जिले में असीम संभावनाएं……… लेकिन फिर भी सुविधाओ का आभाव

कोरिया जिले में खनिज संसाधन, दुर्लभ जडी-बूटी व पर्यटन के पर्याप्त स्थान होने के बाद भी रोजगार शिक्षा पानी स्वास्थ्य सुविधाएं आवासीय भवनों समेत अन्य बुनियादी सुविधाओं का अभाव, जिला बनने के 17 साल बाद भी अपनी पहचान को तरसता कोरिया

कोरिया (सोनहत से राजन पाण्डेय की विशेष रिपोर्ट )

कोरिया जिला ऐतिहासिक और पौराणिक रूप से हमेशा समृद्ध रहा है कोरिया की धरती प्राकृतिक संसाधनो से भरपूर है कोरिया रियासत के राजा रामानुज प्रताप सिह देव ने 1941 में यहां शिक्षा की अलख जगाई थी परन्तु आज भी उद्योग एवं मानक स्तर के संस्थान नही खोले जा सके है। कोल खनन कार्य में बड़े अधिकारीयों से लेकर कर्मचारीयों तक अधिकांश बाहरी लोग आसीन है । राज्य गठन के बाद लोगों को एक उम्मीद जगी थी की विकास के मार्ग खुलेंगे लेकिन शासन प्रशासन के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे है। कोरिया को जिले का दर्जा मिले हुए करीब 17 वर्ष पूर्ण होने को हैं। लेकिन शासन प्रशासन द्वारा जिलावासीयों को मूलभूत सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं कराई जा सकी हैं। कर्मचारियों के निवास करने के लिए अच्छे शासकीय आवास तक नहीं हैं। ग्रामीण सड़कें जर्जर हालत में हैं। प्रमुख नदियों पर सियासत काल में बनाए गए पुल कालातीत हो चुके हैं। ग्रामीण इलाकों के स्वास्थ्य केन्द्रों में चिकित्सक नहीं रहना चाहते हैं। वहीं खनिज संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद जिले में उद्योगों की स्थापना नहीं होने के कारण यहां का खनिज अन्य राज्यों को बेचा जा रहा है। जिले में शिक्षा के स्तर की हालत अत्यंत दयनीय है। विद्यालयों में शिक्षक, व भवन की कमी सर्वविदित है। रोजगार के संसाधन उपलब्ध नहीं होने से यहां के शिक्षित बेरोजगारों को रोजी रोटी की समस्या सता रही है। पर्यटन के क्षेत्र में असीम संभावनाएं होने के बावजूद प्रशासनिक उदासीनता से पर्यटन को बढवा नहीं मिल पा रहा है। यहां के वनों में प्राप्त दुर्लभ वनौषधियों वनों तक ही सीमित हैं। शासन प्रशासन की सार्थक पहल से जिले का विकास तीव्र गति से हो सकता हैं। कोरिया जिलेे में बेशकिमती खनिजो का खजाना है। वही उद्योगों को शासन प्रशासन दारा बढावा न दिये जाने से जिले की खनिजों को अन्य राज्यों में बेचा जा रहा है। एसईसीएल द्वारा जिले के चरचा चिरमिरी पाण्डव पारा व अन्य क्षेत्र में कोयला की अनेक खदानें हैं। कोयले की गुणवक्ता भी उच्च है। इसके बावजूद जिले में उद्योगों की स्थापना न होने से अन्य राज्यों में स्थापित कोयले पर आधारित उद्योगों द्वारा कोयले को बडी कम्पनीयों द्वारा खरीदा जा रहा हैं। जिले के कई क्षेत्रों में पत्थर व रेत भी प्रचुर मात्र में है। इनके अवैध उत्खनन से राजस्व समेत पर्यावरण को भी क्षति पहंुच रही है

 

