रायपुर
रंजीत की कहानी से स्पष्ट होता है कि सिर्फ डिग्री हासिल कर लेने से कुछ नहीं होता, बल्की अच्छी नौकरी के लिए हुनरमंद होना जरूरी है। वे बताते हैं कि ग्रेजुएट होने के बावजूद मैं मजदूरी करता था, तो सब मेरे से पूछते थे कि तुम पढ़े लिखे हो तो मजदूरी क्यों करते हो, किन्तु मैं जानता था कि मेरे पास तकनीकी ज्ञान नहीं है और सभी का डिग्री होने से केरियर का निर्माण नहीं होता है। उसके लिए कौशल होना भी जरूरी है।
युवाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए कोरबा में कुछ ऐसे प्रयास हुए कि वहां के युवा अब न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि दूरदराज के इलाकों में भी नौकरियां हासिल करने लगे हैं। छत्तीसगढ़ प्रदेश के अन्य जिलों की तरह कोरबा में आजीविका कॉलेज (लाईवलीहुड कॉलेज) के रूप में एक सुखद भविष्य की राह दिखायी। कोरबा के युवक रंजीत की कहानी भी बड़ी रोचक है। रंजीत कंवर ने स्नातक होने के बावजूद निर्माण मजदूर के रूप में अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहा था। रोजगार की तलाश में रंजीत ने कोरबा और रायगढ़ स्थित कारखानों से सीधा सम्पर्क किया और वहां मजदूरी का काम किया। रंजीत को मजदूरी के कार्य में आनंद नहीं आ रहा था। उसकी इच्छा कुछ सीखने और कुछ करने की थी, जिससे वो अपने करियर को आगे बढ़ा सकें। उन्होेंने अपने कारखाने के सुपरवाइजर से इस संबंध में बात की।
कोरबा निवासी रंजीत को जानकारी मिली कि राज्य सरकार द्वारा युवाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए आजीविका कॉलेज की स्थापना की गई है। रंजीत द्वारा बिना समय गवाएं वेल्डिंग कार्य सीखने के लिए कॉलेज में अपना नाम दर्ज करवाया। रंजीत को इस कार्य में प्रशिक्षण पूरा होने के बाद उन्हें कर्नाटक राज्य के बेंगलुरू शहर में ऑटो कॉम्पोनेन्ट कम्पनी में काम करने का अवसर मिला। इसी कम्पनी में चार-पांच महीने काम का अनुभव काम आया और उन्हें पास ही दूसरी कम्पनी में नौकरी मिल गयी। अब वह तेरह हजार रूप, महीना कमा रहे है। साथ ही ओवरटाइम करने अतिरिक्त आय भी प्राप्त कर रहे है। अब वे अपना और अपने परिवार का अच्छी तरह भारण-पोषण कर रहे हैं। अब वे अपने परिवार को प्रतिमाह आठ हजार के करीब रूप, भेजते है।