अम्बिकापुर. सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिले में हाथी के शावक की मौत और फिर पोस्टमार्टम के तरीके पर .. प्रदेश के आला वन अधिकारी चाहें तो बड़ी कार्रवाई कर सकते हैं. क्योंकि सवाल शावक की संदेहास्पद मौत के बाद हाथी के शावक के पोस्टमार्टम के तरीके को लेकर है. क्योंकि फटाफट न्यूज़ को मिले एक वीडियो को देखकर तो आप वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों को हैवान से कम कुछ नहीं कह सकते हैं. जबकि किसी शव के साथ इस तरह की हैवानियत की इजाजत वन विभाग के नियम कायदे भी नहीं देते हैं.
जानकारी के मुताबिक सूरजपुर जिले के प्रतापपुर वन परिक्षेत्र के अंतर्गत आने वाले दलदली और गणेशपुर जंगल के बीच. बीते बुधवार को एक हाथी के शावक का करीब 30 दिन पुराना शव मिला. जिसकी जानकारी ग्रामीणों ने वन विभाग के अधिकारियों को दी. स्थानीय लोगों की जानकारी के बाद सरगुजा वन वृत्त के सीसीएफ के के बीसेन, सूरजपुर डीएफओ बी पी सिंह ,एसडीओ फारेस्ट प्रभाकर खलको , रेंजर रामशरण राम और पशु चिकित्सकों की टीम करीब 2 से 3 किलोमीटर जंगल में पैदल चलकर घटना स्थल पहुंची . लेकिन फिर वो वहां जो हुआ वह किसी हैवानियत से कम नहीं था.
फटाफट न्यूज़ को मिले एक वीडियो को देख कर यह लग रहा है कि पोस्टमार्टम करने के लिए ना पशु चिकित्सकों के पास आधुनिक किट है और ना ही वन विभाग के पास .क्योंकि विभाग ने हाथी को पोस्टमार्टम करने के लिए कुल्हाड़ी का प्रयोग किया . कुल्हाड़ी से हाथी के शावक के शव पर किसी बर्बर नौसिखिए द्वारा कई बार किए गए और शायद उस वक्त वन विभाग के तमाम आला अधिकारी मौके पर मौजूद थे . इतना ही नहीं वन विभाग के अधिकारियों ने शावक के शव को दफनाने की जगह लकड़ियों से जला दिया जबकि जंगल में आग फैलने का डर था.
देखे वीडियो..
करंट से मौत पर सवाल..
प्रतापपुर वन क्षेत्र में करीब 6 से 7 वर्ष के हाथी के शावक की मौत के बाद शायद पशु चिकित्सको ने शावक की मौत करंट लगने से बताई है. और शव के कुछ अंदरूनी अंग को बाहर किसी प्रयोगशाला मे भेज दिया है. लेकिन प्राप्त जानकारी के अनुसार जिस स्थान में हाथी के शावक का शव मिला है. जब वहां वन विभाग के अधिकारियों को दो-तीन किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचना पड़ा है . तो फिर ऐसे घनघोर जंगल मे करंट कैसे प्रवाहित हो गया? कि शावक की मौत करंट लगने से हो गई? खैर ये जवाब तो जिम्मेदार अधिकारी ऐर वरिष्ठ पशु चिकित्सक ही दे सकते हैं.
पीसीसीएफ ने बनाए थे नियम…
बीते फरवरी माह मे गरियाबंद जिले मे तेंदुए के शव के साथ ऐसी ही बर्बरता के मामले मे तत्कालीन पीसीसीएफ कौशलेन्द्र सिंह ने एक नियम बनाया था. जिसके मुताबिक प्रदेश में मरने वाले शेड्यूल वन के वन्यजीवों का पोस्टमार्टम अब जंगल में नहीं किया जाएगा. जिसमे ये साफ था कि जंगल मे या गांव में मरने वाले वन्यजीवों का पीएम अब ऐसे सुगम स्थान पर किया जाएगा. जहां पर पशु चिकित्सक अपनी टीम और पूरी अत्याधुनिक पोस्टमार्टम किट के साथ पहुंच सकें. साथ ही तेंदुए वाली घटना के सामने आने के बाद पीसीसीएफ ने संबधित वन अधिकारियों से कुल्हाड़ी के बर्बरता पूर्व प्रयोग पर सवाल भी किया था.. हालांकि जानकारी के मुताबिक जवाब तो अब तक आया नही. ब्लिक दूसरी घटना जरूर सामने आ गई है.
तेंदुए के शव पर बर्बरता….
गौरतलब है कि 10 फरवरी को प्रदेश के गरियाबंद स्थित मैनपुर परिक्षेत्र के पसरा गांव में बछड़े के शिकार के दौरान एक तेंदुआ कुएं में गिर गया था . तब उसकी डूबने से उसकी मौत हो गई थी. और विभाग ने गैर अनुभवी व्यक्ति को पोर्टमार्टम का काम थमा दिया था. और उसने मृत तेंदुए के ऊपर बर्बरता पूर्वक कुल्हाड़ी चलाते हुए . शव के छोटे-छोटे टुकड़े कर दिए थे. बाद मे कुछ अखबारों मे छपी खबर के बाद यह फैसला लिया गया था.
“पीसीसीएफ ने वन्य प्राणियों की मौत के बाद पोस्टमार्टम के लिए क्या गाईड लाईन जारी किए है..यह हमें पता नही..वन्य जीवों के पोस्टमार्टम के लिए जिले में वेटनरी के तीन डाक्टरो की टीम बनी हुई है..वही पोस्टमार्टम करते है..और उनके पास पोस्टमार्टम किट है या नही इसकी हमें जानकारी नही ..हमे तो बस पीएम रिपोर्ट ही चाहिए होता है!..”
बी.पी सिंह,डीएफओ सूरजपुर..