कोरिया. भारत की पावन भूमि पर कई संत-महात्मा अवतरित हुए हैं. जिन्होंने धर्म से विमुख सामान्य मनुष्य में अध्यात्म की चेतना जागृत कर उसका नाता ईश्वरीय मार्ग से जोड़ा है. ऐसे ही एक अलौकिक अवतार गुरु नानकदेव जी हैं. आगामी 9 एवं 10 नवम्बर को सर्कस ग्राउंड मनेन्द्रगढ़ में अलौकिक कीर्तन समागम का आयोजन किया जा रहा है. 550 साल गुरु दे नाल के मौके पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे.
मनेन्द्रगढ़ में गुरु नानक देव जी के जन्मोत्सव के पूर्व भव्य प्रभात फेरी का आयोजन किया गया. शुक्रवार को प्रभातफेरी की शुरुआत गुरुद्वारा श्री साध संगत से हुई. नगर के प्रमुख मार्गों से कीर्तन करते हुए प्रभात फेरी गुरुद्वारा श्री गुरु सिंघ सभा पहुँची. इस दौरान श्रद्धालु नानक नाम जहाज है, चढ़े सो उतरे पार व कल तारन गुरु नानक आया जैसे संकीर्तन करते हुए चल रहे थे.
कहा जाता है कि गुरु नानकदेवजी का आगमन ऐसे युग में हुआ जो इस देश के इतिहास के सबसे अंधेरे युगों में था. उनका जन्म 1469 में लाहौर से 30 मील दूर दक्षिण-पश्चिम में तलवंडी रायभोय नामक स्थान पर हुआ जो अब पाकिस्तान में है. बाद में गुरुजी के सम्मान में इस स्थान का नाम ननकाना साहिब रखा गया.
ऊंच-नीच का विरोध करते हुए गुरु नानकदेव अपनी मुखवाणी ‘जपुजी साहिब’ में कहते हैं कि ‘नानक उत्तम-नीच न कोई’ जिसका भावार्थ है कि ईश्वर की निगाह में छोटा-बड़ा कोई नहीं फिर भी अगर कोई व्यक्ति अपने आपको उस प्रभु की निगाह में छोटा समझे तो ईश्वर उस व्यक्ति के हर समय साथ है. यह तभी हो सकता है जब व्यक्ति ईश्वर के नाम द्वारा अपना अहंकार दूर कर लेता है. तब व्यक्ति ईश्वर की निगाह में सबसे बड़ा है और उसके समान कोई नहीं.