नोटबंदी पर भी कवियो औऱ साहित्यकारो ने दी प्रस्तुति
अम्बिकापुर
गुरुनानक जयंती पर हिंदी साहित्य परिषद के तत्वाधान मे काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया । कार्यक्रम मे सबसे पहले गीता द्वेदी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत किया , उसके बाद रंजीत सारथी ने मेरे यार, मेरे प्यार तू, मेरी जिंदगी की बहार तू गीत से संगोष्ठी का शुरुआत की। इसके पश्चात अंचल सिन्हा यश के अमृत्व का वर्णन किया । जिसमे उन्होने संगोष्ठी मे खूब बटोरा धन संपदा, यश , नाम सब छूट जाएगा ,बचे केवल नाम गीत का गायन किया। कार्यक्रम संचालक आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर तनतुरही, मन मुरली अधी अधर कुश नित कलियां , अध जल गघरी छलकत जाए, कैसे छलके मोर मुरलिया रचना से समां बांधा। इसके बाद मालती तोमर ने हाथ धरे कौडी , खखौरी धरे दौरी , मोर सुगना चली जाबो भँवरी बाजार ,, गीत की मार्मिक प्रस्तुति दी। प्रताप पाण्डेय ने धर्म और जाति के बटवारे मे शायद इंसानियत कही खो गई कह कर मानवता की रक्षा की बात कही । गीतकार देवेन्द्र नाथ दुबे ने विगत स्मृतियो मे आकांठ डूब गए, उनके मुखारविंद
से अनायास फूट पडा, झूटा बचपन आई जवानी तेरी भी और मेरी भी । टूटा रिश्ता ,हुई नादानी तेरी भी और मेरी भी गीत गाकर संगोष्ठी मे मौजूद लोगो को मंत्रमुग्ध कर दिया। श्री दुबे के बाद कृष्णकांत पाठक ने कहा कि लोग कहते है वे समझदार हो गए है, मै तो अवगुणो का भंडार हो गया हूं कि पाठ्य रचना की ।
नोटबंदी पर प्रस्तुति
संगोष्ठी मे देश मे 500-1000 के नोट अचानक प्रचलन से बाहर कर दिए जाने से लोगो के अळावा कवियो के माथे पर भी चिंता की लकीरे साफ देखी गई । नोटबंदी के मौजूदा हालात को संगोष्ठी मे उपस्थित कवि सुरेश प्रकाश जायसवाल ने गीत के माध्यम से प्रस्तुत किया ” नोट हुए कागज के तुकडे ,रद्दी भाव ना बिकते है, वर्षो से जिसे संजोकर रखा , वो अब कचरे दिखते है “। तत्पश्चात डाँ पुष्पा सिंह औऱ मुकुल साहू ने वर्तमान परिस्थिती के मद्देनजर अपनी प्रस्तुति दी । आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर के निवास पर आयोजित संगोष्ठी का समापन श्री तोमर ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए किया।