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शहर के कुण्डला सिटी में आयोजित भगावत कथा में बाल व्यास पं. रविकांत मिश्रा जी ने सप्तम व अंतिम दिवस श्रीमद् भागवत कथा का वाचन करते उपस्थित श्रोताओं एवं जन समुदाय को सम्बोधित करते हुए कहा कि मनुष्य को अपने जीवन में कोई ना कोई संकल्प अवष्य करना चाहिए, आपके उस संकल्प को पूरी करने की षक्ति प्रभू देेगें।
हमें जीवन में “ कम खाना व गम खाना ” के सूत्र को अपनाना चाहिए, कभी-कभी तपस्या का भी अहंकार हो जाता है, हमें तपस्या या साधना दिखाने के लिए नही करना चाहिए। मानव की यह प्रवृत्ति होती है कि वह बुरे कर्मो की ओर जल्दी आकर्षित होता है, एवं सत््कर्मो के प्रति उपेक्षा या बहाने निर्मित करता है। जब अहंकार सो जाता है एवं श्रद्धा जागृत होती है तब जीवन में परमात्मा का आगमन होता है। गुरू नाम की महिमा अपरम्पार है, गुरू के बिना कल्याण संभव नहीं है । सवयं परमात्मा ने भी गुरू परम्परा का निर्वहन किया है। जो आपको सत्संग दे, ज्ञान प्रदान करें वह गुरू योगय होता है, एवं गुरू
का आदेष षिष्य के लिए सर्वोपरि होना चाहिए। यदि आपको जीवन में एक भी सद्गुरू मिल जाए तो समझना कि हजार मां-पिता का वात्सल्य आपको प्राप्त हो गया है। हमें दूसरे का हक कभी नहीं लेना चाहिए अन्यथा दरिद्रता का मुंह देखना पड़ता है। आवष्यकता से अधिक माया एवं हद से अधिक दरिद्रता मनुष्य को मानसिक रूप से पंगु बना देते है एवं ऐसे समय में परमात्मा ही मदद करते। इस संसार में जो भी आया है उसे जाना ही पड़ता है जैसे स्वयं प्रभू को भी मृत्युलोक को त्यागना पड़ा। वैसे ही हमें भी इस लोक से जाने को तैयारी रखनी चाहिए। कथा के अंतिम दिवस पर विभिन्न झांकीयों के प्रस्तुतीकरण से कथा और मनमोहक व जीवंत बनने से उपस्थित जनसमुदाय प्रफुल्लित व हर्षित हो उठा। किया अंत मे श्री व्यास जी ने केषरवानी परिवार को साधूवाद देते हुए कहा कि, केषरवानी परिवार ने भागीरथ प्रयास करके भागवत ज्ञान रूपी जो गंगा बहायी है, उससे अम्बिकापुर के नर-नारी, तृप्त होगा एवं सभी का कल्याण होगा। श्री व्यास जी के गुरू श्री चन्द्रपाल जी महाराज ने अंत में सभी को साधूवाद देेते हुए कहा कि हम सभी इसी प्रकार समाज में भक्ति भाव का अलख जगाते रहे, इस बात की प्रभू से कामना की एवं श्रीमद् भागवत कथा के इस आयोजन की समाप्ति की घोषणा की।