दानशीलता के लिए विख्यात राजा विजयभूषण सिंहदेव का मना जन्मदिन..

दानषीलता के लिये राजा विजय भूषण सिंहदेव विख्यात थे।
विजय भूषण सिंहदेव कन्या महाविद्यालय, में मनाया गया जन्म दिन
जशपुर से तरुण प्रकाश शर्मा की रिपोर्ट..

 

शासकीय विजय भूषण सिंहदेव कन्या महाविद्यालय,जषपुर के सभागार में आज राजा विजय भूषण सिंहदेव के जन्म दिन के अवसर पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। छ.ग. शासन ने परिपत्र के माध्यम से विधान सभा में सर्वसम्मति से पारित संकल्प के अनुसार छ.ग. में स्थित जितने में षिक्षण संस्थाएँ है जो किसी न किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति/ महापुरुष के नाम से नामकरण किया गया है। उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाये रखने के लिये एंव उनके कार्यो को छात्र/छात्राओं तक पहुचाने के लिये उनके जयंती एंव पुण्य तिथि पर कार्यक्रम आयोजित किये जाये। जषपुर रियासत के अंतिम  राजा विजय भूषण सिंहदेव के कार्यो को देखते हुये छत्तीसगढ शासन,उच्च षिक्षा विभाग ने शासकीय कन्या महाविद्यालय का नाम इस क्षेंत्र के दानषील, उदार एंव सरल रियासत के अंतिम राजा विजय भूषण सिंहदेव के नाम से महाविद्यालय का नामकरण किया है। आज राजा विजय भूषण सिंहदेव के जयन्ती के अवसर पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के. के. राय पूर्व अध्यक्ष छ. ग. पर्यटन मण्डल, छत्तीसगढ शासन ने उनके छायाचित्र पर दीप प्रज्वलित एंव माल्र्यापण किये। स्वागत उदबोधन श्रीमती एम. कुजूर ने किया।

उदबोधन के क्रम में डाँ. ए. के. श्रीवास्तव ने उनके द्वारा किये गये कार्यो पर प्रकाश डालते हुये औधेश्वर आश्रम एंव कल्याण आश्रम के स्थापना में उनके यांगदान को रेखांकित किया। प्राचार्य डाॅ. विजय रक्षित ने उन्हे धार्मिक सदभाव के प्रतीक होने के साथ साथ भारतीय संध में देशी राज्यों के विलीनीकरण में उनके योगदान को बताते हुये उनके जीवन परिचय का वर्णन विस्तार से बताया।
राजा विजय भूषण सिंह देव का जन्म 11 जनवरी 1926 को हुआ । जषपुर रियासत के दैदीप्यमान राजा देवषरण सिंह की दो रानियां  राजकुमारी देवी एवं राज्यलक्ष्मी देवी में छोटी रानी राज्यलक्ष्मी देवी के सुपुत्र राजा विजय भूषण सिंह देव को राज्य के उत्तराधिकारी का पद इनके अबोध बाल्यवस्था में ही राजगद्दी प्राप्त हो गया ।  इनके पिता का देहावसान 27 फरवरी 1931 को 31 वर्ष की अल्पायु में ही हो गई । उस समय राजा विजय भूषण सिंह देव की आयु मात्र 5 वर्ष की थी वे ही जषपुर रियासत के राजा बने । इनकी षिक्षा राजकुमार काॅलेज रायपुर तथा मेयो काँलेज अजमेर में हुई ।

d 2
शिक्षा-दिक्षा उपरान्त स्टेट के प्रषासनिक प्रबंधन के कार्यों का प्रषिक्षण बस्तर स्टेट जाकर प्राप्त किया , जहाँ मिस्टर ए.डब्ल्यु. फाब्र्स इनके प्रषिक्षक थे। वर्ष 1947 तक जषपुर स्टेट के अंतिम शासक के रूप में इन्होंने राज किया । इनके उत्तराधिकार को ब्रिटिष शासन ने स्वीकार किया किन्तु इनके छोटी उम्र के कारण रियासत का शासन प्रबंध सीधे ब्रिटिष शासन के अधीन रहा । मध्य प्रान्त सेवा के अधिकारी रणबहादुर अब्बुल गफ्फर खाँ रियासत के सुपिरिन्टेडेंट नियुक्त किये गये।  राजा के वयस्क होने पर रियासत का कार्य भार उनके प्रत्यक्ष अधिकार में आ गया । व्यक्तिगत साक्षात्कार के अंतर्गत बंकिम चन्द्र चटर्जी ने बताया कि सन् 1947 में राजा विजय भूषण सिंह देव को गद्दी मिली और टी0सी0आर0 मेनन दीवान बनाये गये। रियासत के राजपुरोहित ने राजा को राज गद्दी पर बैठने का शुभ समय 15 जनवरी 1948 बताया था । अतः राजा विजय भूषण सिंह देव 15 जनवरी को गद्दी पर बैठने वाले थे किन्तु नियत तिथि के पहले ही रियासत का भारतीय संघ में विलय हो गया । जनसेवा के लिए राजनीति का मार्ग अपनाकर इन्होंने म0प्र0 की प्रथम विधान सभा चुनाव मे जषपुर विधायक के रूप में 1952 से 1957 तक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया । पुनः 1957 से 1962 तक इन्होंने बगीचा विधान सभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया । रायगढ़ लोक सभा क्षेत्र के सांसद के रूप में 1967 तक आम जनता की आवाज सांसद तक पहुँचाने में सफल रहे। 1970 से 1976 तक इन्होंने म0प्र0 से भारतीय सांसद में राज्य सभा सदस्य के रूप में अपनी सेवायें दी ।
राजा विजय भूषण सिंह देव का शासन काल रियासतों के भारतीय संघ में विलय का समय तक था। इस प्रकार ये जषपुर रियासत के राजवंष जिसने 300 वर्षों से भी अधिक शासन किया , के अंतिम शासक हुए । इनका शासन काल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का महत्वपूर्ण काल था । जिसमें रियासत की प्रजा की स्वतः स्वतंत्रय आकांक्षाओं और ब्रिटिष सरकार की विरोधी नीतियों के बीच संतुलन बनाते हुए इन्हें स्वषासन करना पड़ा। भारत के रियासत पर ब्रिटिष सरकार की नीतियाँ और हस्तक्षेप अधिक था।

