स्वास्थ्य विभाग में चल रहा रिश्तेदारों की नियुक्ति का खेल

पत्नी लाइब्रेरियन और पति को बना दिया गया अटेंडर

अंबिकापुर

दीपक सराठे 

अपने रिश्तेदारों को विभाग के कई पोस्ट नियुक्ति  दिलाने के नाम पर शासकीय विभागों में खेल चलना पुरानी बात हो गई है परंतु जहां तक स्वास्थ विभाग की बात करें तो यहां किस स्तर पर और कैसे अपने रिश्तेदारों की नियुक्ति विभिन्न विभागों में कर दी गई है इसका एक बड़ा खेल सामने आया है ना तो कोई साक्षात्कार और ना ही समाचार पत्रों में कोई उल्लेख। इन सबके बावजूद नियुक्ति हो जा रही है। मेडिकल कॉलेज स्थापित हो जाने के बाद सोचा जा रहा था कि यहां के बेरोजगारों को उनकी काबिलियत के अनुसार काम मिल सकेगा, परंतु ताजा मामला मेडिकल कॉलेज का ही है, जहां लाइब्रेरियन के पद पर पदस्थ एक महिला के पति को कोई प्रक्रिया के अटेंडर बना दिया गया है। यहां तक कि उसकी नियुक्ति भी कर दी गई है। इस बड़े मामले के सामने आने के बाद स्वास्थ विभाग में खलबली मची हुई है।

गौरतलब है कि गत 1 माह के अंदर मेडिकल कॉलेज अंबिकापुर में लगभग 93 पोस्ट की स्वीकृति होना विभाग के अनुसार सामने आया है। इन स्वीकृत पदों में चपरासी, स्वीपर, अटेंडर सहित कई पद शामिल हैं। इन सभी पदों की भर्ती नियमानुसार होनी है, परंतु अभी तक ना तो प्रक्रिया शुरू हुई और ना ही समाचार पत्रों में विभाग द्वारा कोई सूचना दी गई। बताया जा रहा है कि इन 93 पदों में मात्र दो पदो की भर्ती गुपचुप तरीके से कर दी गई है। इनमें एक पद लाइब्रेरी के अटेंडर का भी है। विदित हो कि जिस अटेंडर पद के लिए जिस व्यक्ति की नियुक्ति की गई है वहीं पर उसकी पत्नी भी लाइब्रेरियन के पद पर पूर्व से पदस्थ है। अटेंडर के भर्ती प्रक्रिया पर जहां स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों में कई प्रकार के प्रश्न उठ रहे हैं, वहीं मेडिकल कॉलेज के ऐओ की भूमिका भी संदिग्ध नजर आ रही है। बड़ी बात यह है कि मेडिकल कॉलेज के डीन के होते हुए इस प्रकार की भर्ती किस प्रकार से हुई यह भी सोचनीय बिंदु है। बिना प्रक्रिया वह बिना नियम के अटेंडर की भर्ती अब सवालों में है।

ईंट भऋा में काम करने वाले को भी रख सकते हैं-एओ

इस पूरे मामले में मेडिकल कॉलेज के एओ जगदीश सिंह से सवाल करने पर उनका जवाब गोलमोल व हास्यस्पद था। उन्होंने कहा कि लायब्रेरी में अटेंडर की भर्ती कलेक्टर दर पर की गई है और इसके लिये कोई प्रक्रिया की जरूरत नहीं। एक ईंट भऋा में काम करने वाला मजदूर ही उन्हें माना जाता है। इस लिहाज से एक मजदूर को भी कलेक्टर दर पर रखा जा सकता है।