लिप्सटिक लगाने वाली लड़की ने थामा AK-47..नक्सलियों की तलाश में दिन रात रहती है जंगल में..!

बस्तर/जगदलपुर 
27 साल की उषा किरन जिनकी पोस्टिंग छत्तीसगढ़ के बस्तर के बेहद खतरनाक जंगलों में है। यहाँ नौकरी करने के लिए सीआरपीएफ के अफसरों ने उषा किरन को जबरन नहीं भेजा है बल्कि वो खुद यहाँ आई हैं।  बस्तर के कामानार में सीआरपीएफ के 80 बटालियन में तैनात असिस्टेंट कमांडेंड उषा किरन की इन दिनों सोशल मीडिया में जमकर चर्चा हो रही है। चर्चा इसलिए भी हो रही है क्योंकि उषा पहली महिला अफसर हैं जो बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाके में तैनात की गई हैं। उषा के आने के बाद से बस्तर के आदिवासी इलाके में कई तरह के अचानक बदलाव आने लगे है।
सीआरपीएफ की असिस्टेंट कमांडेंट उषा किरन बस्तर के कामानार सीआरपीएफ कैंप में है।  बस्तर में अबतक ग्रामीणों और पुलिस- सीआरपीएफ के जवानो के बीच तालमेल नहीं होने की बातें आपने सुनी होंगी। कई बार जवानो पर महिलाओं से रेप करने का आरोप भी लग चुका है। हाल में ही राष्ट्रीय मानावधिकार आयोग ने जवानो के द्वारा बीजापुर में 16 महिलाओं के साथ शारीरिक शोषण और रेप की बात अपनी रिपोर्ट में कहा है। लेकिन उषा के आने के बाद ग्रामीण महिलाओं के हालात तेजी से बदल रहे हैं। कामानार कैंप से निकलते ही सबसे पहले कामानार गाँव है। यहाँ अक्सर उषा गाँव वालों का हालचाल जानते हुए आगे बढ़ती हैं। उषा गाँव की महिलाओं के पास जैसे ही पहुँचती हैं ग्रामीण महिलायें अब फ़ोर्स को देखकर डरती नहीं हैं बल्कि खुस हो जाती हैं।  उषा अभी दरभा डिवीजन के सीआरपीएफ कैंप में हैं। दरभा वही डिविजिन है जिसके अन्तर्गत झीरम घाटी आता है। झीरम घाटी में ही 2013 में हुए सबसे बड़े नक्सली हमले में कांग्रेस के बड़े नेता समेत 34 लोग मारे गए थे। उषा उस इलाके के जंगल में सर्चिंग के लिए हमेशा जाती हैं। हर दिन जवानों के साथ घने जंगल में दिन और रात सर्चिंग करने वाली उषा जवानो को लीड करती हैं।
CRPF मेरे डीएनए में है 
उषा के सीआरपीएफ में आने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। उषा कहती हैं सीआरपीएफ उनके डीएनए में है। क्योंकि उनका जन्म सीआरपीएफ के ही अस्पताल में हुआ था। इतना ही नहीं उषा के दादा जी सीआरपीएफ से रिटायर हुए हैं और पिता अभी भी सीआरपीएफ में ही सब इंस्पेक्टर हैं। उषा कहती हैं उनसे ट्रेनिंग के बाद पूंछा गया था की वो कहाँ जाना चाहती हैं। उस समय उन्होंने सबसे पहले बस्तर ही चुना था। वो इसलिए की सीआरपीएफ का सबसे खरतनाक जोन नक्सल जोन यानी बस्तर का इलाका ही माना जाता है। उषा कहती हैं की उनके आने से चूँकि वो खुद एक महिला हैं इसलिए ग्रामीण महिलाओं के बीच सीआरपीएफ का  दखल बढ़ा है। उषा 3 साल के लिए बस्तर भेजी गई हैं।  लेकिन उषा का कहना है की यदि 3 साल के बाद भी उन्हें यहाँ रहने के लिए कहा जाता है तो वो रहेंगी।
उषा के बस्तर आने से ग्रामीण महिलाओं में भी फ़ोर्स के प्रति विश्वास बढ़ा है। महिलाओं का कहना है की पहले वर्दी में जवानो को देखते ही महिलायें घर में घुस जाती थीं लेकिन अब उषा किरन से महिलाएं बात करती हैं। आसानी से अपनी समस्या लेकर कैंप तक पहुँच जाती हैं।  वहीँ असिस्टेंट कमांडेंट रामलाल मीणा जो पहले से इस कंपनी को देख रहे हैं वो भी मानते हैं की उषा के आने से ग्रामीण और फ़ोर्स के बीच की दूरियां कम हुई हैं। मीना तो यहाँ तक कहते हैं की जंगलों में मोर्चा संभालने में उषा उनसे दो कदम आगे है।