विकराल रूप ले रही जल समस्या
कोरिया की भगौलिक परिस्थिती को रियासत काल में राजा बालेन्द्र ने पहचाना था उन्होने अपने काल में लगभग 300 तालाब खुदवाए थे राजा रामानुज प्रताप सिह ने जिला मुख्यालय में जोड़ा तालाब खुदवाया था जिसमें एक को जेल व दूसरे को मंदिर तालाब के नाम से जाना जाता है। पेय जल संकट के समाधान के नाम से मघ्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ शासन काल में मंत्री रहे डा राम चंद्र सिहदेव ने गेज एवं झुमका जलाशय बनवाकर काफी हद तक पानी की समस्या से निजात दिलाई तथा इन्ही के कार्यकाल में सोनहत क्षेत्र में घुनघुटा तंजरा जलाश्य टेडि़या बांध का निर्माण कराया गया । इसके बाद से जल एवं सिचाई व्यवस्था के मददेनजर कोई भी उल्लेखनीय स्तर के कार्य नही कराए गए
हांलाकि जिले में सिंचाई की सुविधाएं विकसित करने के दृष्टिकोण से छोटे बडे नालों व नदियों पर स्टाप डैंम व एनिकट का निर्माण कराया गया हैं। जिसमें कई निर्माण भ्रष्टाचार की भेंट चढ कर उपयोग विहीन हो गए नहर व बांधों की स्थिति धरातल पर है नहीं और अधिकारियों द्वारा कागजों में सिचांई के रकबा भले बताया जाता है लेकिन स्थिती कुछ दूसरी ही है। इससे जिले के किसानों को खेती किसानी कार्य के लिए मनसून पर निर्भर रहना पडता है। इससे फसल के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा हैं। जिला प्रशासन सर्वेक्षण कर बांध व नहर के निर्माण कार्य को अमलीजमा पहनाए तब कहीं जाकर यहां के किसान दो फसल ले पाएगें। वहीं कई ग्रामों के ग्रामीण आज भी कई किलोमीटर दूर से पानी लाकर अपनी प्यास बुझा रहे हैं।

ग्रामीण सड़के खस्ताहाल
सडकें ही किसी भी क्षेत्र को विकास की मुख्यधारा से जोडती है जिले की बदहाल व जर्जर सडकों के कारण जिले का विकास प्रभावित हो रहा है। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का हाल बेहाल है।  वनांचल क्षेत्र की सड़कों पर वाहन चालना अथवा पैदल वलना भी जान को जोखिम में डालने से कम नही है जिसका अंदाजा सोनहत विकासखंड के आनंदपुर गोयनी धनपुर गिधेर पलारीडांड़ रेवला सेमरिया सुक्तरा आदि सड़कों को देख कर लगाया जा सकता है। स्कुल भवनों समेत कई अन्य निर्माण कार्य प्रशानिक लापरवाही के कारण वर्षों से अधूरे पडे़ हैं। प्रशासन को निर्माण एजेसिंयों पर कठोर कार्यवाही करनी चाहिए जिससे निर्माण कार्यों में तेजी आए।

ये है जिले के गौरव

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अमृतधारा जल प्रपात: कोरिया जिले के ग्राम बरबसपुर के पास स्थित अमृतधारा जल प्रपात जो की छत्तीसगढ के जल प्रपातों में से एक अदभुद माना जाता है यहां पर दूर दूर से सैलानी दर्शन करने आते है प्रकृतिक अवशेषों को समेटे हुए अमृत धारा अपने आप में एक विशेष पहचान रखता है ओर जिले के गौरव के रूप में जाना जाता है।
कोरिया पैलेस: 1946 में बनकर तैयार हुआ कोरिया पैलेस जिला मुख्यालय बैकुन्ठपुर में स्थित है कोरिया पैलेस की डिजाईन नागपुर के इंजिनियर ने तैयार किया था कोरिया महल की सबसे खास बात यह है की इसे बनाने में सिर्फ चूने एवं बेल का प्रयोग किया है ।
पांडव स्थल: भरतपुर ब्लाक के माड़ी सरई पंचायत अंर्तगत हरचैका गूफा ऐतिहासिक महत्व की मूर्तियों के लिए जानी जाती है। मान्यताओं के अनुसार पाण्डव अज्ञातवास के दौरान यहां पर आकर रूके थे गुफा में राक कटिंग की बेहतरीन कलाकृतियां आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। यहां पर 12 शिवलिंग विभिन्न दिशाओं एवं आकार में स्थित है।
गुरूघासीदास राष्ट्रीय उद्यान: जिला मुख्यालय बैकुन्ठपुर से 35 किलोमीटर की दूरी पर सोनहत ब्लाक में स्थित है उद्यान को टाईगर रिर्जव घोषित करने का प्रयास जारी है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय उद्यान में लगभग 15 ऐतिहासिक स्थल भी हैै

