गरियाबंद..जिले के छुरा विकासखंड में सोरिद के पहाड़ों पर मौजूद है माता रमई पाठ, जहां सैकड़ो की संख्या में भक्त चैत्र व शारदीय नवरात्र में ज्योति प्रज्वलित करने के अलावा रामनवमी को विशेष दर्शन के लिए जुटते है।मान्यता है कि राम वनवास के दरम्यान यंहा श्री राम, माता जानकी और भगवान श्री लक्ष्मण ठहरे हुए थे। स्थल में एक आम वृक्ष है जिसके जड़ से अनवरत पानी झरते रहता है। कहा जाता है माता सीता को लगी प्यास बुझाने लक्ष्मण के तीर से यह जल स्रोत फूटा था। राम व माई सीता के वास के कारण यहां की देवी को रमई के नाम से पूजा जाता है।
किसी भी देव स्थल पर राम व सीता की मूर्ति स्थापित होने का भी यह पहला स्थान है। यहां की शक्ति से अवगत होने के बाद 8वीं शताब्दी में रजवाड़े काल से यंहा पूजन होने का इतिहास है। आज राम नवमी के दिन ऐतिहासिक रमई पाठ में भक्तों की भीड़ जुटी हुई है।
माँ रमईपाठ मंदिर में भक्तों का तांता सुबह से शाम तक लगा रहता है। मंदिर में 8 वी शताब्दी की मुर्तियां है। जो एक मिट्टी के मंदिर में विराजित है। माँ सीता की गर्भ धारण किये हुए प्रतिमा आज भी निसंतान दंपतियों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। प्रदेश के दूर दराज से युवा दम्पति संतान प्राप्ति की मनौती लेकर इस मंदिर में आते है और मनौती पुरे होने पर श्रद्धालु गादी माँ के लिए लोहे के झूले अर्पित करते है।
रमई पाठ मंदिर का इतिहास
बताया जाता है की मंदिर का इतिहास बड़ा ही रोचक हैं। मान्यता है कि, रामायण काल में भगवान राम में जब एक धोबी की बातें सुनकर माता सीता को परित्याग कर दिया था जिसके बाद भाई लक्ष्मण के साथ माता सीता को छोड़कर चले गए थे। उस वक्त वे गर्भवती थी। एक दिन माता अंतर्धान मुद्रा में गर्भ को पकड़कर बैठी थी उस वक्त भगवन आए। लेकिन, माता का ध्यान भंग न हो जाए इसलिए वे वही बैठे गए।