को पढ़ने लिखने व अन्य सुविधाओं लेने में भी असुविधा का सामना करना पड़ता है।