अम्बिकापुर
“उदयपुर से क्रान्ति रावत”
रामगढ़ जो कि हजारों वर्षाें से अपने भीतर सैकड़ों रहस्य समेटे हुये है इसकी यात्रा लोगों को रोमांचित करती है। उदयपुर बस स्टैण्ड से दक्षिण दिषा की ओर दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है विष्व की प्राचीनतम् नाट्य शाला सीताबेंगरा । किवदंती है कि इसी स्थान पर महा कवि कालीदास ने अपनी अनुपम कृति मेघदूतम की रचना की है। चारों ओर पहाड़ और और नीचे सुरंग नुमा गुफा है जिसे हाथी पोल(हथफोड़) के नाम से जाना जाता है।
यहां से एक किलोमीटर दूर लगभग 100 फीट से उंची पहाड़ी पर एक गुफा है जिसे लक्ष्मण गुफा के नाम से जाना जाता है। सीता बेंगरा से मुख्य मंदिर की दूरी 4 किलोमीटर के करीब है । रास्ते में घाट पहाड़ से गुजरते हुये सबसे छोटेतुर्रा स्थित है जहां पहाड़ के बीचो बीच बारहों महीने शीतल जल निकलता रहता है और श्रद्धालुओं की प्यास बुझाता है। यहां से कुछ दूर पैदल चलने पर मुर्गी गोड़ारी नामक स्थान है जहां से रामगढ़ की मुख्य मंदिर के लिए सीढ़ियां मिलती है। यहां से शुरू होती है रामगढ़ की विरल और असली यात्रा जहां कुल 631 सीढ़ियों की कठिन चढ़ाई चढ़ने के दौरान रास्ते में प्राचीनतम सिंह द्वार श्रद्धालुओं का स्वागत करता है। और थके हुये यात्रियों के बिश्राम का साधन भी है जहां कुछ क्षण रूक कर लोग आगे बढ़ते है। लगभग आधे घंटे की चढ़ाई के बाद हजारों वर्ष पूराने राम जानकी मंदिर के दर्शन होते है। जिसे देखकर श्रद्धालु अपना सारा दर्द भूल जाते है।
इस मंदिर के भीतर हजारों वर्ष पुराना राम जानकी, लक्ष्मण, हनुमान और विष्णु भगवान की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर दर्शन और प्रसाद ग्रहण करने के बाद लोग यहां से पार्वती गुफा और जानकी तालाब के दर्शन को जाते है। इन सबके अलावा यहां दर्शनीय स्थल चंदन माटी तालाब है जहां उत्साही युवक अंदर जाकर चंदन की मिट्टी लेकर आते है उनका उत्साह देखते ही बनता है। कुछ पुरातत्व के महत्व की चीजें है जो उपेक्षा की शिकार है जिनके संरक्षण की आवश्यक्ता है जिनमें प्रमुख रूप से भगवान आदिनाथ की बाल्यकाल से बोधी प्राप्ति तक की प्रतिमा है जो जीर्ण शीर्ण अवस्था में है संरक्षण के अभाव में अपनी पहचान खो रहा है। थोड़ी पहल से इसकी रंगत और बदल सकती है।यहां रामनवमीें के पहले दिन से ही अच्छी खासी भीड़ श्रद्धालुओं की देखी जा सकती है। सप्तमी से दसमीं तिथि तक यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में पहुंच जाती है।