बलरामपुर..(कृष्णमोहन कुमार)..प्रदेश के अंतिम छोर पर बसे और तीन पड़ोसी राज्यो की सरहद से सटे..बलरामपुर-रामानुजगंज जिले में अवैध रेत उत्खनन का कारोबार थमने का नाम ही नही ले रहा है..और धड़ल्ले से जारी इस कारोबार में जांच करने गए खनिज अधिकारियों व गांव के सरपंच पर अब गम्भीर आरोप लग रहे है..वही दिलचस्प तो यह है..की इस पूरे मामले पर रामानुजगंज विधायक व सरगुजा विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष बृहस्पत सिह की मौन स्वीकृति कई सवालों को जन्म दे रही है..
दरअसल नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने छत्तीसगढ़ में 10 जून से 15 अक्टूबर तक नदी नालों से रेत के उत्खनन पर रोक लगाने गाइड लाइन जारी की है..और सूबे के पंचायत मंत्री ने भी रेत उत्खनन पर रोक लगाने की बात कही है..तथा पंचायत मंत्री ने इस बाबत सम्बंधित अधिकारियों से चर्चा भी की है..लेकिन यह अवैध कारोबार रुकने की जगह और भी तेजी से फल फूल रहा है..
विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक हाल ही के दिनों में जब अवैध रेत उत्खनन को लेकर क्षेत्रीय जिला पंचायत सदस्य रामचरितर सोनवानी व सांसद प्रतिनिधि धीरज सिंहदेव ने रेत माफियाओं के विरुद्ध मोर्चा खोला था..तब स्थानीय प्रशासन ने खनिज निरीक्षक सुब्रत साना को मौके पर भेजा था.. और सूत्र बताते है कि..खनिज निरीक्षक ने रेत माफियाओं पर कार्यवाही तो नही की..बल्कि वे उन्हें रेत ढुलाई के लिए हाईवा की जगह ट्रैक्टर का उपयोग करने की सलाह देकर वापस लौट आये..ग्रामीणों का तो यह भी आरोप है कि..ग्राम त्रिशूली के सरपंच सुखदेव खुद रेत माफियाओं से मिले है..और उन्हें प्रति गाड़ी के एवज में 700₹ रेत माफिया कमीशन देते है..
बता दे कि प्रदेश सरकार की खनिज नीति के तहत पांगन नदी में रेत उत्खनन का लीज है..लेकिन जो लीज प्रशासन ने जारी किया है..वह पांगन नदी के तट पर बसे ग्राम पचावल का है..और ठेकेदार द्वारा लीज होने के बाद से ही पांगन नदी के दूसरे छोर पर बसे ग्राम त्रिशूली से भी रेत उत्खनन किया गया था..और आज भी उसी जगह से रेत का उत्खनन भारी मशीनरी के साथ किया जा रहा है..
वही खनिज निरीक्षक सुब्रत साना अपने ऊपर लग रहे आरोपो को बेबुनियाद तो कह रहे है..इसके साथ ही उनका दावा है..की पांगन नदी में रेत का अवैध उत्खनन हो ही नही रहा है..ऐसे में भला ग्रामीण क्यो झूट बोलेंगे ..और उन्हें खनिज निरीक्षक से क्या दुश्मनी होगी समझ से परे है..
फिलहाल इस अवैध उत्खनन की जानकारी जिले के आलाधिकारियों से लेकर प्रदेश पंचायत एवं स्वास्थ्य मंत्री तक को भी है..और मंत्री के निर्देश के बाद यह सब खुलेआम है..तो इसे प्रशासनिक निष्क्रियता नही बल्कि कुछ और ही समझा जाना चाहिए..और उस रसूख की भी तारीफ करनी होगी जिसने एनजीटी से लेकर सारे नियमो मापदंडों को किनारा कर दिया ..