
बलरामपुर..(कृष्णमोहन कुमार)..जिला स्तरीय सत्यापन समिति ने विधायक शकुंतला पोर्ते की जाति प्रमाण पत्र के मामले में सुनवाई की और दस्तावेजों की कमी की वजह से सुनवाई की तारीख बढ़ा दी गई है..सुनवाई अब 29 दिसंबर होगी..बढ़ते तारीखों की वजह से सर्व आदिवासी समाज सड़कों पर उतर आया है..लगातार सुनवाई की मांग भी कर रहा है..जो संभव भी नही है..खैर इस पूरे मामले को देखते हुए कलेक्ट्रेट परिसर की 500 मीटर की परिधि में दंड संहिता 1973 की धारा 144 लागू की गई है..लेकिन अब यह 144 भी सवालों के घेरे में है..क्योंकि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में यह धारा 163 हो गई है..जो कि आमजन के भीड़ नियंत्रण से जुड़ी हुई है!.

जिला प्रशासन का यह धारा 144 सवालों घेरे में इसलिए है क्योंकि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 1 जुलाई 2024 को देश के अन्य राज्यों के साथ ही छत्तीसगढ़ में भी लागू हुई.. नये कानून लाने का मुख्य उद्देश्य आपराधिक प्रणाली में सुधार लाने के उद्देश्य से किया गया है..जिसका प्रचार – प्रसार व्यापक पैमाने पर किया गया..भारतीय दंड संहिता और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता को लेकर तो पुलिस विभाग ने कार्यशाला तक का आयोजन किया था..लेकिन जिला प्रशासन से यह भूल हो गई ..की नये कानून लागू होने के बाद भी उसने पुराने अधिनियम के तहत आदेश जारी कर दिया ..अब सोचने वाली बात है कि छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले में जुलाई 2024 में अस्तित्व में आये कानूनों का कोई अस्तित्व नहीं है..
दंड संहिता 1973 (code of criminal procedure) की जगह BNSS (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता ) ने ली है, और दोनों ही संहिता में कुछ परिवर्तन भी किये गये है..जिसके चलते धाराओं के नम्बर घटे बढ़े है..बावजूद इन सबके आखिर स्थानीय प्रशासन ने कैसे चूक कर दी.यह समझ से परे है!.




