छत्तीसगढ़ में 100 साल पहले शुरू हुआ था ‘जंगल सत्याग्रह’… महात्मा गांधी की थी महत्वपूर्ण भूमिका, पढ़िए इसके बारे में..

धमतरी. जिले के बेलर ब्लॉक के गट्टासिल्ली में जंगल सत्याग्रह के 100 वर्ष पूरे होने पर आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों के साथ सहित हजारों आदिवासियों ने सत्याग्रह स्तंभ पर पुष्पांजलि देकर पदयात्रा की। वही गट्टासिल्ली के जंगल में तीन दिनों तक 100 बरस पहले हुए जंगल सत्याग्रह की सफलताओं और वर्तमान वनाधिकार कानून के सफलताओं और संभावनाओं पर सार्थक जन संवाद के साथ विशेष आयोजन भी किया जा रहा है। इस सत्याग्रह में छत्तीसगढ़ के सभी जिलों के साथ साथ राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी समुदाय के लिए काम करने वाले सामाजिक संगठनों के साथी भाग ले रहे है।

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एकता परिषद के द्वारा आयोजित इस सत्याग्रह में उड़ीसा से आए पूर्व केंद्रीय मंत्री भक्तचरण दास ने कहा कि यूपीए सरकार के द्वारा लाए गए वन अधिकार कानून की मंशा आदिवासियों को उनके वना अधिकार देना रहा। जंगल को बचाने के लिए जंगल का अधिकार आदिवासियों को देना होगा। बहुत सारे जगहों पर आदिवासियों को वन अधिकार मिला है, उसे और भी सक्रियता के साथ बाकी बचे हुए दावेदारों को देने की जरूरत है। सरकार को अभियान चलाकर आदिवासियों को वन का अधिकार सौंप देना चाहिए। जंगल क्षेत्र की जमीनों का अधिकार उसके वास्तविक अधिकारी आदिवासियों को सौंपना चाहिए। जंगल सत्याग्रह इतिहास के लेखक ने कहा कि पहले जंगल काटकर सत्याग्रह सौ साल पहले शुरू हुआ था अब जंगल बचाकर सत्याग्रह करना होगा।

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महात्मा गांधी की प्रेरणा से छत्तीसगढ़ के सिहावा-नगरी क्षेत्र में 21 जनवरी वर्ष 1922 से भारत का प्रथम जंगल सत्याग्रह प्रारंभ हुआ था, जिसका उदेश्य जल जंगल और ज़मीन पर आदिवासियों और स्थानीय ग्रामवासियों के अधिकारों को स्थापित करना था। इसे छत्तीसगढ़ का जंगल सत्याग्रह कहा जाता है। जो सरकार द्वारा लागू आदिवासी विरोधीकन कानून तथा बेगारी या अन्य मजदूरी में कार्य करने के लिये विवश किये जाने के विरोध में शुरू हुआ था। बाद में धमतरी, महासमुंद, कोरबा, सारंगगढ़ सहित राजनांदगांव जिलों में तेजी से फैला और हजारों सत्याग्रहियों में मिलकर इसे सफल और ऐतिहासिक बनाया।