शिक्षा की अलख जगाने दान कर दी 70 डिसमिल जमीन

अम्बिकापुर-देश दीपक “सचिन”

पूर्व सरपंच की जमीन पर बना है यह हायर सेकेंड्री स्कूल
शहर से लगे खैरबार ग्राम पंचायत के पूर्व सरपंच धरम साय ने अपने गाँव में शिक्षा की अलख जगाने में बड़ा ही महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन्होंने गाँव में हाई व हायरसेकेंड्री स्कूल की सुविधा के लिए शासन से मांग की लेकिन शिक्षा विभाग ने स्कूल भवन के लिए शासकीय जमीन न होने का हवाला दिया जिस पर धरम साय ने सड़क किनारे की अपनी ही जमींन दान देने का निश्चय कर लिया। लिहाजा धरम साय के इस फैसले के आगे प्रशासन भी स्कूल की अनुमति देने से गुरेज नहीं कर सका परिणाम स्वरुप खैरबार में अब स्कूल बन चुका है और बड़े स्कूल भवन में छात्र-छात्राए शिक्षा ग्रहण कर रहे है और अपना भिवष्य निर्माण भी कर रहे है इसी स्कूल में पढने वाली छात्रा नेशनल गेम में भी हिस्सा ले चुकी है। लिहाजा धरम साय का यह प्रयास रंग लाया और छात्रो के तरक्की का मार्ग प्रसस्थ हो रहा है।
वही इस बड़े स्कूल भवन से छात्र छात्राए भी खुस है पहले इस गांव में मिडिल स्कूल के छोटे से भवन में ही शिफ्ट चेंज कर कक्षाए लगाईं जाती थी जिससे बच्चो को पढने में काफी असुविधा होती थी अगल बगल में ही अलग अलग कक्षाए संचालित होने से एक दूसरे की आवाज से छात्रो को पढने में असुविधा होती थी। इस समस्या को देखते हुए धरम सिंह ने कुछ दिनों के लिए अपने घर को ही स्कूल की कक्षाए संचालित करने के लिए दे दिया था। लेकिन जल्द ही धरम सिंह के द्वारा दान की गई 70 डिसमिल जमीन में स्कूल भवन बनवा दिया गया और बच्चो के लिए कक्षा 8 वी से 12 वी तक की कक्षाए संचालित होने लगी है।
बहरहाल धरम साय ने महज स्कूल को ही नहीं बल्कि वन विभाग के रहवासी मकान बनाने के लिए भी अपनी जमींन दान की है। और उस जमीन पर वन विभाग ने मकान बनवाकर अपने कर्मचारियों को दिया हुआ है। धरम साय के इस उदार दिल व्यवहार की तारीफ़ खैरबार की प्रिंसिपल सहित पूरा स्कूल स्टाफ करता है। और समाज में शिक्षा की अलख जगाने के लिए अन्य लोगो को ऐसा सह्योगात्माक कदम उठाने की सलाह भी दे रहा है।

गरीब किसान के बेटे ने किया कमाल 
धरम साय की पारिवारिक स्थिति बचपन से ठीक नहीं थी पुस्तैनी तौर पर यह परिवार कृषि पर ही आधारित था पैसे और संसाधनों के आभाव में धरम साय खुद तो नहीं पढ़ लिख सके लेकिन गाँव के बच्चो को पढ़ाने के लिए उन्होंने यह महान काम किया। अम्बिकापुर नगर निगम सीमा से लगे हुए गाँव खैरबार के साधारण परिवार में जन्मे धरमसाय ने शिक्षा के लिए अपनी जमीन दान कर के समाज के लिए एक अच्छा सन्देश दिया है। गौरतलब है की सन 2004-05  में सरपंच होने के नाते धरम साय ने अपनी जमीन दान की और तत्कालीन विधायक कमलभान सिंह से हायर सेकेंड्री स्कूल की मान्यता के लिए निवेदन किया था जिस पर विधायक के प्रयास से खैरबार मिडिल स्कूल को हायर सेकेंड्री स्कूल की मान्यता मिल गई लेकिन मान्यता मिलने के बाद जब बात स्कूल भवन निर्माण की आई तो शासकीय जमीन गाँव में उपयुक्त स्थान पर ना होने के कारण हायर सेकेंड्री स्कूल का निर्माण एक बार फिर रुक गया लेकिन स्कूल के निर्माण में बाधक बन रही जमीन की दिक्कत को देखते हुए धरम साय ने अपने जमीन दान करने का निश्चय किया और स्कूल के लिए भवन निर्माण कर रहे लोक निर्माण विभाग को दानपत्र में हस्ताक्षर कर 70 डिसमिल जमीन दान कर दी।
जहां एक ओर लगातार जन प्रतिनिधियों के द्वारा शासकीय राशी के दुरुपयोग के मामले सामने आते है जन प्रतिनिधि शासकीय फंड का दुरूपयोग कर अपनी निजी संपत्ति बढाते है तो वही दूसरी ओर सरपंच रहते हुए धरम साय ने गाँव के विकाश के लिए इतना बड़ा योगदान तो दिया लेकिन दोबारा पंचायत चुनाव में हार गए ना जाने क्यों गाँव के मतदाताओं ने धरम साय के पक्ष में मतदान नहीं किया, जबकी इन्होने गाँव के बच्चो की पढ़ाई के लिए सड़क से लगी 70 डिसमिल जमीन दान कर दी और लगातार हाथियों के कहर से परेसान ग्रामीणों की समस्या के लिए वन विभाग को अपनी जमीन दान की है जिस पर मकान बनाकर वन कर्मी अब इसी गाँव में निवास करते है।

शिक्षको ने ही सराहा धरम के प्रयास को
स्कूल के वाइस प्रिंसिपल ने बताया की पहले भवन छोटा था जिससे बच्चो को पढ़ाने में बहोत दिक्कते होते थी। लेकिन धरम साय जी के द्वारा जमींन दान करने से यहाँ बड़ा विद्द्यालय भवन बन गया है जिसमे बच्चे अब आराम से पढ़ते है। और बड़ा खेल का मैदान होने के कारण यहाँ के बच्चे नेशनल गेम तक में हिस्सा ले रहे है।

धरम साय…जमीन दानदाता
खैर बार गाँव के पूर्व सरपंच और स्कूल के लिए जमीन दान करने वाले धरम साय ने बताया की यहाँ बच्चो को पढने लिखने में काफी असुविधा होती थी जिसके लिए उन्होंने शासन से हाई स्कूल और हायर सेकेंड्री स्कूल की मांग की थी लेकिन स्कूल संचालित करने के लिए जगह नहीं थी जिस पर धरम साय ने शासन को अपनी जमींन दान की और उस पर स्कूल के लिए भवन बनाया गया और आज गाँव के सभी बच्चे स्कूल में पढ़ रहे है।