 

मध्यप्रान्त की अन्य रियासतों के समान जषपुर रियासत में भी न्याय और प्रषासन ब्रिटिष नीतियों पर आधारित थे। रियासतों और ब्रिटिष प्रषासन के बीच प्रत्यक्ष संबंध बनाने के लिए ’ ईस्टर्न स्टेट एजेन्सी ’ की स्थापना 1933 में हुई । इसके अधीन जषपुर रियासत का संबंध रेजीडेन्सी के मुख्यालय राँची से हो गया। भारत के स्वतंत्र होने के बाद रियासतों के भारतीय संघ में विलय के प्रष्न पर ईस्टर्न स्टेट एजेन्सी के विरोध मुखर गए थे। इस में जषपुर शासक में भी विलय का विरोध किया था किन्तु 15 सितम्बर 1947 के नागपुर अधिवेषन के समय ईस्टर्न स्टेट की सभी रियासत का भारतीय संघ में विलय हो गया । इस प्रकार जष्पुर राजवंष का शासन जो शताब्दियों तक इस क्षेत्र पर शासन करता आ रहा था ,का अन्त हो गया। पर राजा विजय भूषण सिंह देव जो एक परोपकारी और जनहितकारी कार्य शासक के रूप में प्रजा में विख्यात थे। अपने जीवन पर्यन्त क्षेत्र के लोगों का सम्मान और स्नेह प्राप्त करते रहें।   राजनीति के साथ धर्म एवं समाज सेवा के क्षेत्र में भी राजा साहब समर्पित रहे। इनकी आध्यात्मिक सोच एवं धार्मिक आस्था के फलस्वरूप जषपुर क्षेत्र के अनन्त श्री विभूषित धर्म सम्राट ब्रम्हलीन स्वामी करपात्री जी महाराज,पूज्यपाद अघोरेष्वर बाबा भगवान राम , बद्रीपीठ व द्वारिका पीठाधीष्वर 1008 जगत गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द जी महाराज,राजा हरिषचन्द्र घाट काषी निवासी , औघड़ स्व0 बाबा रामलोचन राम जी जैसे महान संतों एवं वन योगी स्व. बाला साहेब देषपाण्डे व पूज्य मेरूभाऊ केतकर गुरूजी जैसे समाज सेवियों की छत्र-छाया प्राप्त हुई । जषपुर में अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम जैसे समाज सेवी संस्थाओं की स्थापना में भी राजा साहब का योगदान रहा है।
अत्यंत सरल , मिलनसार , सर्वजन हेतु सुलभ तथा मृदु भाषी राजा विजय भूषण सिंह देव का स्वर्ग रोहन उन्हीं की प्रिय कर्मस्थली जषपुर नगर में दिनाँक 17 अगस्त 1982 को हुआ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कृष्ण कुमार राय ने राजा विजय भूषण सिंह देव का स्मरण करते हुये बताये कि उन्होने इस रियासत में धार्मिक सदभाव स्थापित करने तथा सभी धर्मो के बीच में भाई-चारा बढाने में काफी कार्य किये। आज भी जिले में स्थित मंदिरों की व्यवस्था के लिये उन्होने दान में गाँव दी है उसी से उक्त व्यवस्था की जाती है। उन्ही के प्रयास से इस क्षेंत्र में अनेक महात्माओं का आगमन हुआ और यह क्षेंत्र मात्र भौगोलिक क्षेंत्र ही नही वरन महान विभूतियों का कर्म क्षेंत्र भी बना। आज भी उनके दानशीलता की यादे प्रत्येक जशपुरवासियों के जेहन में विद्यमान है।

 

कार्यक्रम में राजपुरोहित पं रामचन्द्र मिश्र ने उनका स्मरण करते हुये बताया कि शिक्षा के प्रति भी उनका विशेष अनुराग था। उनके कार्यकाल में रियासत में 24 विद्यालय कार्यरत थे। विशेष रुप से शिक्षा के विकास के लिये उन्होने बिहार प्रांत से ब्राहम्ण परिवारों को जशपुर आमंत्रित कर इस क्षेंत्र में शिक्षा के दीप को प्रज्वलित करने में काफी योगदान दिये।

महाविद्यालय की छात्रा कु. कामाख्या सिंहदेव ने भी अपने विचार रखते हुये राजपरिवार के वंशावली की विस्तृत जानकारी दी। कार्यक्रम में नरेश नन्दे, ओमप्रकाश साय विशिष्ट अतिथि के रुप तथा महाविद्यालय के समस्त छात्राएँ,प्राध्यापक, कार्यालयीन कर्मचारी उपस्थित थे। सम्पूर्ण कार्यक्रम का संचालन कु. हेमनती यादव ने किया।