विकास को मिले गति

korea schoolशिक्षा व्यवस्था: राजा रामानुज प्रताप सिह देव अपने राज में सन 1941 से ही शिक्षा व्यवस्था को अनिवार्य कर दिया था स्कूलों में अच्छे अध्यापकों के द्वारा अध्यापन कार्य कराया जाता था साथ ही उस दौरान उन्होने मध्यान भोजन की परंपरा गुड़ एवं चना देकर शुरू करवाया था लेकिन आज के दोर में जिला बने लगभग 17 साल बीत गए वनांचल क्षेत्रों विद्यालय एवं आंगन बाड़ी केन्द्रों की स्थिती दयनीय है जिले में तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में पालीटेकनिक बैकुन्ठपुर को छोड़ अच्छे कालेज नही खुल सके है वही मेडिकल कालेज तो एक दिव्य स्वप्न ही है जिला मुख्यालय स्थित पी जी कालेज की बदहाली किसी से छिपी नही है। शासन स्तर पर महाविद्यालय एवं स्कूलों में विषय वार शिक्षकों की नियुक्ति होन पर ही शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है।

उद्योग विकास की राह थमी: कोरिया जिले में विकास का काम 1929 से शुरू हुआ बिजुरी से चिरमिरी तक रेलखंड की नीव रखी गई जो 1931 में तैयार हुई इसी दौरान चिरिमिरी में कोल उत्पादन शुरू हुआ जिसके बाद खुरासिया झगराखांड़ पाण्डवपारा चरचा में भी कोल उत्पादन शुरू हुआ पूरे छत्तीसगढ में कोल उत्पादन के क्षेत्र में कोरिया जिला का अहम योगदान रहा लेकिन यहां के कोल उत्पादन का जिले को कोई लाभ नही मिला । वहीं जिला बनने के बाद छत्तीसगढ राज्य भी असतित्व में आया लेकिन सरकार के तीसरे कार्यकाल में जिले को एक अदद उद्योग नही मिलपाया और यहां के लोग बाहर जाकर जीवनयापन करने मजबूर हो गए

अभी भी मध्यप्रदेश से बिजली: छत्तीसगढ राज्य सरप्लस बिजली होने का वादा करता है लेकिन जिले के भरतुपुर विकासखंड में आज भी मध्य प्रदेश से बिजली का आपुर्ति की जा रही है। जबकी जिला बने 17 वर्ष हो चुके है।

सिचाई सुविधा अपर्याप्तः पिछले लगभग 10 साल से जिले में सिचाई के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय कार्य नही हुआ है। जबकी जिले में हसदो बनास और गोपद जैसी प्रमुख नदियां है। विगत कई वर्षो से जिले में सिचाई सुविधाओं का विस्तार नही हुआ है।

जिले की स्थिती पर एक नजरcsc korea

  1. कोरिया जिले की स्थापना -1998
  2. जिले में नगर पंचायत-3
  3. जिले में नगर पालिका 3
  4. नगर निगम -1
  5. जिले में विकासखंड -5
  6. जिले में लगभग गांव 653
  7. ग्राम पंचायत- 286
  8. जिले की जंनसंख्या 5लाख 86 हजार
  9. जिले का साक्षारता दर 70 प्रतिशत
  10. रेलवे स्टेशन -9
  11. कोल खनन क्षेत्र- चरचा पाण्डवपारा झिलमिली चिरमिरी डेमनहिल रानी अटारी खुरासिया झगराखांड खोगापानी
  12. कोल खनन मुख्यालय – बैकुन्ठपुर , हसदेव, चिरमिरी
  13. वन क्षेत्र जिले के कुल क्षेत्रफल का- 59 प्रतिशत